भारत-अमेरिका ट्रेड वार्ता
अमेरिका और भारत के बीच हो रही ट्रेड डील बातचीत पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं। उम्मीद दिखाई दे रही है कि दोनों देश मिलकर एक निष्पक्ष और फायदेमंद बहुक्षेत्रीय व्यापार समझौता जल्द कर लेंगे। दोनों देशों के प्रतिनिधिमंडलों में बाजार पहुंच, ट्रेड बैरियर, कृषि उत्पाद, सेवाओं का व्यापार, निवेश और अन्य संवेदनशील मुद्दों पर चर्चा हुई। दोनों देश अपने मतभेदों को कम करते हुए ऐसे व्यवहारिक समाधान निकालने का प्रयास कर रहे हैं जो दोनों की अर्थव्यवस्था के लिए बेहतर हों। व्यापार वार्ता में भारत की कमान अब दर्पण जैन सम्भाल रहे हैं। अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि जैमिसन ग्रीयर का कहना है कि अमेरिकी किसानों की भारतीय बाजारों में पहुंच बढ़ाने को लेकर भारत ने अब तक सबसे अच्छा प्रस्ताव दिया है। खासकर ज्वार और सोया जैसी फसलों पर बाजार खोलने पर चर्चा चल रही है। भारत अमेरिकी वस्तुओं के लिए एक वैकल्पिक बाजार बन सकता है। ग्रीयर का यह बयान आने से पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारतीय चावल पर नए टैरिफ लगाने की धमकी दी थी। उन्होंने भारत से कहा था कि वह अमेरिका में अपने चावल की डंपिंग नहीं करेगा। डोनाल्ड ट्रंप ने व्हाइट हाउस में अमेरिकी किसानों के लिए 12 अरब डॉलर की मदद का ऐलान करते हुए कहा कि भारत से सस्ता चावल आने की वजह से अमेरिका का चावल उत्पादक परेशान है और उनके दाम गिर रहे हैं। भारत ने क्या प्रस्ताव दिया है इसका अभी खुलासा नहीं हुआ है लेकिन इतना तय है कि भारत कृषि उत्पादों को लेकर बहुत सतर्क है और वह अमेरिका को कोई भी अनुचित छूट देने को तैयार नहीं है। इसमें कोई संदेह नहीं कि ट्रेड डील पर भारत एक सख्त वार्ताकार साबित हुआ है। अमेरिकी प्रतिनिधि स्वीकार कर रहे हैं कि भारत के कृषि क्षेत्र में खासकर राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामलों में घुसना आसान नहीं है। भारत कुछ फसलों मांस और डेयरी उत्पादों के आयात का विरोध करता है। भारत को अपने किसानों की चिंता है। कृषि और डेयरी उत्पाद ट्रेड डील में रोड़ा बने हुए हैं। अगर अमेरिकी फसलें और दूध उत्पाद भारत आते हैं तो भारत के किसानों का क्या होगा। भारत में किसान मुद्दे पहले से ही काफी संवेदनशील बने हुए हैं। मक्का, सोयाबीन, गेहूं, कपास, चावल, गन्ना, ज्वार और केनोला जैसी फसलें वैश्विक वस्तुएं हैं और यह िकसानों आैर खाद्य सुरक्षा को प्रभावित कर सकती हैं। भारत को फूंक-फूंक कर कदम रखना होगा। यदि अमेरिका साझेदारी को लेकर गंभीर है तो उसे सबसे पहले भारतीय निर्यात पर लगाए गए दंडात्मक शुल्क को 50 प्रतिशत से घटाकर 20-25 प्रतिशत करना चाहिए आैर रूस से तेल खरीद को लेकर दबाव को कम करना चाहिए। अमेरिका भारत को कृषि निर्यात बढ़ाने के चक्कर में है जबकि भारतीय निर्यात के लिए बाजार पहुंच को लेकर अमेरिका स्पष्ट रुख नहीं अपना रहा। यह सब तब हो रहा है जब दुनिया भर में गेहूं की सप्लाई लगभग 1.10 अरब टन के करीब पहुंच गई है। ऐसे में अमेरिका भारत को अपने कृषि उत्पादों के निर्यात के लिए एक बड़े बाजार के तौर पर देख रहा है। अमेरिकी कृषि विभाग (यूएसडीए) ने भी ग्लोबल अनाज सप्लाई के अपने अनुमान को बढ़ाया है। इससे सप्लाई की चिंता कम हुई है। वहीं, भारत जैसे प्रमुख बाजारों के लिए निर्यातकों के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ने की संभावना है।
