भारत की ‘क्रिकेट’ विजय
भारत-पाकिस्तान के बीच गत रात्रि दुबई में हुए टी-20 क्रिकेट में जिन रोमांचक परिस्थितियों में भारत ने यह मैच पांच विकेट से जीता उससे भारतीय खिलाडि़यों के खेल कौशल का पता चलता है परन्तु इसे लेकर भारत के भीतर जो राजनीति हो रही है उसे हम गंभीरता से नहीं ले सकते हैं। क्रिकेट भी निश्चित रूप से एक खेल है और किसी खेल में जब दो टीमें खेलती हैं तो उनमें से एक हारती या जीतती है। जीतती वही टीम है जिसमें खेल कौशल अद्भुत होता है। क्रिकेट के साथ कोई भी अन्य टीम स्पर्धात्मक खेल केवल टीम भावना से ही जीता जा सकता है। भारत के गेंदबाजों व बल्लेबाजों ने पाकिस्तान के मुकाबले हर मुकाम पर बेहतर प्रदर्शन किया अतः उसकी टीम विजयी रही। निश्चित रूप से अन्तर्राष्ट्रीय खेल स्पर्धाओं में किसी भी देश का सम्मान दांव पर रहता है। विशेषकर जब किसी भी खेल प्रतियोगिता में भारत व पाकिस्तान भिड़ते हैं तो आम भारतीय की रुची इसमें बहुत बढ़ जाती है। इसकी वजह केवल यही नहीं है कि पाकिस्तान का जन्म भारत से टूट कर 1947 में हुआ, बल्कि इसके पीछे मूल कारण पाकिस्तान का भारत के प्रति शत्रुतापूर्ण रवैया है।
अपने जन्म से लेकर आज तक पाकिस्तान भारत को अपना दुश्मन मानता आया है जबकि भारत का नजरिया ऐसा कभी नहीं रहा और इसने हमेशा कहा कि एक स्थिर और शान्त पाकिस्तान इस भारतीय उपमहाद्वीप के हित में है। भारत चाहता है कि पाकिस्तान अपनी गुरबत की समस्या का हल इस क्षेत्र में शान्ति रख कर करे मगर उसने जो रास्ता चुना वह दहशतगर्दी और बद इन्तजामी का है जिससे पाकिस्तान आज बुरी तरह त्रस्त है। जहां तक खेलों का सवाल है तो पहले हाकी मैचों में हमें यह देखने को मिलता था। आजादी के पहले से ही भारत हाकी का विश्व चैम्पियन था। मगर 1960 में पहली बार ओलम्पिक खेलों में भारत को पाकिस्तान ने हराकर स्वर्ण पदक जीता था और भारत के हिस्से में रजत पदक आया था। इसके बाद से भारत हाकी के खेल में अपना दबदबा कायम रखने में कभी सफल रहा और कभी असफल।
भारत-पाकिस्तान के बीच तीन युद्ध हुए मगर खेलों की अन्तर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं में दोनों देशों की टीमें भाग लेती रहीं और एक-दूसरे के खिलाफ खेलती भी रहीं। मगर विगत अप्रैल महीने में जम्मू-कश्मीर राज्य के पहलगाम शहर के निकट पाकिस्तानी आतंकवादियों ने जिस तरह 26 भारतीय पर्यटकों को उनका मजहब पूछ-पूछकर हलाक किया उससे पूरा देश गुस्से में था और पाकिस्तान को करारा सबक सिखाने के हक में था। इसका जवाब भारत ने मई महीने में सैनिक आपरेशन सिन्दूर चला कर किया और पाकिस्तान के लगभग एक दर्जन सैनिक अड्डों को तबाह कर डाला। भारत सरकार कह रही है कि यह आपरेशन सिन्दूर पूरी तरह बन्द नहीं हुआ है और अभी भी चालू है। इस आपरेशन के चलते जब क्रिकेट के एशिया कप टूर्नामेंट के शुरू होने की बात सामने आयी तो