भारत-ब्रिटेन में बड़ी डील
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के टैरिफ से अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में उथल-पुथल और भारत-अमेरिका में चल रही द्विपक्षीय व्यापार वार्ता के बीच भारत आैर ब्रिटेन में मुक्त व्यापार समझौता (फ्री ट्रेड एग्रीमैंट) हस्ताक्षर होना अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर की उपस्थिति में समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। यह समझौता लगभग 4 वर्ष चली वार्ताओं के दौर के बाद सम्पन्न हुआ है। एफटीए पर बातचीत की शुरूआत 2021 में तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने की थी। यह वो दौर था जब ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था डांवाडोल हो रही थी। इस समझौते को आगे बढ़ाने में लिज ट्रस और बाद में ब्रिटेन के प्रधनामंत्री बने भारतीय मूल के ऋषि सुनक ने बड़ी भूमिका अदा की। अब प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर के कार्यकाल में यह समझौता सिरे चढ़ा। 4 साल और चार ब्रिटिश प्रधानमंत्रियों के चलते अब जाकर सफलता मिली है। इस बड़ी डील से भारत और ब्रिटेन दोनों देशों को काफी फायदा होगा।
आज का दौर व्यापार का दौर है। एक हाथ से दें और दूसरे हाथ से ले। मैत्री की पहली शर्त ही दो देशों में आर्थिक संबंध की बन चुकी है। कभी ब्रिटेन भारत पर राज करता था। ब्रिटेन का औपिनवेशिक इतिहास भारत से रिश्तों में अहम भूमिका निभाता रहा है। इस इतिहास से छुटकारा नहीं पाया जा सकता लेकिन बदलते वक्त में दोनों देशों में नए मोड़ आते गए। अंग्रेजों का इतिहास सब जानते हैं, उसे कुरेदना अब उचित नहीं है। कुल मिलाकर यह समझौता दोनों देशों के लिए विजेता जैसा है। इस से ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को सहारा मिलेगा और भारत को भी काफी फायदा होगा। यह समझौता भारत की रणनीतिक व्यापार नीति की परिपक्वता का प्रमाण है। यह सिर्फ एक एफटीए ही नहीं भारतीय उत्पादकों और सेवा प्रदाताओं को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में आगे लाने का एक मजबूत मंच है। इस मुक्त व्यापार समझौते के तहत भारत और ब्रिटेन ने वस्तुओं और सेवाओं के आयात-निर्यात पर लगने वाले कस्टम शुल्क में कटौती, गैर-शुल्कीय बाधाओं को सरल करने, डिजिटल व्यापार, वित्तीय सेवाएं, शिक्षा और निवेश जैसे क्षेत्रों में सहयोग को प्रोत्साहित करने का मार्ग प्रशस्त होगा। इसी तरह समझौता लागू होने के बाद दोनों देशों के बीच व्यापार 30 अरब डॉलर से 2030 तक दोगुना होने की संभावना जताई जा रही है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष में भारत के पूर्व प्रतिनिधि डॉ. सुरजीत भल्ला का कहना है कि भारत को अब ऐसी एफटीए रणनीति चाहिए थी जो केवल 'व्यापार मुक्त' न हो बल्कि 'विकास अनुकूल' भी हो। यूके के साथ यह समझौता इस दिशा में सही कदम है और इससे सेवा क्षेत्र में भारत ताकत और बढ़ेगी।
भारत में ब्रिटिश निवेश बढ़ेगा। ब्रिटेन की कम्पनियों को भारत में आने की प्रक्रिया आसान होगी। इस से निर्माण, रिटेल, शिक्षा और वित्तीय सेवा क्षेत्र बढ़ेगा। स्थानीय उद्योगों में तकनीक प्रबंधन आैर पूंजी का संचार होगा, जिससे भारत के औद्योगिक विकास को बल मिलेगा। भारत की युवा आबादी को रोजगार के नए अवसर मिलेंगे और उनके लिए भी ब्रिटेन के दरवाजे खुलेंगे।
दरअसल ब्रिटेन और यूरोपीय यूनियन का अनुभव काफी कड़वाहट भरा रहा है। जनमत कराए जाने के बाद ही ब्रिटेन यूरोपीय यूनियन से अलग हो गया था। ब्रैक्जिट के उथल-पुथल भरे दौर के बाद ब्रिटेन को अपनी ठोस वैश्विक भूमिका स्थापित करने के लिए नए बाजारों की तलाश थी। उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती यूरोपीय यूनियन से निकल कर नए साथी तलाशने की रही। अहम सवाल यह था कि दक्षिण एशियाई क्षेत्र में ब्रिटेन की नीति क्या होगी? इसी सवाल के उत्तर में भारत-ब्रिटेन संबंधों के नए दौर की शुरूआत हुई। वर्षों तक यूरोपीय यूनियन के एकीकृत बाजार से बंधे रहने आैर कोरोना महामारी झेलने के बाद ब्रिटेन के लिए आर्थिक और व्यापारिक तरक्की की रफ्तार बनाए रखना बड़ी चुनौती थी। ब्रिटेन को भारत में ऐसी सम्भावनाएं नजर आईं जो उसकी आर्थिक महत्वकांक्षाओं को पूरा कर सकता है। भारत अब दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्था है आैर उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यही कारण रहा कि भारत-ब्रिटेन व्यापारिक संबंधों ने नई करवट ले ली।
यद्यपि 5 साल बाद ब्रिटेन ने यूरोपीय संघ से व्यापारिक समझौते किए लेकिन उसने दूसरे देशों के साथ भी अपने संबंधों को विस्तार दिया। मुक्त व्यापार समझौतों का प्रभाव काफी हद तक इस बात पर निर्भर करता है कि इसमें शामिल देश कितना व्यापार करते हैं आैर किसी व्यापार समझौते से कितनी उदारीकरण की स्थिति बनती है। अगर दोनों काफी अधिक व्यापार करते हंै, जैसे दोनों गुरुत्वाकर्षण द्वारा खिंचे जा रहे हों तो अर्थशास्त्री इसे गुरुत्वाकर्षण मॉडल कहते हैं। माना जा रहा है िक भारत से व्यापार समझौता कर ब्रिटेन यूरोपीय यूनियन के बाजार तक अपनी पहुंच के किसी भी नुक्सान की भरपाई कर लेगा।
यह समझौता सम्मानजनक तरीके से बड़ी मेहनत के साथ किया गया है। भारत ने बाधाओं के बावजूद लगातार बातचीत कर और काफी धैर्य रखकर समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। समझौते से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को भी स्पष्ट संदेश दे िदया है कि समझौते टैरिफ की धमकियों से नहीं होते बल्कि धैर्य और आपसी विश्वास से होते हैं। डोनाल्ड ट्रम्प अगर धमकियां देकर व्यापार समझौता करना चाहते हैं तो वो कभी टिकाऊ नहीं हो सकता। अमेरिका को इससे सबक हासिल करना चाहिए। ट्रम्प को यह संदेश भी पहुंच चुका होगा कि भारत केवल अमेरिका के सहारे नहीं बैठा। भारत अमेरिका की धमकियों के आगे झुकने वाला नहीं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हर छोटे और बड़े देश में जाकर व्यापारिक समझौतों को रूप दे रहे हैं। जिसका अर्थ यही है कि भारत जैसा सम्प्रभु राष्ट्र नीतिगत स्वतंत्रता का पक्षधर है। कूटनीति और सम्मान से ही स्थायी समझौते हो सकते हैं, धमकियों से नहीं।