हरे कृष्ण मंदिर विवाद खत्म, सुप्रीम कोर्ट ने इस्कॉन बेंगलुरु के पक्ष में सुनाया फैसला
इस्कॉन बेंगलुरु को सुप्रीम कोर्ट से मिली ऐतिहासिक जीत
सुप्रीम कोर्ट ने दशकों पुराने इस्कॉन बेंगलुरु और इस्कॉन मुंबई के विवाद में फैसला सुनाते हुए बेंगलुरु के हरे कृष्ण मंदिर को इस्कॉन बेंगलुरु के अधीन माना। कोर्ट ने कर्नाटक हाईकोर्ट के निर्णय को पलटते हुए कहा कि इस्कॉन बेंगलुरु एक स्वतंत्र संस्था है, न कि इस्कॉन मुंबई की शाखा। यह निर्णय श्रील प्रभुपाद के सिद्धांतों को संरक्षित करता है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस्कॉन बेंगलुरु और इस्कॉन मुंबई के बीच दशकों से चले आ रहे विवाद में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बेंगलुरु का हरेकृष्ण हिल मंदिर इस्कॉन बेंगलुरु के अधीन रहेगा और इस्कॉन मुंबई का इस पर कोई अधिकार नहीं होगा। इस फैसले के साथ सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हाईकोर्ट के उस निर्णय को भी पलट दिया, जिसमें बेंगलुरु मंदिर को इस्कॉन मुंबई के स्वामित्व में माना गया था। सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि इस्कॉन बेंगलुरु इस्कॉन मुंबई की शाखा नहीं, बल्कि एक स्वतंत्र संस्था है। यह फैसला शुक्रवार को जस्टिस अभय एस. ओक और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने सुनाया। मामले की सुनवाई 15 फरवरी 2016 को सुप्रीम कोर्ट में शुरू हुई थी और आठ साल बाद 24 जुलाई 2024 को सुनवाई पूरी होने के बाद निर्णय सुरक्षित रखा गया था। विवाद की जड़ इस्कॉन के संस्थापक श्रील प्रभुपाद भक्तिवेदांत स्वामी के 1977 में महासमाधि लेने के बाद उनके शिष्यों के बीच सिद्धांतों और प्रशासनिक नियंत्रण को लेकर शुरू हुई असहमति में है। इस्कॉन बेंगलुरु ने दावा किया था कि वह एक स्वायत्त इकाई है, जबकि इस्कॉन मुंबई इसे अपनी शाखा मानता था।
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इस्कॉन बेंगलुरु के अध्यक्ष मधु पंडित दास ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा, “यह श्रील प्रभुपाद के हरे कृष्ण आंदोलन के लिए ऐतिहासिक क्षण है। 1977 में उनके महासमाधि लेने के बाद इस्कॉन मुंबई ने उन शिष्यों को निष्कासित करने की कोशिश की जो श्रील प्रभुपाद को एकमात्र गुरु मानते थे। उन्होंने हमारी संपत्ति पर दावा किया और हमें बाहर करने की धमकी दी। सुप्रीम कोर्ट ने आज स्पष्ट किया कि बेंगलुरु की पंजीकृत इस्कॉन सोसाइटी ही मंदिर की मालिक है।”
मधु पंडित दास ने कहा, “यह लड़ाई संपत्ति से ज्यादा आध्यात्मिक और नैतिक भ्रष्टाचार के खिलाफ थी। इस्कॉन मुंबई ने हमें बाहर करने और हमारी संपत्ति हड़पने की कोशिश की, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने माना कि बेंगलुरु की पंजीकृत इस्कॉन सोसाइटी ही मंदिर की मालिक है। कोर्ट ने इस्कॉन मुंबई की अपील को खारिज करते हुए उनके हस्तक्षेप पर रोक लगा दी। यह फैसला इस्कॉन बेंगलुरु को अपने मिशन को और विस्तार देने की स्वतंत्रता देता है। यह निर्णय न केवल संपत्ति विवाद को समाप्त करता है, बल्कि श्रील प्रभुपाद के सिद्धांतों को संरक्षित करने में इस्कॉन बेंगलुरु की जीत को रेखांकित करता है।”