भारत-बंगलादेश टकराव
बंगलादेश में शेख हसीना सरकार का तख्ता पलट होने के बाद जो स्थितियां…
बंगलादेश में शेख हसीना सरकार का तख्ता पलट होने के बाद जो स्थितियां बनी हैं वह न तो इस देश के हित में हैं और न ही लोकतांत्रिक मूल्यों के पक्ष में। बंगलादेश की भारत विरोधी बयानबाजी और कारगुजारी से दोनों देशों के संबंधों में जबरदस्त कड़वाहट आ चुकी है। गत दिसम्बर में भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने अपनी ढाका यात्रा के दौरान बंगलादेश को आश्वस्त किया था कि भारत उसका दोस्त बना हुआ है और व्यापार, ऊर्जा, बुनियादी ढांचे और कनेक्टिविटी के मामलों में रिश्ते पहले की तरह बरकरार रहेंगे। ऐसा लगता था कि दोनों पक्षों ने सीमा पर स्थिति को शांत कर लिया है। इसके बाद बंगलादेश ने भारत के राजनयिक को संदेश भेजकर मुकद्मों का सामना करने के लिए भारत में रह रहीं शेख हसीना के प्रत्यर्पण की मांग कर डाली। इसी बीच बंगलादेश में अल्पसंख्यक हिन्दुओं और उनके धर्मस्थानों पर हमले जारी हैं। अब बंगलादेश ने भारत से एक नया पंगा ले लिया है। भारत-बंगलादेश के बीच ताजा तनाव सीमा को लेकर है। बंगलादेश के साथ भारत की 4096.7 किलोमीटर लम्बी सीमा हमारे पांच राज्यों पश्चिम बंगाल, असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम से होकर गुजरती है।
भारत सीमा पर बाड़बंदी कर रहा है। भारत ने अब तक 3271 किलोमीटर सीमा कर बाड़बंदी कर दी है। अब केवल 885 किलोमीटर खुली सीमा की बाड़बंदी बाकी है। भारत बचे इलाके की बाड़बंदी कर रहा है लेकिन बंगलादेश भारत की कोशिशों में अड़ंगा डाल रहा है। बंगलादेश के गृह मंत्रालय ने ढाका में भारतीय उच्चायुक्त प्रणय वर्मा को बुलाकर विरोध व्यक्त किया तो इसके जवाब में भारत ने भी जवाबी कार्रवाई की और बंगलादेश के िडप्टी हाईकमिश्नर नूूरूल इस्लाम को तलब कर अपना प्रोटेस्ट जताया। भारत अपनी सीमाओं को अभेद्य बना रहा है। सीमाओं के खुले रहने से बंगलादेश से लगातार अवैध घुसपैठ, हथियारों की तस्करी, ड्रग स्मगलिंग, नकली नोटों का कारोबार और आतंकवादी गतिवििधयां लगातार हो रही हैं। शेख हसीना शासनकाल में भारत और बंगलादेश के संबंध सामान्य थे तो भारत बंगलादेश को विश्वास में लेकर बाड़बंदी कर रहा था लेकिन अब अंतरिम यूनुस सरकार लगातार उकसाने वाली कार्रवाई कर रही है।
भारत और बंगलादेश को सीमा अंग्रेज और पाकिस्तानी विरासत में देकर गये। 1947 में भारत के विभाजन के बाद रेडक्लिफ़ रेखा भारत और पूर्वी पाकिस्तान के बीच की सीमा बन गई। 1971 में बंगलादेश की आजादी के बाद वही रेखा भारत और बंगलादेश के बीच की रेखा बन गई। गौरतलब है कि भारत और तत्कालीन पाकिस्तान के बाद बॉर्डर बंटवारे का काम तुरंत शुरू हो गया था, लेकिन इसकी प्रगति धीमी रही। बॉर्डर सीमांकन में कई दिक्कतें थीं। हालांकि इनमें से कुछ सीमा विवादों को 1958 के नेहरू-नून समझौते द्वारा हल करने की कोशिशें की गई थीं। बाद में यह काम अधूरा छोड़ दिया गया और यह काम अब भी जारी है।
दरअसल बंगलादेश में सत्ता परिवर्तन के बाद यूनुस सरकार ने भारत विरोधी तत्वों को हवा दी है और जेल में बंद कई भारत विरोधी तत्वों को बेल दी है। ये तत्व भारत में अस्थिरता फैलाने की साजिश रच रहे हैं। लिहाजा भारत सरकार बॉर्डर पर घेराबंदी कर रही है। “भारत में पहले से ही लाखों बंगलादेशी अवैध रूप से रह रहे हैं लेकिन ढाका द्वारा आतंकवादियों और दोषी ठहराए गए इस्लामी कट्टरपंथियों की रिहाई के बाद भारत द्वारा बॉर्डर पर कंटीले तारों को लगाने की कोशिश को बंगलादेश से कड़ा विरोध मिला है। बंगलादेश के बॉर्डर गार्ड्स ने इसे रोकने की कोशिश की है। भारत-बंगलादेश बॉर्डर विवाद में तब एक बड़ा सकारात्मक मोड़ आया जब 2011 में तत्कालीन गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने बंगलादेश की गृहमंत्री सहरा खातून के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किया। इस समझौते को कोर्डिनेटेड बॉर्डर मैनेजमेंट प्लान (सीबीएमपी) कहा जा रहा है। इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह भी बंगलादेश के दौरे पर गये। 2015 में शेख हसीना के कार्यकाल के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ढाका पहुंचे। यहां दोनों नेताओं ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किया। इसे लैंड बाउंड्री एग्रीमेंट कहते हैं।
राजनीतिक दुराग्रह के चलते यूनुस सरकार शेख हसीना के पिता की विरासत को निपटाने में लगी हुई है। कट्टरपंथी तत्व जनाक्रोश के चलते अपनी सुविधा का मुहावरा गड़ने का प्रयास कर रहे हैं। बंगलादेश के स्कूली पाठ्यक्रम से मुजीबुर रहमान की जीवनी, नोटों से उनके चित्र हटाए जा रहे हैं। अगर ऐसा ही चलता रहा तो बंगलादेश पूरी तरह से कट्टरपंथी ताकतों के हाथों में खेल जाएगा। यूनुस सरकार को यह समझना चाहिए कि शेख हसीना और उनके परिवार के साथ भारत के रिश्तों का इतिहास बंगलादेश की आजादी के लिए दोनों देशों द्वारा किए गए बलिदानों से बना है। बंगलादेश अगर यह उम्मीद करता है कि भारत शेख हसीना को उसके हवाले कर देगा या उसके सामने झुक जाएगा तो यह उसकी बड़ी भूल है। बंगलादेश को अपने नफे-नुक्सान का पूरा आंकलन कर लेना चाहिए। इस बात की भी आंकलन करना चाहिए कि चीन की गोद में बैठकर उसे कुछ हासिल नहीं होने वाला। उसने जो भी हासिल किया है वह भारत से ही किया है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com