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सेमीकंडक्टर की दौड़ में भारत के मजबूत कदम

04:15 AM Sep 12, 2025 IST | Aakash Chopra
पंजाब केसरी के डायरेक्टर आकाश चोपड़ा

पिछले सप्ताह सेमीकॉन इंडिया 2025 के उद्घाटन और पीएम नरेंद्र मोदी के इस इवेंट में शिरकत करने के बाद सेमीकंडक्टर चिप को लेकर हलचल तेज हो गई है। पीएम मोदी का कहना है कि सरकार ‘भारत सेमीकंडक्टर मिशन’ और उसको तैयार करने से जुड़ी प्रोत्साहन योजना के अगले फेज पर काम कर रही है। सेमीकॉन इंडिया 2025 के उद्घाटन के मौके पर पीएम मोदी ने कहा, ”हम भारत सेमीकंडक्टर मिशन के अगले चरण पर काम कर रहे हैं। वह दिन दूर नहीं जब भारत में बनी सबसे छोटी चिप दुनिया में सबसे बड़ा बदलाव लाएगी। सरकार नई डीएलआई (डिजाइन-लिंक्ड इंसेंटिव) योजना को आकार देने जा रही है। मोबाइल, कंप्यूटर, राउटर, कार, सैटेलाइट जैसे एडवांस्ड डिजिटल डिवाइस का ‘दिमाग’ सेमीकंडक्टर चिप है। जी हां, इन सब आधुनिक डिवाइसेज की ताकत इस एक छोटी-सी चिप में बसती है।
आज हम जिस डिजिटल दुनिया में जी रहे हैं, उसकी धड़कन सेमीकंडक्टर चिप हैं। मोबाइल फोन से लेकर इंटरनेट, कारों से लेकर मिसाइल और अंतरिक्ष यानों तक हर एडवांस तकनीक का दिमाग यही सेमीकंडक्टर चिप है। दुनिया भर के देशों में सेमीकंडक्टर चिप के बाजार पर कब्जा करने की होड़ मची है। ‘विक्रम’ 32 बिट प्रोसेसर और चार सेमीकंडक्टर टेस्ट चिप बनाकर भारत ने भी इस दिशा में कदम बढ़ा दिया है।
सेमीकंडक्टर चिप का इस्तेमाल मोबाइल फोन, कंप्यूटर, लैपटाप, कार, इलेक्ट्रिक वाहन, टीवी, वाशिंग मशीन से लेकर इंटरनेट, क्लाउड और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तक में होता है। विशेषज्ञों के मुताबिक, वैश्विक सेमीकंडक्टर बाजार करीब 600 अरब डालर (करीब 52 लाख करोड़) का है। 2030 तक इस बाजार के एक ट्रिलियन डालर यानी करीब 80 लाख करोड़ रुपए तक पहुंचने की संभावना है। फिलहाल दुनिया में कहीं भी सेमीकंडक्टर चिप बन रही है, उसमें भारतीय इंजीनियरों का कुछ न कुछ योगदान जरूर होता है। विशेषज्ञों के मुताबिक, ग्लोबल डिजाइन सेंटर में बड़ी तादात में आपको भारतीय इंजीनियर मिलेंगे। अभी तक हम ग्लोबल कंपनियों के लिए काम कर रहे थे, लेकिन अब उत्पादन और डिजाइन हमारे होंगे। भारत में इस वक्त सेमीकंडक्टर का बाजार करीब दो लाख करोड़ का है, जो 2030 तक बढ़कर करीब 5 लाख करोड़ को पार कर जाएगा। फिलहाल ताइवान दुनिया की करीब 60 फीसद चिप बनाता है। डिजाइन और इनोवेशन के मामले में अमेरिका का दबदबा है और चीन तेजी से बड़े पैमाने पर सेमीकंडक्टर चिप बना रहा है। भारत सरकार ने सेमीकंडक्टर क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लिए कई योजनाएं बनाई हैं। इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन के तहत चिप निर्माण के लिए 76,000 करोड़ रुपये के प्रोत्साहन की घोषणा की गई है। इसमें से 65,000 करोड़ रुपये चिप निर्माण के लिए और 10,000 करोड़ रुपये मोहाली स्थित सेमीकंडक्टर प्रयोगशाला के आधुनिकीकरण के लिए आवंटित किए गए हैं।
