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समंदर में भारत की ताकत

भारत पानी के भीतर अपनी युद्ध क्षमता और अपनी ताकत बढ़ाने के उद्देश्यों को लगातार हासिल करता जा रहा है। भारतीय नौसेना की ताकत बढ़ाने के लक्ष्य के पीछे चीन की बढ़ती आक्रामकता और हठधर्मिता सबसे महत्वपूर्ण कारण है।

02:34 AM Oct 16, 2022 IST | Aditya Chopra

भारत पानी के भीतर अपनी युद्ध क्षमता और अपनी ताकत बढ़ाने के उद्देश्यों को लगातार हासिल करता जा रहा है। भारतीय नौसेना की ताकत बढ़ाने के लक्ष्य के पीछे चीन की बढ़ती आक्रामकता और हठधर्मिता सबसे महत्वपूर्ण कारण है।

समंदर में भारत की ताकत
भारत पानी के भीतर अपनी युद्ध क्षमता और अपनी ताकत बढ़ाने के उद्देश्यों को लगातार हासिल करता जा रहा है। भारतीय नौसेना की ताकत बढ़ाने के लक्ष्य के पीछे चीन की बढ़ती आक्रामकता और हठधर्मिता सबसे महत्वपूर्ण कारण है। हिन्द महासागर में उसकी बढ़ती सैन्य मौजूदगी भारत के लिए हमेशा चिंता का विषय रही है। हिन्द प्रशांत क्षेत्र में चीन द्वारा अपने बंदरगाह और सैन्य ठिकाने बढ़ाने के दृ​ष्टिगत भारत के साथ-साथ बड़ी सैन्य शक्तियां भी चिंतित हैं। पिछले वर्ष भारत ने जल में अपनी ताकत बढ़ाने के उद्देश्य से 6 अत्याधुनिक पनडु​ब्बियों के निर्माण का फैसला किया था। इस योजना पर 43 हजार करोड़ रुपए की लागत आएगी। भारत न केवल जल में बल्कि नभ और थल में भी अपनी ताकत बढ़ा रहा है। भारत शुरू से ही इस रणनीति पर चलता आया है कि हम पहले परमाणु हथियारों का इस्तेमाल नहीं करेंगे। अगर दुश्मन ने हरकत की तो फिर छोड़ेंगे भी नहीं। एक तरफ अत्याधुनिक राफेल फाइटर जेट और स्वदेशी अटैक हेलीकॉप्टर प्रचंड को शामिल किया गया है। अब बंगाल की खाड़ी में 6000 टन वजनी पनडुब्बी आईएनएस अरिहंत से बैलिस्टिक मिसाइल का सफल परीक्षण किया गया। यह वैलिस्टिक मिसाइल सबमरीन समंदर के नीचे से ही चीन और पाकिस्तान को टारगेट कर सकती है। इससे एक बात और साफ हो गई है कि स्वदेशी आईएनएस अरिहंत श्रेणी की सबमरीन हर पहलू पर काम करना शुरू कर चुकी है और यह दुश्मन के ​िलए सबसे बड़ी चेतावनी भी है। इससे पाकिस्तान और चीन को बड़ा संदेश गया है। मिसाइल की मारक क्षमता 50 किलोमीटर तक दुश्मन को टारगेट करने की है। अरिहंत पनडुब्बी कम दूरी की 15 मिसाइलों से लैस है। 3500 किलोमीटर की दूरी तक मार करने वाली मिसाइल का ट्रायल पहले ही पूरा किया जा चुका है।
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अमेरिका, रूस, यूके, फ्रांस और चीन के बाद भारत दुनिया का छठा ऐसा देश है जिसके पास बैलिस्टिक मिसाइल से लैस परमाणु पनडुब्बी है। यह परीक्षण ऐसे समय में किया गया है जब भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में तनातनी बरकरार है और दोनों देशों ने 50 हजार सैनिकों की तैनाती कर रखी है। बड़े हथियार मोर्चों पर लगाए गए हैं। बैलिस्टिक मिसाइलों को लेकर पूरी योजना भारत की परमाणु प्रतिरोधक क्षमता का एक प्रमुख अंग है। यह भारत की विश्वसनीय न्यूनतम प्रतिरोध नीति को ध्यान में रखते हुए एक मजबूत, टिकाऊ और सुनिश्चित जवाबी क्षमता की पुष्टि करता है। भारत के पास फिलहाल एकमात्र परमाणु बैलिस्टिक सबमरीन है जिसे 2009 में लांच किया गया था और बिना किसी शोर-शराबे के भारत ने इस परमाणु पनडुब्बी को जंगी बेड़े का हिस्सा बना दिया था। अरिहंत पनडुब्बी से पहले भारत के पास एक दूसरी पनडुब्बी थी। आईएनएस चक्र जो रूस से 10 वर्ष के लिए लीज पर ली गई थी, लेकिन उससे परमाणु बैलिस्टिक मिसाइल नहीं दागी जा सकती थी। भारत अब दूसरी परमाणु पनडुब्बी अरिघात पर भी काम कर रहा है।