यूएसडीए की दिसंबर की 'वर्ल्ड एग्रीकल्चरल सप्लाई एंड डिमांड एस्टिमेट्स' रिपोर्ट में 2025-26 के लिए ग्लोबल गेहूं सप्लाई का अनुमान 75 लाख टन बढ़ाकर लगभग 1.10 अरब टन कर दिया गया है। यह बढ़ोतरी कई बड़े निर्यात देशों में ज्यादा उत्पादन के कारण हुई है। कनाडा में उत्पादन का अनुमान 30 लाख टन बढ़कर 400 लाख टन हो गया है, जो सबसे बड़ी बढ़ोतरी है। इसके बाद अर्जेंटीना, यूरोपीय संघ, ऑस्ट्रेलिया और रूस का नंबर आता है। यद्यपि भारत अमेरिकी टैरिफ के प्रभाव को कम करने के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है। भारत को नए बाजार भी मिल रहे हैं लेकिन भारत का आयात बिल तेजी से बढ़ रहा है जो चिन्ता का विषय है। आयात बिल बढ़ने के कई कारण हैं। इनमें सोने की कीमतों में तेजी, कच्चे तेल के ऊंचे दाम और इलैक्ट्रोनिक कम्पोनेंट्स के लिए निर्भरता शामिल है। यह तीनों चीजें भारत आयात करता है। इनके ट्रिपल अटैक को रुपए के कमजोर होने ने आैर हवा दे दी है। परिणामस्वरूप देश के व्यापार घाटे पर फिर से दबाव कायम हो गया है।
भारत और अमेरिका के अधिकारी दो अलग-अलग वार्ताएं कर रहे हैं, जिनका मुख्य उद्देश्य टैरिफ से संबंधित एक ढांचागत व्यापार समझौता और एक व्यापक व्यापार समझौता तैयार करना है। फरवरी में नेतृत्व के निर्देशों के बाद, 2025 के पतझड़ तक प्रारंभिक चरण को अंतिम रूप देने के उद्देश्य से बातचीत शुरू हुई। चर्चा छह दौरों से गुजर चुकी है, जिसका अंतिम उद्देश्य 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 191 बिलियन डॉलर से बढ़ाकर 500 बिलियन डॉलर करना है।
2024-25 में, अमेरिका लगातार चौथे वर्ष भारत के प्रमुख व्यापारिक भागीदार के रूप में अपनी स्थिति बनाए रखने में सफल रहा, द्विपक्षीय व्यापार 131.84 बिलियन डॉलर (86.5 बिलियन डॉलर निर्यात) तक पहुंच गया। भारत के व्यापारिक पोर्टफोलियो में अमेरिका का महत्वपूर्ण योगदान है। कुल माल निर्यात का 18 प्रतिशत, आयात का 6.22 प्रतिशत और कुल व्यापारिक वस्तुओं का 10.73 प्रतिशत। निर्यातकों ने इस समझौते के महत्व पर विशेष बल दिया है, क्योंकि भारत से अमेरिका को होने वाले व्यापारिक वस्तुओं के निर्यात में लगातार दो महीनों से गिरावट देखी गई है, अक्टूबर में यह गिरावट 8.58 प्रतिशत घटकर 6.3 अरब डॉलर रह गई, जिसका कारण वाशिंगटन द्वारा लगाए गए भारी टैरिफ हैं। भारत रचनात्मक रूप से बातचीत कर रहा है लेकिन किसानों या छोटे उद्योगों की कीमत पर नहीं। मोदी सरकार ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि वह पारस्परिक और आपूर्ति शृंखला में साझेदारी चाहती है न कि एक तरफा रियायतें और वह रूसी कच्चे तेल को नहीं छोड़ेगी जिसे वह ऊर्जा, सुरक्षा के लिए बेहतर मानती है। देखना होगा कि ट्रेड वार्ता पर कोई खुशनुमा खबर मिलती है। इसके लिए जरूरी है कि अमेरिका भी अपने रवैये में अनुकूल बदलाव करे।