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वैज्ञानिक शोध में पिछड़ता भारत

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12:23 AM Jan 06, 2019 IST | Desk Team

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वैज्ञानिक शोध के विश्लेषण से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय संगठन ने दुनिया के 4 हजार सबसे योग्य वैज्ञानिकों की सूची जारी की है। इसमें भारत के भी दस वैज्ञानिक शामिल किए गए हैं। क्लेरिंवेट एनालिटिक्स नामक इस संगठन की पिछले वर्ष की सूची में पांच भारतीय वैज्ञानिकों को शामिल किया गया था। इस वर्ष यह संख्या दोगुनी हो गई है। इस सूची में भारत के सीएनआर राव का नाम शामिल है, वे जाने-माने वैज्ञानिक होने के अलावा देश के प्रधानमंत्री वैज्ञानिक सलाहकार परिषद के सदस्य भी रहे हैं और भारत रत्न से नवाजे भी जा चुके हैं। उनके अलावा आईआईटी मद्रास के रजनीश कुमार और जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रो. दिनेश मोहन, एनआईटी भोपाल के दो वैज्ञानिक अजय मित्तल और ज्योति मित्तल को भी शामिल किया गया है। सूची में जगह बनाने वालों में कुछ अन्य भारतीय संस्थानों के वैज्ञानिक भी शामिल हैं। वैज्ञानिक शोध के मामले में चीन इससे काफी आगे है।

वह 482 वैज्ञानिकों की संख्या के साथ सूची में तीसरे नम्बर पर है। उससे आगे केवल अमेरिका और ब्रिटेन है जो क्रमशः 2,639 और 546 वैज्ञानिकों के साथ पहले और दूसरे नम्बर पर है। सूची में शामिल भारतीय वैज्ञानिकों ने इस बात पर चिन्ता जताई है कि भारत का अकादमिक ढांचा ऐसा है कि यहां विज्ञान के क्षेत्र में ज्यादा शोध नहीं हो पाता और वैज्ञानिकों को उचित सम्मान भी नहीं दिया जाता। विज्ञान के क्षेत्र में शोध और अनुसंधान पर सकल घरेलू उत्पाद का एक प्रतिशत से भी कम खर्च किया जा रहा है। सरकार हर वर्ष बजट में शोध एवं अनुसंधान कार्यों के लिए धन का प्रावधान भी करती है और ऐसे कार्यों के लिए टैक्स में छूट भी देती है लेकिन नौकरशाही की उदासीनता, नियुक्तियों में अनि​यमितताओं और उचित माहौल न होने के कारण भारत आगे नहीं बढ़ रहा।

तमाम बाधाओं के बावजूद भारत अंतरिक्ष विज्ञान में प्रगति कर रहा है। अब चंद्रयान और मानवयुक्त गगनयान परियोजना पर काम चल रहा है। हमारे पास अत्याधुनिक संचार उपग्रह है, हमारे पास तमाम तरह की रिमोट सेसिंग तकनीक है। देश के सामाजिक, आर्थिक विकास में अंतरिक्ष कार्यक्रम की भूमिका लगातार बढ़ रही है। इस सबके बावजूद विज्ञान और तकनीक हमारे सार्वजनिक विमर्श का हिस्सा नहीं है। फिल्में बालीवुड की हों या हालीवुड की उससे वैज्ञानिक या तो मनुष्य को गायब करने के फार्मूले ईजाद करते दिखाई देते हैं या फिर दुनिया को तबाह करने के फार्मूले बनाते नज़र आते हैं। हम सब-कुछ फैटेंसी में देखते हैं। विज्ञान वह पद्धति है जो रास्ते बनाती हैं, वह हमारे समाज में कहां है। आधुनिक विज्ञान की क्रांति यूरोप के जिस दौर से हुई उसे एज ऑफ डिस्कवरी कहते हैं। ज्ञान-विज्ञान आधारित इस क्रांति के साथ भी भारत को क सम्पर्क एशिया के किसी दूसरे समाज के मुुकाबले सबसे पहले हुआ।

