Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

भारत-चीन सहयोग

04:30 AM Sep 01, 2025 IST | Aditya Chopra
पंजाब केसरी के डायरेक्टर आदित्य नारायण चोपड़ा

आज जिस प्रकार से आर्थिक वैश्वीकरण ने दुनिया का स्वरूप बदल दिया है और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा मनमाने टैरिफ लगाए जाने के बाद जो परिस्थितियां उत्पन्न हुई हैं उनको देखते हुए भारत और चीन की नजदीकियों को वक्त का तकाजा ही कहा जाएगा। आज के दौर में अन्तर्राष्ट्रीय पटल पर न तो कोई स्थायी शत्रु होता है और न ही कोई स्थायी मित्र होता है। यह बात सच है कि आजादी के बाद से भारत की मित्रता सोवियत संघ से रही और पाकिस्तान की अमेरिका से। पंडित जवाहर लाल नेहरू के शासनकाल में भारत-चीन संबंधों की शुरूआत काफी मधुर हुई थी। तब हिन्दी-चीनी भाई-भाई के नारे लगे थे लेकिन 1962 के चीनी आक्रमण ने दोनों देशों के संबंधों में ऐसी कड़वाहट भर दी कि आज तक भारत को 1962 का युद्ध प्रेत की तरह चिपटा हुआ है। यह बात सच है कि किसी भी संवेदनशील देश को अपना अतीत नहीं भूलना चाहिए, परन्तु यह बात भी उतनी ही सत्य है कि युग के साथ-साथ युग का धर्म भी बदल जाता है। इस वर्ष की अब तक की सबसे बड़ी मुलाकात पर देशवासियों की नजरें लगी हुई थीं। रविवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग की महामुलाकात हुई। यह मुलाकात ऐसे समय में हुई जब ट्रम्प के टैरिफ वॉर आैर उनकी कारोबार वाली धमकियों का सामना भारत और चीन दोनों ही देश कर रहे हैं।

प्रधानमंत्री मोदी आैर​ जिनपिंग दोनों ने दोनों देशों के साथ आने की जरूरत को समझा और दोनों ही देश सहयोग को तैयार हुए। दरअसल अमेरिका ने एेसी स्थितियां उत्पन्न कर दी हैं कि भारत आैर चीन का करीब आना आवश्यक हो चुका है। ट्रम्प की दादागिरी के खिलाफ नए इकनोमिक वर्ल्ड ऑर्डर की शुरूआत हो सकती है। दो पड़ोसी और विश्व के सबसे बड़ी आबादी वाले भारत और चीन स्थिर आैर सौहार्दपूर्ण द्विपक्षीय संबंध क्षेत्रीय और वैश्विक शांति तथा समृद्धि पर साकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं। बहुध्रुवीय विश्व के ​िलए यह सकारात्मक संकेत है। भारत और चीन के संबंध भरोसे की कसौटी पर परखे जाते रहे हैं। चीन की घुसपैठ, अरुणाचल पर उसके दावे, पूर्वी लद्दाख सीमा पर लम्बे चले गतिरोध, गलवान घाटी में हुए संघर्ष और आॅपरेशन सिंदूर के दौरान चीन द्वारा पाकिस्तान की मदद करने और कुछ अन्य कारणों से भरोसा लगातार टूटता रहा है लेकिन टैरिफ वॉर के बाद ऐसे संदेश आ रहे थे कि चीन भारत के करीब आना चाह रहा है। मार्च 2025 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को एक गोपनीय पत्र भेजा था, जिसमें लिखा गया था ​िक भारत और अमेरिका के बीच कोई भी समझौता हुआ तो उससे चीन को नुक्सान हो सकता है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। मीडिया ​रिपोर्ट्स की मानें तो इस पत्र के बाद भारत आैर चीन के रिश्तों के अर्थ बदल गए।

