धर्मशाला नहीं है भारत
सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर भारत में रह रहे अवैध घुसपैठियों पर महत्वपूर्ण टिप्पणी…
सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर भारत में रह रहे अवैध घुसपैठियों पर महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। शीर्ष अदालत ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा है कि भारत कोई धर्मशाला नहीं है कि हम हर जगह से विदेशी नागरिकों का स्वागत कर सकें। हम 140 कराेड़ लोगों के साथ संघर्ष कर रहे हैं। साथ ही कोर्ट ने राष्ट्रीय सुरक्षा और सीमित संसाधनों को प्राथमिकता देते हुए अवैध घुसपैठियों के निर्वासन पर जोर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए एक श्रीलंकाई नागरिक की शरण याचिका खारिज कर दी। श्रीलंकाई नागरिक ने अपने देश में जान को खतरा बताते हुए भारत में शरण की गुहार लगाई थी। श्रीलंकाई नागरिक वीजा लेकर भारत आया था और वह गैर कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम के तहत 3 साल से जेल में है। अदालत का यह फैसला कुछ दिन पहले रोहिंग्याओं को लेकर दायर की गई याचिकाओं पर दिए गए फैसले की तर्ज पर ही है।
भारत में शरणार्थियों के आने का इतिहास कोई नया नहीं है। 1200 साल पहले फारस में धार्मिक उत्पीड़न और कट्टरवाद के कारण पारसी समुदाय के लोग गुजरात आए थे तब राजा जदीराणा ने उन्हें शरण दी थी। पारसी समुदाय भारत में ऐसे रहा जैसे पानी में नमक घुल जाता है तब से वे सम्मान के साथ यहां रह रहे हैं। भारत हमेशा दयालु रहा है लेकिन अब अवैध घुसपैिठये राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन गए हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले और बाद में लगभग 20 मिलियन लोग भारत आए। बंगलादेश की मुक्ति से पहले लगभग 10 मिलियन बंगलादेशी शरणार्थी भारत आए थे। लगभग 53 हजार चकमा पूर्वोत्तर राज्यों में आ चुके हैं। पूर्वोत्तर राज्यों में अवैध बंगलादेशी घुसपैठियों की समस्या विकराल रूप धारण कर चुकी है।
ये अवैध प्रवासी भारत की अर्थव्यवस्था, राजनीति, समाज और सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बन रहे हैं। ये बॉर्डर के इलाकों में तो बस ही चुके हैं, बल्कि उत्तर-पूर्वी राज्यों के अलावा दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु समेत देश के लगभग हर राज्य तक पहुंच चुके हैं। ऐसे लोगों का सिलीगुड़ी कॉरिडोर में बसना देश की सुरक्षा के लिए ठीक नहीं है, खासतौर पर जब चीन-पाकिस्तान के साथ बंगलादेश की नजदीकियां बढ़ रही हैं, जहां शेख हसीना को हटाए जाने के बाद कट्टरपंथियों के हौसले बढ़े हैं। 2000 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बंगलादेशी घुसपैठिये देश में 25 लोकसभा सीटों और 120 विधानसभा सीटों पर प्रभावी भूमिका में हैं। रिपोर्ट में बताया गया था कि 2003 तक दिल्ली में 6 लाख बंगलादेशी घुसपैठिये भारतीय पहचान पत्र हासिल कर चुके थे। लगभग यही स्थिति देश के कई अन्य निर्वाचन क्षेत्रों में हो सकती है। अनुमान है कि अभी 3 से 5 करोड़ अवैध बंगलादेशी घुसपैठिये भारत में रह रहे हैं। इनमें से कुछ गलत गतिविधियों में सक्रिय हो सकते हैं।
कौन नहीं जानता कि म्यांमार से आए रोहिंग्या देश के कोने-कोने में बस गए जो कई तरह के अपराधों में लिप्त हो चुके हैं। अवैध घुसपैठियों को बसाने वाले कई िगरोह सक्रिय हैं जो पैसे लेकर इनके आधार कार्ड समेत फर्जी दस्तावेज तैयार कर देते हैं। हैरानी की बात तो यह है कि कुछ मानवाधिकार संगठन और कुछ नामी-गिरामी वकीलों को रोहिंग्या निर्दोष शरणार्थी नजर आते हैं। इसी साल मार्च में संसद ने आवर्जन और विदेशी विधेयक 2025 पारित किया था। चर्चा के दौरान गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि केन्द्र सरकार उन लोगों को भारत आने से रोकेगी जिनके भारत आने के इरादे दुर्भावनापूर्ण हैं, देश कोई धर्मशाला नहीं है जो लोग राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करते हैं उन्हें देश में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। उन्होंने चेतावनी भी दी थी कि यदि घुसपैठिये अशांति फैलाते हैं तो उन्हें कड़ी सजा दी जाएगी। इसके बाद राज्यों में अवैध घुसपैठियों की पहचान का काम शुरू किया गया। हाल ही में गुजरात में हजारों की संख्या में अवैध बंगलादेशी पाए गए। दिल्ली, उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में भी घुसपैठियों की पहचान की जा रही है और उनको वािपस भेजने की प्रक्रिया जारी है। केन्द्र सरकार ने सभी राज्यों से कहा है कि एक महीने के भीतर अवैध घुसपैठियों की पहचान करे और उन्हें निर्वासित करने के लिए वैधानिक शक्तियों का इस्तेमाल करे।
समूचा भारत जानता है कि अवैध घुसपैठियों के चलते असम और पश्चिम बंगाल की जनसांख्यिकी बदल चुकी है। मूल निवासी कई क्षेत्रों में अल्पसंख्यक हो चुके हैं। शरणार्थियों और अप्रवासी आबादी में बढ़ौतरी के कारण त्रिपुरा जैसे राज्यों की मूल आबादी अपनी ही भूमि पर अल्पसंख्य बन गई है जिसके परिणामस्वरूप अतीत में उग्रवाद की समस्याएं पैदा हुई थीं। जब भारत में साधन सीमित हों और अपने ही देश की आबादी लगातार बढ़ रही हो तो क्या घुसपैठियों को शरण देना अपने पर बोझ डालने के समान नहीं होगा। भारत ने सदियों से दुनियाभर के सताए लोगों को शरण दी है लेकिन आज की परिस्थितियां बिल्कुल अलग हैं। अवैध घुसपैठिये राष्ट्रीय हितों पर चोट ही कर रहे हैं। केन्द्र सरकार ने 6 पड़ोसी देशों के प्रताड़ित लोगों को नागरिकता संशोधन कानून के माध्यम से शरण दी है लेकिन जो कानून तोड़ेंगे उनसे कठोरता से निपटना बहुत जरूरी है। देश के हर नागरिक को सतर्क होकर स्वयं अपने पास-पड़ोस के लोगों की पहचान करनी होगी।