नशे के खिलाफ जंग लड़ता भारत !
क्या आपको पता है कि मेरठ की मुस्कान ने अपने प्रेमी साहिल के साथ मिलकर अपने पति…
क्या आपको पता है कि मेरठ की मुस्कान ने अपने प्रेमी साहिल के साथ मिलकर अपने पति सौरभ की निर्मम हत्या कर शव को सीमेंट के ड्रम में डाल जो निर्मम हत्या की थी, वह क्रूरता की अति तो थी ही मगर यह कम ही लोगों को पता है कि मुस्कान यह सब ड्रग्स यानी नशे के प्रभाव में कर रही थी। जेल से जो ख़बरें आ रही हैं वे यही बता रही हैं कि हत्यारिन और उसका साथी नशे के इतने आदी हो चुके हैं कि जेल में भी वे इसकी मांग कर रहे हैं। यह घटना जितनी हृदय विदारक है, उतनी ही समाज में बढ़ते नशे की लत को लेकर चिंतनीय भी है। सोचने-समझने की शक्ति को समाप्त कर देने वाले इस व्यसन से नई पीढ़ी को कैसे बचाया जाए, इसकी चिंता पूरे समाज के साथ-साथ शासन और प्रशासन को भी करनी पड़ेगी।
अपराध की जो संगठित गिरोहबाजी है उसमें सबसे बड़ी शृंखला नशे के कारोबारियों की है। किसी के पास यह निश्चित आंकड़ा नहीं है कि ड्रग्स सिंडिकेट का कारोबार कितना बड़ा है लेकिन हर देश को यह अंदाजा जरूर है कि यह गैरकानूनी धंधा पूरे संसार में सबसे बड़ा है और हर देश इससे पीड़ित है और खत्म करने के लिए जूझ भी रहे हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मानें तो केवल 2024 में भारत में 16,914 करोड़ के ड्रग्स पकड़े गए। कुछ देश ऐसे भी हैं जो इसको बढ़ावा भी दे रहे हैं लेकिन संभवतः उनके यहां सिस्टम नाम की चीज नहीं है और इन पर एक तरह से अपराधियों का ही कब्जा है। दुनिया में पांच ऐसे बड़े देश हैं जहां नशे का कारोबार सबसे अधिक फैलता है। सबसे पहले नंबर पर ईरान है, उसके बाद अफगानिस्तान, फिर रूस और अमेरिका और ब्रिटेन भी।
भारत कुछ चंद देशों में शामिल है जो ड्रग्स सिंडिकेट के निशाने पर हमेशा रहा है। एक तो दुनिया की सबसे बड़ी आबादी और दूसरे भारत की सीमाएं चीन, भूटान, नेपाल, पाकिस्तान, बंगलादेश और म्यांमार के साथ लगी होने से ड्रग्स डीलरों के लिए सबसे बड़ी और अपेक्षाकृत आसान मंडी भारत बन गया था। यह ऐसा ही था जैसे मैक्सिको और अमेरिकी सीमाओं पर होता है। उस पर भी पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ परोक्ष युद्ध में नशे की खेप को भी एक हथियार बना रखा है। गृह मंत्रालय की एक रिपोर्ट तो चौंकाने वाली थी।
दिसंबर 2024 में गृह मंत्रालय के हवाले से यह खबर छपी कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई न सिर्फ भारत में नशे की खेप भेज रहा है, बल्कि भारत की जेलों में बंद अपने हैंडलरों को खास संदेश देने के लिए नशेड़ियों की भारत में घुसपैठ भी करा रहा है। आज भारत के कई ऐसे राज्य हैं जहां नशे के सामान सबसे अधिक बेचे और इस्तेमाल किए जाते हैं। पंजाब, गोवा, मिजोरम , मेघालय तो पहले से जाने जाते हैं।
कहा तो यह भी जा रहा है कि मणिपुर समस्या की सबसे गहरी जडें़ नशे के कारोबार से जुड़ी हैं। पिछले कई दशकों से ड्रग्स माफिया और उनके नेटवर्क के लोग मणिपुर और म्यांमार के बीच नशे के कारोबार का एक गोल्डन ट्राएंगल बना रखा था लेकिन जब से केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने इस गोल्डन ट्राएंगल को डेथ ट्राएंगल में बदलने का ऐलान किया ड्रग्स माफियाओं का खेल बिगड़ने लगा और कई एजेंटों को जान से हाथ धोना पड़ा। चूंकि पहले नॉर्थ ईस्ट के राज्यों से इन ड्रग्स कारोबारियों को राजनीतिक संरक्षण मिलता रहा था, इसलिए ये ड्रग्स माफिया चुपचाप काम करते रहे लेकिन बीजेपी की केंद्र में सत्ता आने के बाद और अमित शाह की जीरो टॉलरेंस की नीति और अजित डोभाल की शराब माफियाओं पर गिद्ध की सी पैनी चौकसी के बाद अब यही ड्रग्स माफिया विद्रोह को हवा देने में जुट गए थे।
