भारत की अर्थ-व्यवस्था
भारत की यह अन्तर्निहित ताकत रही है कि इसकी अर्थव्यवस्था वैश्विक विपरीत परिस्थितियों में अपने बाजार के बूते पर आगे बढ़ती रही है। एेसा हमने 2008-09 में भी देखा था जब अमेरिकी बाजारों के गिरने की वजह से वैश्विक मन्दी का दौर चला था और दुनिया के बड़े-बड़े बैंक दिवालिया होने के कगार पर खड़े हो गये थे और बड़ी-बड़ी कम्पनियां कर्मचारियों की छंटनी कर रही थीं। उस समय देश के वित्त मन्त्री भारत रत्न स्व. प्रणव मुखर्जी थे। प्रणव दा ने तब भारत के राष्ट्रीयकृत बैंकों की ताकत पर देश की बैंकिंग प्रणाली को थामे रखा था और कम्पनियों से कर्मचारियों की छंटनी को रोके रखा था। उस समय उन्होंने एक फार्मूला दिया था कि बड़े-बड़े पदों पर आसीन व्यक्तियों के वेतन थोड़े कम कर दिये जायें मगर छंटनी को रोका जाये। उनका यह फार्मूला काम कर गया था और निचले पदों पर कार्यरत कर्मचारियों की नौकरियां बच गई थीं। वर्तमान में अमेरिका द्वारा भारतीय आयातित माल पर 50 प्रतिशत शुल्क लगाने से आर्थिक माहौल में कसमसाहट है। इसका मुकाबला भारत अपनी ताकत के बूते पर करने का प्रयास कर रहा है। कहा जा रहा है कि अमेरिकी कार्रवाई की वजह से भारत के निर्यात कारोबार को जबर्दस्त धक्का लग सकता है जिसकी वजह से विभिन्न क्षेत्रों में एक करोड़ के लगभग नौकरियां जा सकती हैं। अतः भारतीय राजनीतिक नेतृत्व पर इन नौकरियों को बचाने का भार आकर पड़ गया है। इसका मुकाबला करने के लिए भारत की अर्थव्यवस्था को अपनी आन्तरिक ताकत के बूते पर ही कोई उपाय खोजना होगा। एक उपाय तो यह है कि भारतीय माल के निर्यात के लिए विश्व के अन्य देशों के बाजार खोजे जायें।
भारत की सरकार इस दिशा में आगे भी बढ़ती हुई दिखाई पड़ रही है और इसने लगभग 40 देशों की एेसी फैहरिस्त तैयार की है जहां भारत का माल निर्यात किया जा सकता है। मगर इस बीच भारत की अर्थव्यवस्था बेहतरी की ओर बढ़ती भी दिखाई दे रही है क्योंकि चालू वित्त वर्ष की अप्रैल से लेकर जून तक की तिमाही में सकल उत्पादन वृद्धि दर 7.8 प्रतिशत रही है। एेसा सेवा क्षेत्र के शानदार प्रदर्शन की वजह से रहा है और कृषि क्षेत्र की स्थायी वृद्धि दर 3.7 प्रतिशत रही है। सेवा क्षेत्र की वृद्धि दर 9.3 प्रतिशत रही है जो कि पिछले दो वर्षों में सर्वाधिक है। इसके साथ ही उत्पादन क्षेत्र में भी वृद्धि दर 7.7 प्रतिशत रही है। विश्व की तमाम वित्तीय एजेंसियां कह रही हैं कि भारत एक तेजी से विकास करती अर्थव्यवस्था वाला देश है और चालू वित्त वर्ष में इसकी सकल विकास वृद्धि दर 6.5 से ऊपर रह सकती है। वित्त वर्ष की प्रथम तिमाही के आंकड़े बताते हैं कि हम यह वृद्धि दर प्राप्त कर सकते हैं मगर इस दौरान अमेरिका ने अवरोध भी पैदा कर दिया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भारत पर आर्थिक दंडात्मक कार्रवाई कर रहे हैं और कह रहे हैं कि भारत रूस से कच्चा पेट्रोलियम तेल खरीद रहा है जिससे रूस व यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध को बल मिल रहा है। ट्रम्प का यह आरोप पूरी तरह आधारहीन और वाहियात तक कहा जा सकता है क्योंकि रूस से चीन समेत यूरोपीय देश भी ऊर्जा कारोबार कर रहे हैं। जिसे देखते हुए यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि ट्रम्प भारत की तरक्की से कहीं न कहीं जरूर चिढे़ हुए हैं। मगर अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में व्यक्तिगत सम्बन्धों या मान्यताओं की बहुत ज्यादा कीमत नहीं होती। अतः ट्रम्प को एक न एक दिन अपनी गलती का एहसास जरूर होगा और उन्हें वैश्विक स्तर पर कूटनीतिक समीकरणों को साधने के लिए भारत की जरूरत पड़ेगी। एेसा चीन के सन्दर्भ में कहा जा सकता है।
जहां तक भारत के चीन से सम्बन्धों का सवाल है तो आर्थिक स्तर पर इनमें बहुत मजबूती है। यह मजबूती दोनों देशों के बीच सीमा विवाद के चलते रही है। इससे यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि चीन भारत के विशाल बाजार को छोड़ना नहीं चाहता क्योंकि वह आयात के मुकाबले चार गुना से भी अधिक निर्यात करता है। मगर भारत की आन्तरिक आर्थिक ताकत एेसी शक्ति है जिसके बल पर हम सतत रूप से आगे बढ़ सकते हैं और दुनिया को दिखा सकते हैं कि अमेरिकी धमकियों के बावजूद भारत के विकास को नहीं रोका जा सकता है। एेसा पूर्व की सरकारों ने करके दिखाया भी है लेकिन यदि चालू वित्त वर्ष की प्रथम तिमाही में उत्पादन क्षेत्र की विकास वृद्धि दर 7.7 प्रतिशत रहती है तो इसे हम अपने बूते पर ही बरकरार तभी रख सकते हैं जबकि भारतीय बाजारों में माल की मांग लगातार बढ़ती रहे क्योंकि अमेरिका को होने वाले निर्यात की मांग कम होगी। दूसरी तरफ हमारी कोशिश यह होगी कि अमेरिका से शुल्क विवाद समाप्त हो। इसकी संभावना यदि नगण्य भी रहती है तो भी भारत को घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि हमने हर संकट के समय नवाचार करके भारतीय उत्पादन को गिरने नहीं दिया है। मगर हमें मुद्रा विनिमय के मोर्चे पर सतर्क रहना होगा क्योंकि डाॅलर के मुकाबले रुपया लगातार गिर रहा है। यह 88 रुपये प्रति डाॅलर का अवरोध तोड़कर आगे निकल गया है। फिलहाल यह सब अमेरिकी कार्रवाई की वजह से हो रहा है। भारत की मुद्रा को मजबूत रखने के लिए हमें कारगर उपाय करने होंगे।