हर देशवासी को इस बात पर गर्व होगा कि भारत की परमाणु त्रिशक्ति पूरी हो चुकी है। भारत जल, थल और आकाश तीनों से परमाणु हथियारों का इस्तेमाल कर सकता है। भारत के पास आईएनएस पनडुब्बी तो है ही, तो जमीन से लांच करने वाली इंटरकॉन्टिनेंटल मिसाइल ‘अग्नि’ भी है और सुखोई फाइटर जेट से दागे जाने वाली सुपर सोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस भी है। पिछले महीने सितम्बर में ही भारत का स्वदेशी एयर क्राफ्ट कैरियर आईएनएस विक्रांत को जंगी बेड़े में शामिल किया गया है। स्वदेशी तकनीक से बने विक्रांत को देखकर दुश्मन सेना रंज खाने को मजबूर होगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब इस युद्ध पोत को राष्ट्र को समर्पित किया तो उन्होंने इसे भारत की ऐसी शक्ति बताया ​जो युद्धपोत से ज्यादा एक तैरता हुआ शहर है। आईएनएस विक्रांत के हर भाग की एक खूबी है, एक ताकत है, अपनी एक विकास यात्रा भी है जो स्वदेशी सामर्थ्य, स्वदेशी संसाधन और स्वदेशी कौशल का प्रतीक है। आईएनएस विक्रांत की 76 प्रतिशत चीजें भारत में बनी हैं। इसमें 2200 कम्पार्टमैंट हैं और एक बार में 1600 से ज्यादा नौसैनिक रह सकते हैं। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह रक्षा उत्पादन के  मामले में देश को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में लगातार काम कर रहे हैं और इस दिशा में भारत को काफी सफलता भी मिल रही है। समंदर में चीन हर जगह अपनी दादागिरी दिखा रहा है। दक्षिण चीन समुद्र में भी वह अपनी ताकत बढ़ा रहा है। एशिया में सैन्य संतुलन बनाए रखने के लिए अमेरिका के पास क्षेत्र में सक्रिय होने के अलावा अन्य विकल्प नहीं है। क्योंकि यह काम वह अकेले नहीं कर सकता, इसलिए अमेरिका ने  सहयोगियों के साथ मेल-जोल ​किया है। चतुर्भुज सुरक्षा संवाद यानि क्वाड बनाया गया है जिसमें अमेरिका, आस्ट्रेलिया, जापान और भारत शामिल हैं। क्वाड मंच को चीन के बढ़ते समुद्री दावों के मुकाबलों में शक्तिशाली मंच के रूप में देखा जाता है। जापान क्वाड एकता का प्रमुख सरप्रस्त है।
क्योंकि अब युद्धों का स्वरूप बदल गया है। दुनिया रूस-यूक्रेन युद्ध में परमाणु हमलों को लेकर आशंकित है। बार-बार यह आशंका जताई जा रही है कि रूस परमाणु हमला कर सकता है और 1962 के क्यूबा मिसाइल संकट के बाद पहली बार ऐसा खतरा पैदा हुआ है। वर्तमान स्थिति में भारत को परमाणु हमलों से बचने और अपनी सुरक्षा की रणनीति को ठोस बनाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है। आईएनएस अरिहंत देश के उन दुश्मनों से बचाएगा जो भारत पर परमाणु हमला करने की ताकत रखते हैं, बल्कि यह समुद्र से किसी भी शहर को बर्बाद करने की क्षमता वाली मिसाइल छोड़ सकते हैं और सबसे बड़ी बात यह है कि इसे ​बहुत जल्दी ​डीटेक्ट भी नहीं किया जा सकता। हम भारतीय नौसेना की शक्ति को सलाम करते हैं।
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आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
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