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भारत को प्रवचन नहीं, भागीदार चाहिए: एस. जयशंकर का यूरोप को दो-टूक संदेश

भारत की साझेदारी की मांग पर जयशंकर का जोर

10:41 AM May 04, 2025 IST | Aishwarya Raj

भारत की साझेदारी की मांग पर जयशंकर का जोर

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने आर्कटिक सर्कल इंडिया फोरम 2025 में यूरोपीय देशों को स्पष्ट संदेश दिया कि भारत को प्रवचन नहीं, बल्कि भागीदार चाहिए। उन्होंने कहा कि बदलती दुनिया में सलाह की बजाय अमल आवश्यक है और यूरोप को इस नई बहुपक्षीय दुनिया को समझने की जरूरत है।

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने रविवार को आर्कटिक सर्कल इंडिया फोरम 2025 में यूरोपीय देशों को स्पष्ट संदेश देते हुए कहा कि भारत अब ऐसा देश है जो प्रवचन सुनने नहीं, बल्कि वास्तविक साझेदारियाँ चाहता है। उन्होंने कहा कि जब दुनिया में बड़े बदलाव हो रहे हैं, तब कुछ देशों को यह समझना होगा कि केवल सलाह देना पर्याप्त नहीं है, अपने सुझावों पर अमल करना भी जरूरी है। उन्होंने यूरोप से यह सवाल किया कि क्या वे बदलती बहुपक्षीय दुनिया को समझने और उसके अनुरूप ढलने को तैयार हैं। जयशंकर का यह बयान ऐसे समय आया है जब भारत की अंतरराष्ट्रीय भूमिका और ध्रुवीय क्षेत्रों में उपस्थिति लगातार बढ़ रही है।

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बहुध्रुवीय दुनिया में भारत की बढ़ती भूमिका

जयशंकर ने कहा, “हम उस स्थिति में पहुंच चुके हैं जहां दुनिया के किसी भी कोने में घटने वाली घटनाएं हमारे लिए मायने रखती हैं। अमेरिका अब पहले की तुलना में अधिक आत्मनिर्भर हो चुका है, जबकि यूरोप को आज बदलती दुनिया के अनुरूप खुद को ढालने का दबाव महसूस हो रहा है।”

उन्होंने यह भी जोड़ा कि चीन अपनी ही दिशा में आगे बढ़ रहा है, और हम एक ऐसी दुनिया की ओर बढ़ रहे हैं जो पहले से कहीं अधिक प्रतिस्पर्धात्मक और जटिल होगी।

साझेदारी बनाम प्रवचन

अपने भाषण में उन्होंने स्पष्ट कहा, “जब हम दुनिया की ओर देखते हैं, तो हम साझेदार ढूंढते हैं, उपदेशक नहीं। खासकर ऐसे उपदेशक जो खुद अपनी बातों पर अमल नहीं करते।”उन्होंने यह इंगित किया कि कुछ यूरोपीय देश अभी भी पुरानी वैश्विक व्यवस्था में अटके हुए हैं और उन्हें आज की सच्चाई के साथ तालमेल बिठाने में कठिनाई हो रही है। अगर भारत के साथ सार्थक सहयोग चाहिए, तो उसे समझ, संवेदनशीलता और परस्पर हितों की मान्यता पर आधारित होना होगा।

आर्कटिक में भारत की मजबूत उपस्थिति

विदेश मंत्री ने बताया कि भारत ने हाल ही में एक समर्पित आर्कटिक नीति बनाई है और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को भी मजबूत किया है। स्वालबार्ड (नॉर्वे) में भारत की गतिविधियाँ बढ़ रही हैं, और भारत ने KSAT (Kongsberg Satellite Services) के साथ साझेदारी की है जो अंतरिक्ष संबंधी कार्यों के लिए महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि भारत पिछले 40 वर्षों से अंटार्कटिका में सक्रिय है और अब आर्कटिक क्षेत्र में भी सक्रिय भागीदार के रूप में उभर रहा है।

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आर्कटिक का वैश्विक प्रभाव और भारत की चिंता

जयशंकर ने कहा, “हम दुनिया की सबसे युवा आबादी वाले देश हैं। ऐसे में आर्कटिक में जो कुछ भी होगा, वह सीधे भारत को प्रभावित करेगा।” उन्होंने यह भी कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण आर्कटिक में नए समुद्री मार्ग खुल रहे हैं, और इसके प्राकृतिक संसाधन और तकनीकी प्रभाव वैश्विक अर्थव्यवस्था को पुनर्परिभाषित कर सकते हैं।

“जैसे-जैसे हमारी अर्थव्यवस्था तेज़ी से बढ़ रही है, आर्कटिक क्षेत्र में हो रहे बदलाव हमारे लिए अत्यंत महत्व रखते हैं,” उन्होंने जोड़ा।

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