भारत-चीन : ये नजदीकियां
ऑपरेशन सिंदूर के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा निभाई गई स्वयंभू भूमिका ने भारत को स्तब्ध कर दिया है। इसके साथ ही रूस से तेल और रक्षा सामग्री की खरीद से चिढ़े बैठे ट्रम्प ने भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाकर नई चुनौती फैंक दी है। अमेरिका द्वारा छेड़ा गया टैरिफ युद्ध भारत के साथ-साथ चीन के आर्थिक हितों को नुक्सान कर रहा है। ट्रम्प की ब्लैकमेलिंग भारत आैर चीन को रास नहीं आ रही। चीन के खुले समर्थन के बावजूद पाकिस्तान का अमेरिका के हाथों में खेलना भी कहीं न कहीं चीन को चुभ रहा है। यही कारण है कि चीन अब भारत के करीब आ रहा है। चीनी विदेश मंत्री वांग यी के भारत दौरे से यह नजदीकियां स्पष्ट रूप से दिखाई भी दीं। अमेरिका भले ही दक्षिणी चीन सागर या हिन्द प्रशांत के मामले में चीन का मुकाबला करने के िलए भारत के साथ मिलकर काम करने की कोिशश कर रहा था लेकिन ट्रम्प ने असंगत बातें दोहराते हुए ऑपरेशन सिंदूर में जिस तरह से पाकिस्तान समर्थक रुख अपनाया उससे भारत को निराशा ही हुई है। पहले चीन ने कैैलाश मानसरोवर यात्रा की शुरूआत की। फिर भारत ने चीनी पर्यटकों के लिए वीजा खोल दिया। धीरे-धीरे सभी स्तरों पर आदान-प्रदान आैर संवाद फिर से शुरू हो रहा है। यह सब कदम दोनों देशों के सहयोग की ओर लौटने की िदशा में एक साकारात्मक रुझान दिखा रहे हैं।
चीन के विदेश मंत्री वांग यी आैर विदेश मंत्री एस. जयशंकर में हुई बातचीत के दौरान सप्लाई से जुड़े मुद्दों पर चर्चा हुई। दोनों पक्षों ने स्वीकार किया कि मौजूदा समय में अमेरिका की नीतियां भारत और चीन दोनों के खिलाफ हैं। चाहे वह व्यापारिक प्रतिबंध हो या टैक्नोलॉजी से जुड़े नियम भारत और चीन दोनों को इससे निपटने के िलए आपसी तालमेल की जरूरत है।
इस मुलाकात में जहां एक ओर सीमा विवाद पर चर्चा टाल दी गई और उसे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल के स्तर पर बातचीत के लिए छोड़ा गया, वहीं दूसरी ओर सप्लाई और आर्थिक सहयोग जैसे मुद्दों पर बड़ी प्रगति हुई। खास बात यह भी रही कि जयशंकर ने साफ कर दिया कि भारत का ताइवान पर रुख नहीं बदला है और वह सिर्फ आर्थिक और सांस्कृतिक संबंध तक ही सीमित रहेगा। इस बीच अमेरिका की नीतियां दोनों देशों के लिए चुनौती के रूप में उभरीं और यह माना गया कि मौजूदा वैश्विक हालात में भारत और चीन को संवाद बढ़ाकर साझा हित साधने होंगे। सवाल अब यह है कि क्या यह नई पहल भारत-चीन के रिश्तों में दोस्ती की नई पारी की शुरूआत है या फिर यह केवल अस्थायी समीकरण है?
चीन ने भारत को आश्वासन दिया है कि वह जल्द ही खाद (यूिरया, एनपीके, डीएपी), रेयर अर्थ मिनरल्स और टनल बोरिंग मशीन की सप्लाई फिर से शुरू करेगा। गौरतलब है कि पिछले एक साल से चीन ने इन पर रोक लगा दी थी जिससे भारत को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। भारत की कृषि जरूरतों का करीब 30 प्रतिशत हिस्सा चीन से आने वाली खाद पर निर्भर करता है। वहीं ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री और हाईटेक उपकरणों में रेयर अर्थ मिनरल्स का अहम योगदान है। इसी तरह शहरी और सड़क इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के लिए टनल बोरिंग मशीनें बेहद जरूरी हैं।
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने सीमा विवाद पर भी अपनी बात रखी। भारत हमेशा इस बात का समर्थक रहा है कि दोनों देशों में साकारात्मक गति का आधार सीमावर्ती इलाकों में संयुक्त रूप से शांति और सौहार्द बनाए रखने की क्षमता है। पिछले िदनों वर्षों में गलवान घाटी से लेकर व्यापारिक विवाद तक भारत-चीन में काफी तनाव रहा है। भारत चाहता है कि 3488 किलोमीटर लम्बी वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तैनात सेना को वापिस बैरकों में भेजा जाना चाहिए। हालांकि लद्दाख में कई बिन्दुओं की गुत्थियां सुलझ चुकी हैं लेिकन अभी भी दोनों देशों की सेनाएं सीमा पर बड़ी संख्या में मौजूद हैं। विदेश मंत्री ने सीमा पर शांति की जरूरत बताते हुए कहा कि दोनों पक्षों की तरफ से एक साफ और रचनात्मक नजरिये की जरूरत है। इस कोशिश में हमें तीन परस्पर सिद्धांतों आपसी सम्मान,आपसी संवेदनशीलता और आपसी हित के साथ काम करना चाहिए। मतभेद, विवाद, प्रतिस्पर्धा और संघर्ष में नहीं बदलने चाहिए। चीन के विदेश मंत्री ने भी बड़ा संदेश दिया कि दोनों देशों को एक-दूसरे को दुश्मन नहीं साझेदार के तौर पर देखना होगा। अमेरिका का नाम लिए बिना उन्होंने कहा कि दुनिया में एक तरफा दबाव और धौंस जमाने की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है, मुक्त व्यापार और अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था गम्भीर चुनौतियों का सामना कर रही है। ऐसे में दोनों देशों को एकजुटता दिखानी होगी।
भारत को इस समय कृषि और विकास परियोजनाओं के लिए चीन से सप्लाई चाहिए। जबकि अमेरिका के टैरिफ का मुकाबला करने और आर्थिक चुनौतियों से िनकलने के िलए भारत के विशाल बाजार की बहुत जरूरत है। टैरिफ वार से पैदा हुई व्यापार अनिश्चितता के बीच एक बहुध्रुवी दुनिया में भारत को व्यापक रणनीति तैयार करनी होगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अगले हफ्ते शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए चीन जा रहे हैं, जहां उनकी चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात भी होगी। कुल मिलाकर ट्रम्प के टैरिफ बम को फुस करने के लिए दोनों देशों ने कूटनीतिक रिश्तों का निर्धारण नए सिरे से किया। रणनीतिक व्यवहारिकता से प्रेरित हाेकर भारत आैर चीन धीरे-धीरे एक-दूसरे के करीब आ रहे हैं। भारत को पाकिस्तान के हुकमरानों के घटिया खेल में उलझने की जरूरत नहीं है। भारत को चीन के साथ वैकल्पिक व्यापार ढांचे के लिए सहयाेग की रूपरेखा तलाशनी होगी। दोेनों देशों को एक-दूसरे की जरूरत है। उम्मीद की जानी चाहिए कि भारत-चीन के रिश्तों पर जमी बर्फ एक दिन पूरी तरह से िपघल जाएगी। अगर भारत, रूस और चीन एक पाले में खड़े हुए तो फिर ट्रम्प किसी का कुछ नहीं बिगाड़ पाएंगे।