इससे पहले मोदी और शी जिनपिंग 2024 में रूस के कजान और 2023 में दक्षिण अफ्रीका के जोहानिसबर्ग में मिले थे। दोनों बार फोरम ब्रिक्स समिट का था। कुछ दिन पहले ही चीनी विदेश मंत्री वांग यी सीमा मामलों के विशेष प्रतिनिधियों की 24वीं बैठक में शामिल होने भारत दौरे पर आए थे। उनकी मुलाकात यहां पीएम मोदी से हुई। इससे पहले वो एनएसए डोभाल और विदेश मंत्री एस. जयशंकर से भी मिले थे। तब भी चीन की तरफ से दोस्ती की नई डगर पर चलने के संकेत मिलने लगे थे। चीन को मालूम है कि अगर वो ग्लोबल साउथ में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहता है। दुनिया के कारोबार में अमेरिका को टक्कर देना चाहता है, तो फिर उसे भारत जैसे पड़ोसी को साथ लेना ही होगा। बिना भारत के वो अपने कारोबार को उस मुकाम पर नहीं पहुंचा पाएगा जहां कि वो हसरत पाले हुए है लेकिन सच ये भी है कि कारोबार के साथ क्षेत्रीय संतुलन भी जरूरी है।

भारत को भी इस समय अपने ट्रेड की चिंता है। दोनों देशों ने संबंधों को सामान्य बनाने के लिए कई उपाय किए हैं। इन उपायों में सीमा पर शांति बनाए रखना, बॉर्डर ट्रेड को फिर से खोलना अैर सीधी उड़ान सेवाओं को शुरू करना शामिल है। प्रधानमंत्री मोदी की एससीओ शिखर सम्मेलन के दौरान रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन से मुलाकात होगी। इस सम्मेलन में रूस, ईरान, कजाकिस्तान, किर्गीस्तान, पाकिस्तान, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान, बेलारूस भी भाग ले रहे हैं। एसीओ सम्मेलन में भाग लेने वाले देशों में विश्व की कुल आबादी का लगभग 43 प्रतिशत हिस्सा रहता है। व्यावहारिक दृष्टि से भारत-रूस-चीन त्रिकोण के अलावा यह सभी देश एकजुट हो जाएं तो अमेरिका के ट्रम्प किसी का कुछ बिगाड़ नहीं पाएंगे।

भारत की चिंताएं पाकिस्तान आैर आतंकवाद को लेकर भी हैं। आज की तारीख में पाकिस्तान चीन का उपनिवेश बना हुआ है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भी पाकिस्तान ने चीन के हथियारों और सैटेलाइट सिस्टम का इस्तेमाल किया। भारत पाकिस्तान और चीन की मित्रता को तोड़ने का प्रयास नहीं करेगा ले​िकन चीन को भारत की चिंताओं पर ध्यान देना होगा। कितना अच्छा हो कि बीती ताहि बिसार दे यानि अतीत को भुलाकर भारत-चीन सीमा ​िववाद को हल कर लें और चीन भारत की भौगोलिक सीमाओं का सम्मान करे। जहां तक व्यापार का सवाल है चीन को भी अपना बाजार भारत के ​िलए खोलना होगा। भारत-चीन व्यापार घाटा बढ़कर 99.2 अरब डॉलर तक पहुंचना ​िचंताजनक है। चीन अब लगभग हर औद्योगिक श्रेणी में भारत के आयात पर हावी है। द्विपक्षीय संबंधों को रणनीतिक आैर दीर्घकालिक दृष्टिकोण से आपसी सम्मान और आपसी हितों के आधार पर दोनों देशों को बढ़ना होगा। कुल मिलाकर मोदी और जिनपिंग ने ट्रम्प को बड़ा संदेश दे ​िदया है। अब तो अमेरिका के कई नेता और विशेषज्ञ यह महसूस कर रहे हैं कि ट्रम्प ने भारत को छेड़कर एशिया में अपना एक मजबूत सांझीदार खो दिया है।

Advertisement
Advertisement
Next Article