भारत के ‘प्रतिनिधिमंडल’
पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का पर्दाफाश करने के लिए भारत से सांसदों के बहुदलीय…
पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का पर्दाफाश करने के लिए भारत से सांसदों के बहुदलीय प्रतिनिधिमंडलों का विदेशों को जाना प्रारम्भ हो गया है। इस बारे में ये प्रतिनिधिमंडल पाक द्वारा ऑपरेशन सिन्दूर को लेकर फैलायी जा रही भ्रान्तियों का निवारण करेंगे और विश्व के समक्ष भारत का पक्ष प्रस्तुत करेंगे। जाहिर है कि इन प्रतिनिधिमंडलों में भारत के प्रमुख विपक्षी दलों के सांसद शामिल होंगे और कुछ का नेतृत्व भी करेंगे। कुल सात प्रतिनिधिमंडल विश्व के विभिन्न देशों की यात्रा पर जा रहे हैं, जहां वे उन देशों की सरकारों व सांसदों के अलावा बुद्धिजीवी मंडलों और पत्रकारों के साथ भी बात करेंगे और आतंकवाद में पाकिस्तान के शामिल होने का काला चिट्ठा भी खोलेंगे। इन प्रतिनिधिमंडलों को विदेश भेजने के फैसले का भारत में खुले दिल से समर्थन हो रहा है और इसे एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। कांग्रेस के वरिष्ठतम नेता व पूर्व गृहमन्त्री श्री पी. चिदम्बरम ने इस फैसले को पूर्ण समर्थन देते हुए कहा है कि ऐसा करने से विश्व के समक्ष भारत का पक्ष मजबूत होगा और वैश्विक धरातल पर सन्देश जायेगा कि पाकिस्तानी आतंकवाद के मुद्दे पर पूरा भारत एक है।
विदेशों में भारत का पक्ष स्पष्टता के साथ रखने के मामले में भारत की आन्तरिक दलगत राजनीति बीच में नहीं आती है क्योंकि केन्द्र की वर्तमान सरकार देश के भीतर ‘मोदी सरकार’ हो सकती है मगर वह विदेशों में ‘भारत की सरकार’ है और आतंकवाद के मामले में भारत के सभी राजनैतिक दलों के बीच एका है। खासकर पाकिस्तान को लेकर विपक्षी दल भी सत्तारूढ़ दल की राय से अलग नहीं हो सकते। एेसा भी नहीं है कि भारत किसी ज्वलन्त मुद्दे पर पहली बार बहुदलीय राजनैतिक प्रतिनिधिमंडल विदेशों में भेज रहा है। इससे पहले 1971 में जब पाकिस्तान से ही भारत ने बंगलादेश युद्ध लड़ा था तो तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने विपक्षी दलों के बहुत से नेताओं को विदेश भेजकर भारत के पक्ष में वैश्विक राय बनाने के प्रयास किये थे। जो नेता विदेशों में भेजे गये थे उनमें स्व. जय प्रकाश नारायण भी शामिल थे। उस समय भारत पूर्वी पाकिस्तान (बंगलादेश) में पाकिस्तानी सेना द्वारा वहां की जनता पर किये जा रहे बर्बर अत्याचरों के खिलाफ लड़ रहा था और दुनिया को समझा रहा था कि बंगलादेश की समस्या एक मानवीय समस्या है जिसका सम्बन्ध मानवाधिकारों से जुड़ा हुआ है क्योंकि उस समय करीब एक करोड़ बंगलादेशी भारत में शरण लेने के लिए आ गये थे। विगत 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में पाकिस्तान से आये आतंकवादियों ने जिस प्रकार 26 भारतीय नागरिकों की हत्या उनका धर्म पूछ-पूछकर की वह भी मानव सभ्यता पर एक कलंक के समान है और बताता है कि आतंकवाद को फैलाने में पाकिस्तान किस हद तक नीचे गिर चुका है। अतः इसका विरोध करने के लिए भारत ने पाकिस्तान स्थित आतंकवादी ठिकानों के खिलाफ आॅपरेशन सिन्दूर चलाया और इसकी कमान सेना को दी। भारतीय सेनाओं ने विगत 7 मई को पाकिस्तान व पाक अधिकृत कश्मीर के नौ आतंकवादी ठिकानों को नेस्तनाबूद कर डाला जिसमें एक सौ के लगभग आतंकवादी मारे गये। यह आॅपरेशन पूर्णतः आतंकवाद के खिलाफ था मगर पाकिस्तान की सेना ने इसका प्रतिकार सैनिक कार्रवाई करते हुए किया जिसका माकूल जवाब भारत की जांबाज फौज ने दिया।
