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भारत-ब्रिटेन के आर्थिक सम्बन्ध

भारत और इंग्लैंड के सम्बन्ध आजादी के बाद से ही मधुर रहे हैं हालांकि कश्मीर के प्रश्न पर इंग्लैंड का रवैया पूर्व में ढुल- मुल जरूर रहा है मगर अब आतंकवाद के मुद्दे पर वह भारत के साथ खड़ा हुआ दिखाई पड़ता है।

01:00 AM Oct 29, 2022 IST | Aditya Chopra

भारत और इंग्लैंड के सम्बन्ध आजादी के बाद से ही मधुर रहे हैं हालांकि कश्मीर के प्रश्न पर इंग्लैंड का रवैया पूर्व में ढुल- मुल जरूर रहा है मगर अब आतंकवाद के मुद्दे पर वह भारत के साथ खड़ा हुआ दिखाई पड़ता है।

भारत ब्रिटेन के आर्थिक सम्बन्ध
भारत और इंग्लैंड के सम्बन्ध आजादी के बाद से ही मधुर रहे हैं हालांकि कश्मीर के प्रश्न पर इंग्लैंड का रवैया पूर्व में ढुल- मुल जरूर रहा है मगर अब आतंकवाद के मुद्दे पर वह भारत के साथ खड़ा हुआ दिखाई पड़ता है। इसमें कोई दो राय नहीं हो सकतीं कि अखंड भारत को खंड–खंड करके विभाजित करने में दो सौ साल तक भारत पर राज करने वाली ब्रिटिश साम्राज्यवादी सरकार की ही प्रमुख भूमिका रही है परन्तु 1947 के बाद स्वतन्त्र भारत के साथ ब्रिटेन की सरकार के सम्बन्धों में हमें ज्यादा तल्खी भारत-पाक युद्धों के दौरान भी नहीं दिखाई दी। बेशक यह कहा जा सकता है कि इन युद्धों के दौरान ब्रिटेन की सरकार स्वयं को तटस्थ दिखाने की कोशिश जरूर करती रही। परन्तु वर्तमान समय में भारत की अर्थ व्यवस्था के ब्रिटेन से आगे निकलते हुए पांचवें नम्बर पर आ जाने के बाद दोनों देशों के बीच के आर्थिक संबंधों की महत्ता सर्वोच्च वरीयता पर पहुंच गई है। ब्रेक्सिट समूह से अलग होने के फैसले के बाद इंग्लैंड ने अपनी अर्थव्यवस्था के द्विपक्षीय पक्ष पर जिस तरह जोर देना शुरू किया है उसे देखते हुए भारत व इंग्लैड के बीच संभाव्य मुक्त व्यापार समझौते (फ्री ट्रेड एग्रीमेंट) का बहुत महत्व हो जाता है।
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एक अर्से तक ब्रिटेन का भारत में पूंजी निवेश प्रथम तीन नम्बरों पर रहा है और आपसी कारोबार भी बहुत फला-फूला है मगर एकीकृत यूरोपीय संघ बन जाने के बाद इसमें ब्रिटेन का हिस्सा अपेक्षाकृत नहीं बढ़ पाया। इसकी वजह यह भी मानी जा रही है कि पिछले तीन दशकों में आर्थिक उदारीकरण के बाद भारत की अर्थव्यवस्था में जिस तरह का क्रान्तिकारी परिवर्तन आया है और यह कम्प्यूटर टेक्नोलोजी से लेकर अन्य अद्यतन टेक्नोलोजियों व औषध क्षेत्र के उत्पादन का प्रमुख केन्द्र अपने मानव संसाधनों व ज्ञान सम्पत्ति के आधार पर बना है, उससे भारत के प्रति सभी विकसित देशों का नजरिया बदला है और यह निवेश करने के आकर्षक क्षेत्र के रूप में विकसित हुआ है। दूसरी तरफ ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था ब्रेक्जिट फैसले के बाद से लगातार कर्राह रही है और कोरोना काल के दौरान इसने और दम तोड़ा जिसे संभालने के लिए ही ब्रिटेन के लोगों ने भारत मूल के श्री ऋषि सुनक को उनकी आर्थिक विशेषज्ञता देखते हुए अपना प्रधानमन्त्री चुना है।
ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था द्वितीय विश्व युद्ध और उसके बाद 70 के दशक में हुए ‘ब्लैक मंडे’आर्थिक रक्तरंजित घटना के उपरान्त फिलहाल सबसे खराब हालत में है। अतः भारत की अपेक्षा यह ब्रिटेन को ही ज्यादा सोचना है कि वह भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौता करके किस प्रकार आर्थिक स्थायित्व की ओर बढ़ सकता है। इंग्लैंड में इस समय वहां के आम नागरिकों पर महंगाई का बहुत ज्यादा बोझ है और इस ठंडे मुल्क में गर्म रहने के लिए जरूरी ऊर्जा ईंधन की खासी किल्लत है । दूसरे रूस –यूक्रेन युद्ध से उपजे आर्थिक व्यवधानों की भी इस पर मार पड़ रही है मगर राजनीतिक रूप से ऐतिहासिक कारणों की रोशनी में ब्रिटेन रूस के खिलाफ सख्त रुख अपनाने के लिए मजबूर है। ब्रिटेन मार्क्सवादी या कम्युनिस्ट विचारधारा का अमेरिका के समान ही कट्टर दुश्मन रहा है। अतः भारत के प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने श्री सुनक से टेलीफोन पर जो बातचीत की उसमें मुक्त व्यापार समझौते को जल्दी से जल्दी अंजाम तक पहुंचाने के मुद्दे पर विचार-विनिमय भी हुआ। इसी के समानान्तर ब्रिटेन के विदेश मन्त्री श्री जेम्स क्लीवरली शुक्रवार को ही भारत की यात्रा पर पहुंच चुके हैं।
सुनक सरकार के विदेश मन्त्री की यह पहली विदेश यात्रा है जो भारत में हो रही है। वह भारत में आतंकवाद के खिलाफ राष्ट्रसंघ सुरक्षा परिषद की कमेटी में भाग लेने के लिए आये हैं परन्तु उम्मीद की जा रही है कि वह वाणिज्य व व्यापार से सम्बन्धित विषयों के बारे में भी अपने समकक्ष के साथ विचार–विमर्श कर सकते हैं। भारत व ब्रिटेन के आर्थिक सम्बन्धों की प्रगाढ़ता का अन्दाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि जब भारत आजाद हुआ था तो भारतीय रुपये की कीमत इंग्लैंड की मुद्रा पौंड से ही बंधी हुई थी और अंग्रेजों ने एक रुपये की कीमत एक पौंड के बराबर रखी थी। हालांकि इसकी एक वजह द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटेन पर भारत का कर्जा चढ़ जाने की भी रही होगी जबकि स्वयं ब्रिटेन की हालत इतनी खस्ता हो चुकी थी कि इसकी फौज की तनख्वाहें अमेरिका अदा कर रहा था। इन तथ्यों के बावजूद रुपये की कीमत बहुत मजबूत तब तक बनी रही जब तक कि पौंड की कीमत ही अमेरिकी डालर के मुकाबले कमजोर नहीं हो गई। ये कुछ ऐसे तथ्य हैं जिनकी रोशनी में हमें भारत–ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौते को वर्तमान बदलते आर्थिक परिदृश्य में आंकना होगा और मोदी – सुनक के बीच आगामी समय मे  इस समझौते को परवान चढ़ाना होगा। वैसे यह समझौता दीपावली तक हो जाना चाहिए था मगर ब्रिटेन की राजनीतिक अस्थिरता से यह सुनिश्चित समय रेखा नहीं देख पाया।
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आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
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