भारत के अधिकतम लोगों ने राय व्यक्त की कि भारत को पाकिस्तान के साथ क्रिकेट मैच नहीं खेलना चाहिए और उसका बहिष्कार करना चाहिए परन्तु अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट संघ का सदस्य होने की वजह से भारत का ऐसा करना मुमकिन नहीं हुआ और उसने पाकिस्तान के खिलाफ क्रिकेट मैच खेले। कुछ विपक्षी दल दलील दे रहे थे, विशेष कर महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे शिव सेना कि भारत उस पाकिस्तान के खिलाफ किस प्रकार क्रिकेट मैच खेल सकता है जिसके आतंकवादियों ने 26 निरीह भारतीय नागरिकों का कत्ल किया हो? और जिसके खिलाफ आपरेशन सिन्दूर अभी तक चालू हो।
यह दलील भारत के कुछ लोगों को तर्क संगत भी लगी और उन्होंने इसका खुलकर समर्थन भी किया परन्तु एक जिम्मेदार राष्ट्रीय क्रिकेट टीम के तौर पर भारत के खिलाडि़यों ने एशिया कप में भाग लेना उचित समझा। ऐसा करके उन्होंने भारत के सम्मान पर कोई चोट नहीं पहुंचाई, बल्कि अपने क्रिकेट कौशल पर भरोसा ही जताया। इस फैसले का बेहतर परिणाम निकला क्योंकि भारत की टीम ने एशिया कप जीत लिया। मगर भारतीय खिलाडि़यों ने जीती हुई एशिया कप ट्राफी किसी पाकिस्तानी के हाथ से लेनी गंवारा नहीं की और उन्होंने यह ट्राफी स्वीकार नहीं की। यह ट्राफी मैच खत्म होने पर एशियाई क्रिकेट परिषद के अध्यक्ष मोहसिन नकवी के हाथों ली जानी थी। मोहसिन पाकिस्तान की सरकार में मन्त्री है। भारत की टीम ने अपने विजय समारोह में हिस्सा तो लिया मगर ट्राफी मोहसिन के हाथों से लेना स्वीकार नहीं किया। नकवी खेल मैदान में पुरस्कार वितरण समारोह शुरू होने से पहले ही एक तरफ खड़े हो गये थे।
भारतीय खिलाड़ी अपना विजयोत्सव मनाने मैदान में उनसे कुछ दूरी पर खड़े हो गये। उन्होंने अपने स्थान से हटने से यह कहकर इन्कार कर दिया कि वे जहां खड़े हैं वही ठीक जगह है। समारोह में इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। इससे समारोह में थोड़ा विलम्ब तो हुआ मगर व्यवधान नहीं। इस दौरान ट्राफी ड्रेसिंग रूम के अन्दर ले जाई गई। मगर मैच हारने के बाद पाकिस्तानी टीम ड्रेसिंग रूप में चली गयी थी। मैच खत्म होने के लगभग 55 मिनट तक यह टीम रूम से बाहर ही नहीं निकली। जबकि एशियाई क्रिकेट परिषद के अध्यक्ष मोहसिन नकवी अकेले खड़े हुए थे। पाकिस्तानी टीम की इस देरी की वजह से समारोह देर से शुरू हुआ और जब ट्राफी देने का समय आया तो भारतीय टीम ने इसे लेने से इन्कार कर दिया। अतः बड़ा स्पष्ट है कि भारतीय टीम ने विजयी होकर भी भारत के गौरव के साथ किसी प्रकार का समझौता नहीं किया और एक पाकिस्तानी के हाथों ट्राफी लेने से इन्कार कर दिया। मैच के दौरान पाकिस्तानी खिलाड़ियों ने जिस प्रकार की मुद्राओं का प्रदर्शन किया वह भी खेल भावना के विरुद्ध ही रहा। इसलिए भारत को राजनीति छोड़कर अपनी क्रिकेट विजय पर गर्व होना चाहिए।