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अप्रैल से सितंबर तक भारत का राजकोषीय घाटा 7.02 लाख करोड़ रुपये रहा

06:49 PM Oct 31, 2023 IST | Deepak Kumar

चालू वित्तवर्ष के पहले छह महीनों में भारत का राजकोषीय घाटा 7.02 लाख करोड़ रुपये था, जो पूरे साल के अनुमान का 39.3 फीसदी है। मंगलवार को जारी सरकारी आंकड़ों में यह जानकारी दी गई। राजकोषीय घाटा उस राशि को दर्शाता है, जिससे सरकार का खर्च आय से ज्‍यादा हो जाता है और इस अंतर को उधार के जरिए पूरा किया जाता है।

. भारत का राजकोषीय घाटा 7.02 लाख करोड़ रुपये

. पूरे साल के अनुमान का 39.3 फीसदी

. पिछले वर्ष की समान अवधि में 10.12 लाख करोड़ रुपये

. इसी अवधि में आए 3.43 लाख करोड़ रुपये से ज्‍यादा

वार्षिक अनुमान का 49.8 प्रतिशत

अप्रैल-सितंबर के दौरान सरकार द्वारा जुटाया गया शुद्ध कर राजस्व 11.6 लाख करोड़ रुपये या वार्षिक अनुमान का 49.8 प्रतिशत था, जो पिछले वर्ष की समान अवधि में 10.12 लाख करोड़ रुपये था। आंकड़ों से पता चलता है कि कॉर्पोरेट टैक्स संग्रह साल दर साल 20 फीसदी बढ़कर 4.51 लाख करोड़ रुपये हो गया। इस अवधि के दौरान कुल व्यय 21.19 लाख करोड़ रुपये था जो वार्षिक लक्ष्य का 47.1 प्रतिशत है। यह पिछले वर्ष की समान अवधि के 18.24 लाख करोड़ रुपये के आंकड़े से अधिक था।

6.4 प्रतिशत के आंकड़े से घटाकर सकल घरेलू उत्पाद के 5.9 प्रतिशत पर लाना

वित्तीय वर्ष के पहले छह महीनों में सरकारी पूंजीगत व्यय, जिसमें राजमार्ग, बंदरगाह और रेलवे जैसे बुनियादी ढांचे के निर्माण पर खर्च 4.91 लाख करोड़ रुपये या वार्षिक लक्ष्य का 49 प्रतिशत शामिल है, जो पिछले वर्ष इसी अवधि में आए 3.43 लाख करोड़ रुपये से ज्‍यादा है। वित्त मंत्रालय का लक्ष्य चालू वित्तवर्ष के अंत तक देश के राजकोषीय घाटे को पिछले वर्ष के 6.4 प्रतिशत के आंकड़े से घटाकर सकल घरेलू उत्पाद के 5.9 प्रतिशत पर लाना है।

सरकार इसे नियंत्रण में रखने के लिए उत्सुक

अत्यधिक राजकोषीय घाटा मुद्रास्फीति को बढ़ाता है और अर्थव्यवस्था के बुनियादी सिद्धांतों को कमजोर करता है, इसलिए सरकार इसे नियंत्रण में रखने के लिए उत्सुक है। इससे कॉरपोरेट्स के लिए उधार लेने के लिए बैंकिंग प्रणाली में कम पैसा बचता है जिससे निवेश पर असर पड़ता है और विकास धीमा हो जाता है। हालांकि, अर्थशास्त्रियों का मानना ​​है कि अगले साल की शुरुआत में लोकसभा चुनावों के बाद प्रमुख राज्यों में विधानसभा चुनाव होंगे, मतदाताओं से किए जाने वाले वादों के मद्देनजर खर्च को नियंत्रण में रखना आसान काम नहीं होगा।

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