ड्रग माफियाओं से भारत ही नहीं, दुनिया के कई देश परेशान हैं। अमेरिका में सबसे अधिक ड्रग एडिक्ट लोग रहते हैं। पर संतोष की बात यह है कि अन्य बड़ी समस्याओं की तरह भारत ने भी नशे की बीमारी को गंभीरता से लिया है और मोदी सरकार ने नक्सल मुक्त भारत की तरह नशा मुक्त भारत का भी अभियान छेड़ रखा है। क्योंकि नशे का कारोबार केवल हमें आर्थिक क्षति नहीं दे रहा, बल्कि पीढ़ियों को बर्बाद कर रहा है। नशे के आदी लोग सामाजिक ताने-बाने को भी चोट पहुंचा रहे हैं। नशेड़ी मारपीट, चोरी, डकैती, बलात्कार और कुछ हत्या तक के अपराधी हैं।
केंद्र सरकार नशे की चपेट में आए लोगों के प्रति बेहद संजीदगी से पेश आ रही है। मोदी सरकार की गंभीरता इसी से पता चलती है कि केंद्र सरकार अपने संसाधन से देश में 340 से अधिक नशा मुक्ति केंद्र चला रही है। न केवल नशे की खेप को आने से रोकने के लिए रणनीतिक साझेदारी के साथ राज्य सरकारों को विश्वास में लेकर चल रही है, बल्कि पीड़ितों के साथ भी मानवीय आधार पर नशामुक्ति का अभियान चला रही है। गृह मंत्रालय के साथ-साथ इस काम में मानव संसाधन मंत्रालय, वित्त मंत्रालय और समाज कल्याण मंत्रालय के साथ-साथ राज्य भी भागीदारी कर रहे हैं। नशीले पदार्थ की एक पुड़िया भी बरामद होने के बाद नीचे से ऊपर तक की शृंखला को खोद निकाला जा रहा है।
नशे का कारोबार चूंकि एक संगठित अपराध है इसलिए इसका मुकाबला भी संयुक्त प्रयास से ही किया जा सकता है। केंद्र और राज्यों का समन्वय और इससे लगने की इच्छा शक्ति बहुत जरूरी है। यह अच्छी बात है कि केंदीय गृह मंत्री अमित शाह इस मामले में बहुत गंभीर हैं। अभी हाल ही में अमित शाह ने संसद के जरिए देश को बताया है कि उनके मंत्रालय ने राज्यों के साथ मिलकर एक चार स्तरीय नार्को कोऑर्डिनेशन सेंटर मैकेनिज्म की स्थापना की है ताकि संगठित अपराधियों के खिलाफ काम करने वाली केंद्र एवं राज्यों की एजेंसियों के बीच बेहतर तालमेल हो सके। सभी एजेंसियां एक ही दिशा में काम करें और रियल टाइम में सूचनाओं का आदान-प्रदान हो सके, इसके लिए एक खास वेब पोर्टल ‘एनसीओआरडी’ लॉन्च किया गया है। इसी तरह से एक डेडीकेटेड एंटी नार्कोटिक्स टास्क फोर्स का भी गठन किया है। बीएसएफ और असम रायफल्स जैसे अर्धसैनिक बलों को एनडीपीएस कानून के तहत ड्रग्स सिंडिकेट के खिलाफ सर्च और सीजर का अधिकार दे दिया गया है। खुद नार्कोटिक्स कंट्रोल बोर्ड नेवी, कोस्ट गार्ड और अन्य सुरक्षा एजेंसियों के साथ मिलकर एंटी नार्कोटिक्स आपरेशन कर रहा है।
पिछले कुछ वर्षों में हमें बड़ी सफलताएं भी मिली हैं। 2014 से लेकर 2024 तक एक करोड़ किलो ड्रग्स को जब्त किया गया है, जिनकी अनुमानित कीमत डेढ़ लाख करोड़ रुपए है। अमित शाह के कार्यकाल में अभी तक 6 लाख 56 हजार ड्रग्स के केस दर्ज हो चुके हैं। यह रिकॉर्ड 2014 से पहले के मुकाबले कई गुना अधिक है। पर सच्चाई यह भी है कि ड्रग्स का कारोबार रुक नहीं सका है। चोरी छुपे यह लोगों तक पहुंच रही है। इस मामले में गृह मंत्री अमित शाह की संसद में कही इस बात को भी ध्यान में रखना जरूरी है कि नशे के खिलाफ लड़ाई अकेले केंद्र सरकार नहीं जीत सकती, समाज और राज्यों को भी अपनी भूमिका निभानी होगी। यह ठीक भी है कि नशे के खिलाफ अभियान घरों की चौखट से शुरू होना चाहिए।