अन्तरिक्ष में भारत के नए प्रयोग
अंतरिक्ष के क्षेत्र में किसी भी उल्लेखनीय प्रगति को वैश्विक परिदृश्य में अत्यंत…
अंतरिक्ष के क्षेत्र में किसी भी उल्लेखनीय प्रगति को वैश्विक परिदृश्य में अत्यंत सम्मानजनक दृष्टि से देखा जाता है। भारत ने भी ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल करते हुए अंतरिक्ष में सफलतापूर्वक डॉकिंग अभियान (स्पैडेक्स) मिशन 16 जनवरी, 2025 को पूरा कर लिया है।
अंतरिक्ष के क्षेत्र में की गई प्रगति एक देश और समाज की वैज्ञानिक श्रेष्ठता और प्रतिष्ठा का प्रतिबिंब तो होती ही है परंतु यह प्रगति किसी भी देश को अन्तर्राष्ट्रीय संदर्भों में महत्वपूर्ण स्थान दिलाती है और शक्तिशाली भी बनाती है। भारत की बेटी सुनीता विलियम्स ने अंतरिक्ष की अनंत ऊंचाइयों को छूकर सफल वापसी की है। यह भारतीय नारी शक्ति का परचम है। इससे पहले कल्पना चावला ने न सिर्फ अंतरिक्ष की दुनिया में उपलब्धियां हासिल कीं, बल्कि वे हर उस सपने का प्रतीक बनी जो सीमाओं से परे जाकर पूरे किए जा सकते हैं।
आज भारत अंतरिक्ष के क्षेत्र में महाशक्ति के रूप में प्रतिष्ठित है इस प्रतिष्ठ यात्रा में भारत के कई राजनीतिज्ञों,शिक्षाविदों तथा वैज्ञानिकों का अभूतपूर्व योगदान रहा है जिनमें सुविख्यात अंतरिक्ष यात्री स्वर्गीय कल्पना चावला का अपना एक विशेष स्थान है। अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत के प्रवेश की कहानी 1960 के दशक में प्रारंभ होती है और वैसे यही समय विश्व के शक्तिशाली देशों के द्वारा अंतरिक्ष के क्षेत्र में गतिविधियों का प्रारंभिक दौर भी है। अन्तरिक्ष में खोज करने लायक साधन बीसवीं सदी में ही जुट पाए, 1945 में विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद एक समय था जब संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ अंतरिक्ष अन्वेषण की दौड़ में सबसे आगे थे। शेष विश्व के साथ भारतीयों के लिए भी अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का विकास करना लगभग असंभव था। अमेरिका ने इस समय संचार उपग्रह के माध्यम से टोक्यो ओलंपिक का सारे विश्व में सीधा प्रसारण कर तहलका मचा दिया था। वर्ष 2024 में इसरो ने कई कीर्तिमान स्थापित किए और नए प्रक्षेपणों से भविष्य के कार्यक्रमों के पथ को सुदृढ़ और प्रशस्त कर दिया। अब अपने ‘स्पैडेक्स’ अभियान के तहत इसरो को उपग्रहों को जोड़ने और फिर अलग-अलग करने में जैसी कामयाबी मिली है उसने अंतरिक्ष विज्ञान के भविष्य में भारत के लिए नई उम्मीद जगा दी है। इसरो ने बताया कि ‘स्पैडेक्स’ उपग्रहों को ‘डी-डाक’ यानी अलग करने का काम पूरा कर लिया है।
