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भारत का सामर्थ्य

झटकों को बर्दाश्त करने की क्षमता बरसों की आर्थिक नीतियों का परिणाम होती है। इस मामले में भारतीय अर्थव्यवस्था ने निश्चित रूप से बड़ी दूरी तय की है।

02:58 AM Jul 14, 2022 IST | Aditya Chopra

झटकों को बर्दाश्त करने की क्षमता बरसों की आर्थिक नीतियों का परिणाम होती है। इस मामले में भारतीय अर्थव्यवस्था ने निश्चित रूप से बड़ी दूरी तय की है।

भारत का सामर्थ्य
झटकों को बर्दाश्त करने की क्षमता बरसों की आर्थिक नीतियों का परिणाम होती है। इस  मामले में भारतीय अर्थव्यवस्था ने निश्चित रूप से बड़ी दूरी तय की है। राजनीतिक दृष्टि से देखना हो तो हम स्थिरता और मुश्किल फैसलों को लागू करने की राजनीतिक इच्छा शक्ति को परख सकते हैं। आर्थिक मोर्चे पर परीक्षण करने के लिए अनेक कारक हैं। अब जबकि भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान, श्रीलंका और नेपाल की अर्थव्यवस्थाएं खोखली हो चुकी हैं। लेकिन भारत सामर्थ्यवान होकर उभर रहा है। कोरोना महामारी ने सभी देशों की अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है।
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भारत में उभरने की क्षमता निवेश के रुपए या जीडीपी में बढ़ौतरी के प्रतिशत व्यक्त करते हैं। अर्थव्यवस्था को झटके कभी बाहरी तो कभी आंतरिक तौर पर लगते ही रहते हैं। 1991  में भारत को बाहरी झटका लगा था, जिसका कारण पहला खाड़ी युद्ध था। अर्थव्यवस्था काे झटका कभी सूखा और कभी बाढ़ से भी लगता रहा है। इसके बावजूद भारत तमाम झटकों से उभर आया और फिर अपने पांव पर खड़ा हो गया। पिछले 8 वर्षों में अर्थव्यवस्था को बड़े घरेलू और बाहरी झटकों का सामना करना पड़ा। कुछ झटके सकारात्मक थे तो कुछ झटके नकारात्मक। हालिया झटकों में कोरोना महामारी भी है। यूक्रेन से चल रहा युद्ध भी बड़ी चुनौती के रूप में हमारे सामने खड़ा है। लेकिन अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर अब एक और अच्छी खबर आई है। जहां एक ओर  फुटकर महंगाई से मामूली राहत मिली है वहीं औद्योगिक उत्पादन में जबरदस्त उछाल आया है।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक खुदरा महंगाई नरम होकर 7.01 प्रतिशत पर आ गई है, जो मई के महीने में 7.04 प्रतिशत थी। यह कीमतों के दबाव को कम करने के लिए केन्द्र सरकार द्वारा उठाए गए कई उपायों के बावजूद है। जून में सालाना आधार पर भारत की खुदरा महंगाई दर थोड़ी कम रही। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक खुदरा महंगाई नरम होकर 7.01 प्रतिशत पर आ गई है, जो मई के महीने में 7.04 प्रतिशत थी। वहीं अप्रैल की बात करें तो महंगाई की दर 7.79 प्रतिशत थी। देश में कोविड के बाद महंगाई का स्तर बढ़ गया था जिसके कारण अर्थव्यवस्था को झटका लगा था लेकिन सरकार की नीतियों के कारण महंगाई पर काबू पाने में लगभग कामयाबी मिल गई है। हालांकि अभी खाद्य सैक्टर में थोड़ी चिन्ताएं हैं लेकिन सरकार इस बारे में भी कार्य कर रही है जो लगातार नीचे आ रही है।
जून के माह में महंगाई पर ये नरमी तब दिख रही है, जब केन्द्र सरकार की ओर से ​कीमतों के दबाव को कम करने के लिए कई उपाय किए गए हैं। सरकार के तमाम उपायों के बावजूद अब भी महंगाई दर आरबीआई के लक्ष्य से ज्यादा है। आपको बता दे कि लगातार छह माह से महंगाई की दर आरबीआई की ​निर्धारित सीमा से ज्यादा है। आरबीआई की निर्धारित सीमा 6 फीसदी है। इस बीच मई 2022 के इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन के आंकड़े भी जारी ​कर दिए गए हैं। मई माह में भारत का इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन या औद्योगिक उत्पादन 19.6 प्रतिशत बढ़ा। मई 2022 में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का उत्पादन 20.6 प्रतिशत बढ़ा। वहीं माइनिंग उत्पादन की बात करें तो 10.9 प्रतिशत और बिजली उत्पादन में 23.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
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यहां तक महंगाई का सीधा संबंध पर्चेजिंग पावर से है। उदाहरण के लिए यदि महंगाई दर 7 प्रतिशत है तो अर्जित किए गए 100 रुपए का मूल्य 93 रुपए होगा। रूस और  ब्राजील को छोड़ कर लगभग हर देश में ब्याज दरें नेगेटिव हैं। ब्याज दरों के नेगेटिव होने का मतलब यह है कि फिक्स डिपोजिट पर महंगाई दर से कम ब्याज मिलता है। रिजर्व बैंक के हस्ताक्षेप के बाद अब कुछ बैंकों ने एफडी पर ब्याज दरें बढ़ाई हैं। इससे भी उपभोक्ताओं को कुछ राहत ​मिलेगी। महंगाई का बढ़ना और घटना प्रोडक्ट को डिमांड और सप्लाई पर पड़ता है। अगर लोगों के पास ज्यादा पैसे होंगे तो लोग ज्यादा चीजें खरीदेंगे। ज्यादा चीजें खरीदने से चीजों की डिमांड  बढ़ेगी। अब जबकि औद्योगिक उत्पादन बढ़ रहा है यह अर्थव्यवस्था के लिए अच्छे  संकेत हैं। वैसे भी अगस्त माह में रक्षा बंधन के साथ ही त्यौहारी सीजन शुरू हो जाता है। क्योंकि अब कोरोना महामारी की किसी लहर की आशंका नहीं है तो निर्माता  अपने-अपने माल का उत्पादन बढ़ाएंगे जिसके लिए उन्हें अधिक श्रम की जरूरत पड़ेगी। उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले दिनों  में महंगाई से थोड़ी और राहत ​मिलेगी और  बाजार इस बार गुलजार होंगे।
भारत की आर्थिक गतिविधियों की विविधता, खाद्य पदार्थों और विदेशी मुद्रा के पर्याप्त भंडार और  सरकार द्वारा वित्त  पोषित कल्याण योजनाओं के रूप में अर्थव्यवस्था में समुचित क्षमता है, जो उसे पटरी से नहीं उतरने देती। कल्याण योजनाओं में एक उदाहरण मुफ्त अनाज योजना है जो दो साल से अधिक समय से चल रही है और इसने आबादी के बड़े हिस्से की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
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