जगदीश चंद्र बोस को आधुनिक भारत का पहला प्रतिष्ठित वैज्ञानिक मान सकते हैं। वे देश के पहले वैज्ञानिक थे जिन्हें भौतिकी, जीव विज्ञान, वनस्पति विज्ञान तथा पुरातत्व का गहरा ज्ञान था और उन्होंने एक अमेरिकन पेटेंट प्राप्त किया था। उनके साथ प्रफुल्ल चंद्र राय भी हुए जिन्होंने देश की पहली फार्मास्यूटीकल कम्पनी बनाई। सन् 1928 में सीबी रामन को जब नोबल पुरस्कार मिला तो यूरोप और अमेरिका की सीमा पहली बार टूटी थी। इंडियन साईंस कांग्रेस भी 1914 से काम कर रही है। यह भी सच है कि भारत के जितने भी प्रतिष्ठित वैज्ञानिक हुए उन्होंने विदेश में जाकर ही नाम कमाया। हमने विज्ञान और इनोवेशन को वह महत्व ही नहीं दिया। हमने आईआईटी खोले, तीन एनआईटी हैं। पांच लाख इंजीनियर हर साल बाहर निकलते हैं।

केवल विश्वविद्यालय खोलने से काम नहीं होता। शिक्षा की गुणवत्ता ज्यादा जरूरी है। आज आधारभूत विज्ञान में छात्रों की दिलचस्पी कम हो रही है। विज्ञान में छात्रों की दिलचस्पी कम हो रही है। वे कामर्स और मैनेजमैंट पढ़ना चाहते हैं। ऐसा क्यों है, इस बारे में गंभीरता से मंथन करना होगा। देखना होगा कि यूरोप, अमेरिका, चीन, ब्रिटेन जर्मनी ने ऐसा क्या किया जाे वे वैज्ञानिक प्रगति कर पाए। जापान, ताईवान, हांगकांग, इस्राइल भी हमसे आगे हैं। वैज्ञानिकता पूरे समाज की विरासत होती है। ऐसा नहीं है कि कुछ प्रतिष्ठित नाम हमारे पास भी हैं लेकिन व्यक्तिगत उपलब्धियां हासिल करने में पिछड़ रहे हैं। जालन्धर में 106वीं इंडियन साईंस कांग्रेस चल रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी उद्घाटन अवसर पर कहा कि आज भी हमारे विश्वविद्यालयों में शोधपरक वातावरण विकसित नहीं हो पाया।

शोध कार्यों को बढ़ावा देने आैर समस्याओं के सस्ते और स्थानीय समाधान खोजने के लिए राज्यों के विश्वविद्यालय और वहां स्थित संस्थानों में शोध को बढ़ावा देना होगा। विज्ञान को आम लोगों और कृषि क्षेत्र से जोड़ना होगा। उन्होंने वज्ञानिकों से लोगों का जीवन आसान बनाने के लिए कम वर्षों वाले क्षेत्रों में सूखा प्रबंधन, आपदा चेतावनी प्रणाली कुपोषण से निपटने, रोगों से निपटने जैसे क्षेत्रों में अनुसंधान करने का आग्रह किया। प्रतिभाशाली युवाओं को प्रधानमंत्री रिसर्च फेलो योजना के तहत सीधे पीएचडी में प्रवेश मिल सकेगा। मेधावी छात्र आज भी हैं लेकिन मर्माहत कर देने वाली बात यह है कि हम उनकी मदद नहीं कर पा रहे। सरकार बच्चों को मध्याह्न भोजन दे देती है लेकिन उन्हें विज्ञान के लिए उपकरण भी चाहिए होते हैं। अभी इसे इस दिशा में बहुत काम करना होगा।

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