गौरतलब है कि स्पैडेक्स अभियान बीते वर्ष 30 दिसंबर को शुरू किया गया था। उस समय इसरो ने अंतरिक्ष में कई प्रयासों के बाद 16 जनवरी को ‘डाॅकिंग’ के तहत दो उपग्रहों एसडीएक्स-01 और एसडीएक्स- 02 को सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित किया था। दरअसल, ‘डाॅकिंग’ अंतरिक्ष में दो उपग्रहों को जोड़ने की प्रक्रिया को कहते हैं और इसमें जोखिम और संवेदनशीलता के स्तर को देखते हुए पहले ही प्रयास में इसरो को मिली कामयाबी बेहद महत्वपूर्ण मानी गई है। इसे एक अविश्वसनीय अभियान को कामयाबी के साथ पूरा करने के तौर पर देखा गया है। मानव-रहित यान एचएलवीएम-3 जी1 का प्रक्षेपण वर्ष 2025 में किया जाएगा। इस शृंखला में इसी वर्ष में एक और मिशन एचएलवीएम-3 जी2 की भी योजना है। यह दोनों यान मानव सहित यान की ही भांति होंगे किंतु इनमें यांत्रिक व्योमयात्री (रोबो) भेजे जाएंगे। वर्षों में चले विभिन्न परीक्षणों की लंबी प्रक्रिया में चार अंतरिक्ष यात्रियों को रूस और भारत में इस अपूर्व यात्रा के लिए प्रशिक्षित किया गया है। इसरो के अनुसार वर्ष 2026 में एचएलवीएम-3 राॅकेट तीन अंतरिक्ष यात्रियों को जमीन से 400 किमी ऊंची पृथ्वी के निकट कक्षा में ले जाएगा।
यात्री अंतरिक्ष में तीन दिन कक्षा में रहते हुए पृथ्वी की परिक्रमा करेंगे और अनेक वैज्ञानिक प्रयोग करेंगे। यह मिशन इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह विशुद्ध देशी है। इसमें देश के अनेक संस्थानों और उद्योगों की भागीदारी है। इन्हीं चुने हुए यात्रियों में से एक अंतरिक्ष यात्री को ह्यूस्टन में प्रशिक्षण के बाद इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में भेजे जाने की योजना है। इसके अलावा वर्तमान में जो सबसे महत्वपूर्ण मिशन है वह है निसार। यह नासा और इसरो का संयुक्त प्रयास है। इस मिशन पर 2014 से काम चल रहा है जिसे मार्च 2025 में 747 किमी ऊंची कक्षा में स्थापित किया जाना है। यह 2800 किलोग्राम वजन का है और इसमें गीगाहट्रज तरंगों पर काम करने वाले दो रडार हैं। यह उपग्रह अब तक का सबसे महंगा और सूक्ष्म स्तर पर काम करने वाला उपग्रह होगा। यह अनवरत मौसम, वन-प्रेक्षण, भूकंप की गति, ग्लेशियरों और ज्वालामुखियों पर जानकारी जुटाएगा, यहां तक कि पर्यावरण संबंधी कुछ सेंटीमीटर स्तर के होने वाले परिवर्तनों को भी पकड़ सकेगा।
इसके अलावा इसरो ने भारतीय संस्थानों के लिए वैज्ञानिक मिशन तैयार किए हैं। सौर मंडल में चंद्रमा पर और मंगल ग्रह तक हम अपनी प्रयोगशालाएं पहुंचा चुके। क्योंकि यह ऐसा क्षेत्र था जहां पर अमेरिका आदि देश अपना प्रभुत्व बनाये रखना चाहते थे और भारत जैसे विकासशील देश के साथ तकनीक आदि का ज्ञान बांटने में संकोच करते थे। संघर्ष के बाद ऐसा समय आया जब भारत ने 2008 में अपना पहला चंद्र मिशन यानि चंद्रयान 1 लॉन्च किया था और इसके कुछ ही वर्षों बाद भारत ने 2014 में मंगलयान भी लॉन्च किया। वर्ष 2017 में इसरो ने एक ही रॉकेट में 104 उपग्रहों का प्रक्षेपण कर उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की और भारत को अन्तरिक्ष प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विश्व में स्थापित कर दिया। भविष्य में भारत का लक्ष्य चन्द्रयान-3 के तहत लैंडर को भेजना, प्रथम अंतरिक्ष मानव स्वदेशी मिशन और 2050 तक भारत का खुद का स्पेस स्टेशन विकसित करना है।