भारत ने पाक प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ जो भी कदम उठाया वह मानवतावाद की परिधि में ही आता है क्योंकि निरीह भारतीयों की हत्या जिस प्रकार से विगत 22 अप्रैल को आतंकवादियों द्वारा की गई थी वह मानवता की ही हत्या थी। पिछले तीस वर्षों से भारत पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के दंश को झेल रहा है परन्तु हर अत्याचार की भी कोई सीमा होती है अतः भारत की मोदी सरकार ने घोषणा की है कि जब भी कोई पाकिस्तानी आतंकवादी घटना भारत की जमीन पर करेंगे तो उसका जवाब ‘आॅपरेशन सिन्दूर’ के अन्दाज में ही दिया जायेगा। विदेशों को जा रहे भारत के प्रतिनिधिमंडल वहां की सरकारों व लोगों को इस नजरिये से भी परिचित करायेंगे। इसके साथ ही भारत द्वारा सिन्धु जल समझौते को मुल्तवी किये जाने के मुद्दे पर भी ये दल विदेशों की सरकारों को भारत का पक्ष बतायेंगे और कहेंगे कि 1960 में भारत-पाकिस्तान के बीच हुआ यह समझौता पूरी तरह दोनों देशों के बीच की सद-इच्छा पर निर्भर था परन्तु पाकिस्तान ने अपनी जमीन का इस्तेमाल भारत के विरुद्ध आतंक फैलाने के लिए जिस तरह किया है उससे यह सद-इच्छा गायब हो गई है। पाकिस्तान की बेइमानी साफ झलक रही है क्योंकि वह आतंकवादियों की मदद कर रहा है और विभिन्न दहशतगर्द तंजीमों को पनाह दे रहा है।
भारत में 26 नवम्बर, 2008 को मुम्बई में आतंकवाद फैला कर 166 लोगों का कत्ल करने वाला पाकिस्तान भारत के साथ किसी भी समझौते का पालन नहीं करना चाहता। 2004 में पाकिस्तान ने भारत के साथ अहद किया था कि वह अपनी सरजमीं का इस्तेमाल भारत के विरुद्ध आतंकवाद फैलाने में नहीं होने देगा । यह समझौता तब किया गया था जब तत्कालीन प्रधानमन्त्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी लाहौर गये थे। इसे लाहौर घोषणा पत्र भी कहा जाता है। इसके बावजूद 26 नवम्बर, 2008 को मुम्बई में पाक से आये नापाक आतंकवादियों ने 166 लोगों की हत्या कर दी थी। इस घटना के बाद भी तत्कालीन मनमोहन सरकार ने कई सरकारी प्रतिनिधिमंडल विदेशों में भेजे थे जिससे भारत का रुख साफ हो सके। उसी समय पाकिस्तान के भीतर चल रहे आतंकवादी शिविरों की जानकारी पूरे विश्व को दे दी गई थी जिससे पाकिस्तान पर आतंकवादी देश घोषित होने की तलवार लटक गई थी। मोदी सरकार की मंशा भी यही है कि पाकिस्तान की आतंकी हरकतों के खिलाफ पूरा विश्व जागे और सच्चाई को जाने। मगर क्या कयामत है कि आॅपरेशन सिन्दूर में करारा झटका खाने के बाद पाकिस्तान अपने फौजी जनरल आसिम मुनीर को फील्ड मार्शल के औहदे से नवाज रहा है। यह इस बात का सबूत है कि पाकिस्तान भारत में आतंकवादी गतिविधियों को अपनी विदेश नीति का अंग बनाकर बैठ गया है।