भारत-चीन सीमा विवाद
भारत और चीन विश्व की 2 प्राचीन एवं महान सभ्यताओं के देश हैं। दोनों देश लगभग एक साथ ही स्वतंत्र हुए। आजादी के बाद से ही चीन और भारत में सीमा विवाद ने एक ऐसी समस्या को जन्म दिया जिसका आज तक कोई समाधान नहीं हो पाया। कम्युनिस्ट देश चीन के बारे में पूरी दुनिया में यह धारणा बनी कि चीन अपनी विस्तारवादी नीति के चलते दूसरे देशों की जमीन पर एक-एक इंच करके आगे बढ़ता है और बाद में जमीन कब्जा लेता है। भारत चीन की घुसपैठ का कई बार शिकार हो चुका है। दोनों देशों के संबंध भी काफी जटिल रहे हैं। पूर्वी लद्दाख सीमा पर गतिरोध शांत होने के बाद संबंधों में सुधार होने की उम्मीद एक बार िफर जाग उठी थी। अब चीन ने कहा है कि भारत के साथ चीन की सीमा विवाद जटिल है लेकिन इसके समाधान में समय लगेगा। हालांकि वह परिसीमन पर चर्चा करने के लिए तैयार है ताकि सीमा क्षेत्र पर शांति बनी रहे।
चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग की ओर से ये बयान तब आया है जब 26 जून को भारत के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और चीन के रक्षामंत्री डोंग जून के बीच ज़िंगदाओ में हुए एससीओ डिफेंस मंत्रियों के सम्मेलन के दौरान द्विपक्षीय बैठक हुई। इस द्विपक्षीय बैठक के दौरान रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने एलएसी (लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल) पर तनाव कम करने के लिए सीमा के स्पष्ट सीमांकन के लिए एक "संरचित रोडमैप" का प्रस्ताव दिया था। उन्होंने सीमा पर तनाव कम करने के लिए कदम उठाने और सीमांकन के लिए मौजूदा तंत्र को सक्रिय करने का आह्वान किया था। बीजिंग में जब मीडिया ने चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग से रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के बयान पर टिप्पणी करने को कहा तो माओ ने कहा कि दोनों देशों ने पहले ही विशेष प्रतिनिधि (एसआर) तंत्र स्थापित कर लिया है।
सीमा विवाद सुलझाने के लिए दोनों देशों के बीच तंत्र 1993 में स्थापित किया गया था। 1993 के समझौते के तहत दोनों देशों द्वारा सीमा प्रबंधन का काम किया गया और यह समझौता दोनों देशों को सीमा पर गश्त का अधिकार देता है। दूसरा समझौता 1996 में किया गया, जिसके तहत सीमा पर बल प्रयोग नहीं करने का प्रावधान किया गया। सीमा विवाद पर पिछले साल विशेष प्रतिनिधि स्तर की 23वीं वार्ता हुई थी। इस बैठक में लद्दाख सीमा पर गतिरोध दूर हुआ और दोनों देशों ने डिस एंगेजमेंट समझौते की पुष्टि की। चीन की सेनाओं का एलएसी पर पूर्व स्थिति में जाना मोदी सरकार की बड़ी जीत रही।
भारत चीन के साथ 3488 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है। ये सीमा जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश से होकर गुज़रती है। ये सरहद तीन सैक्टरों में बंटी हुई है-पश्चिमी सैक्टर यानी जम्मू-कश्मीर, मिडिल सैक्टर यानी हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड और पूर्वी सैक्टर यानी सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश। दोनों देशों के बीच अब तक पूरी तरह से सीमांकन नहीं हुआ है क्योंकि कई इलाक़ों के बारे में दोनों के बीच मतभेद हैं। भारत पश्चिमी सैक्टर में अक्साई चिन पर अपना दावा करता है लेकिन ये इलाक़ा फ़िलहाल चीन के नियंत्रण में है। भारत के साथ 1962 के युद्ध के दौरान चीन ने इस पूरे इलाके पर कब्जा कर लिया था। वहीं पूर्वी सैक्टर में चीन अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा करता है। चीन कहता है कि ये दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा है। चीन तिब्बत और अरुणाचल प्रदेश के बीच की मैकमोहन रेखा को भी नहीं मानता है। चीन का कहना है कि 1914 में जब ब्रिटिश भारत और तिब्बत के प्रतिनिधियों ने ये समझौता किया था, तब वो वहां मौजूद नहीं था। उसका कहना है कि तिब्बत चीन का अंग रहा है इसलिए वो ख़ुद कोई फैसला नहीं ले सकता।
इन विवादों की वजह से दोनों देशों के बीच कभी सीमा निर्धारण नहीं हो सका। यथास्थिति बनाए रखने के लिए लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल यानी एलएसी टर्म का इस्तेमाल किया जाने लगा। हालांकि अभी ये भी स्पष्ट नहीं है। दोनों देश अपनी अलग-अलग लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल बताते हैं। इस लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर कई ग्लेशियर, बर्फ़ के रेगिस्तान, पहाड़ और नदियां पड़ती हैं। एलएसी के साथ लगने वाले कई ऐसे इलाके हैं जहां अक्सर भारत और चीन के सैनिकों के बीच तनाव की खबरें आती रहती हैं।
चीन ने 1996 में भारत पर हमला िकया और हमारी काफी जमीन कब्जा ली। 1967 में नाथुला संघर्ष,1987 में सुमदारोंग चू संघर्ष, 2013 में डेपसांग संघर्ष, 2020 में गलवान घाटी संघर्ष और 2022 में अरुणाचल प्रदेश के तवांग में संघर्ष हुआ। चीन दक्षिण एशिया में अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहता है। इसलिए वह बार-बार पड़ोसियों को अांखें दिखाता है तो कभी नरम रुख अपनाता है। दोनों देशों में तनाव के बावजूद व्यापारिक संबंध पहले की ही तरह बने हुए हैं। भारत इस समय वैश्विक आर्थिक शक्ति है, उसे नजरंदाज करना चीन के िलए मुश्किल हो रहा है। विशेषज्ञ भी मानते हैं िक अगर दोनों देश मिलकर काम करें तो दुनिया की कोई भी ताकत इनका मुकाबला नहीं कर सकती। चीन हार्डवेयर है तो भारत सॉफ्टवेयर। अगर भारत, चीन, रूस त्रिकोण बन जाए और तीनों देश आर्थिक से लेकर सामरिक सहयोग मजबूत कर लें तो फिर इनका कोई सानी नहीं रहेगा। फिलहाल चीन के साथ रिश्तों में भारत को सतर्क रहना होगा क्योंकि चीन अपनी धूर्तता से बाज नहीं आने वाला। रिश्तों को सामान्य बनाने के लिए अविश्वास की खाई पाटना बहुत जरूरी है।