डीप टेक भारत 2025 यह पहल आईआईटी कानपुर में शुरू की गई है, जिसका उद्देश्य आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, सेमीकंडक्टर, क्वांटम टेक्नोलॉजी और बायोसाइंसेज जैसे क्षेत्रों में नवाचार को बढ़ावा देना है। राष्ट्रीय एकल खिड़की प्रणाली: इस प्रणाली के माध्यम से निवेशकों को केंद्र और राज्य सरकारों से अनुमतियां एक ही प्लेटफ़ॉर्म पर मिलती हैं, जिससे प्रक्रिया सरल और तेज होती है। वर्तमान में, भारत में सेमीकंडक्टर डिज़ाइनिंग और निर्माण के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं मसलन नोएडा और बेंगलुरु में अत्याधुनिक डिज़ाइन केंद्र स्थापित किए गए हैं, जहां बिलियनों ट्रांज़िस्टर्स वाले चिप्स पर काम हो रहा है। 28 स्टार्टअप्स चिप डिज़ाइनिंग के क्षेत्र में सक्रिय हैं, जो नवाचार और विकास में योगदान दे रहे हैं। सरकार ने 10 लाख से अधिक लोगों को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में प्रशिक्षण प्रदान किया है, जिससे मानव संसाधन की क्षमता में वृद्धि हुई है। भारत के लिए सेमीकंडक्टर क्षेत्र में कई संभावनाएं हैं. भारत, ताइवान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों के साथ मिलकर वैश्विक सेमीकंडक्टर आपूर्ति शृंखला का हिस्सा बन सकता है। नौकरियों का सृजन सेमीकंडक्टर क्षेत्र में निवेश से लाखों नई नौकरियां उत्पन्न हो सकती हैं, जो रोजगार के अवसर प्रदान करेंगी। स्थानीय उत्पादन से आयात पर निर्भरता कम होगी, जिससे विदेशी मुद्रा की बचत होगी और आर्थिक स्थिरता में वृद्धि होगी। कुल मिलाकर देश न केवल सेमीकंडक्टर डिजाइन और पैकेजिंग में बल्कि फेब निर्माण एवं हाइ-एंड विकल विकास में वैश्विक मंच पर उभरने को तत्पर है।
बहरहाल कई बातें ऐसी भी हैं कि जिन्हें सरकार को ध्यान में रखना चाहिए। पहली बात, सहयोग की प्रकृति रणनीतिक होनी चाहिए। भारत संपूर्ण आपूर्ति शृंखला का स्थानीयकरण करने की नहीं सोच सकता। इस मिशन को उन विशिष्ट क्षेत्रों पर प्रोत्साहन देने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जहां विदेशी निर्भरता, खासतौर पर चीन पर निर्भरता एक रणनीतिक जोखिम के रूप में देखी जा सकती है। गौर करने वाली बात है कि अभी दुनिया में कुछ देशों और कंपनियों में ही चिप मैन्युफेक्चरिंग होती है। सप्लाई में रुकावट, भूराजनीतिक तनाव और नई तकनीक की मांग ने विविधता की जरूरत को बढ़ा दिया है। अब भारत का इरादा इस सेक्टर में अपने बड़े बाजार, इंजीनियरिंग टैलेंट, नीतिगत सपोर्ट और कॉस्ट-कॉम्पटीशन की ताकत पर अपनी जगह बनाना है। और भारत केवल बाजार नहीं बल्कि को-डेवलपमेंट और को-इनोवेशन पार्टनर बनना चाहता है।भारत सेमीकंडक्टर नवाचार और निर्माण के क्षेत्र में तेजी से प्रगति कर रहा है। सरकार की नीतियां, निवेशकों का विश्वास और युवा शक्ति इस क्षेत्र को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बना रही है। यदि यह गति बनी रहती है, तो भारत आने वाले वर्षों में सेमीकंडक्टर क्षेत्र में एक प्रमुख वैश्विक खिलाड़ी के रूप में उभरेगा।

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