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सिंधु जल : साथ-साथ नहीं बह सकते पानी और खून

रूस और चीन के बाद सैन्य क्षमता में भारत विश्व में चौथे स्थान पर है। जहां तक सक्रिय…

10:44 AM Apr 27, 2025 IST | Dr. Chander Trikha

रूस और चीन के बाद सैन्य क्षमता में भारत विश्व में चौथे स्थान पर है। जहां तक सक्रिय…

सिंधु जल   साथ साथ नहीं बह सकते पानी और खून

रूस और चीन के बाद सैन्य क्षमता में भारत विश्व में चौथे स्थान पर है। जहां तक सक्रिय सैन्य कर्मियों का प्रश्न है भारत (14लाख 55550) चीन के बाद (20 लाख 35 हजार) दूसरे स्थान पर है। हमारी तुलना में पाकिस्तान 12वें स्थान पर है। भारत के पास 20.52 लाख की संख्या वाला सशस्त्र अर्द्धसैनिक बल भी है जबकि इस दृष्टि से पाकिस्तान अभी भी 5 लाख के आंकड़े को छू नहीं पा रहा। वायुसेना में भी भारत विश्व में चौथे स्थान पर है। इस सेना में हमारे पास 513 जेट विमानों सहित कुल 2221 सक्रिय लड़ाकू विमान हैं और कुल सैनिक क्षमता 1 लाख 7 हजार वायु सैनिकों की है। हमारी टैंक संख्या 4201 है, जबकि पाकिस्तान की टैंक क्षमता 2627 ही है। हमारे पास 1 लाख 48 हजार 594 बख्तरबंद वाहन हैं और पाकिस्तान हमसे एक तिहाई क्षमता ही रखता है। नौसेना के मामले में भी हम काफी ज़्यादा आगे हैं। हमारे पास 18 पनडुब्बियां हैं जबकि पाकिस्तान के पास केवल 8 हैं। हमारी समुद्री सीमा बंगाल की खाड़ी, अरब सागर और हिंद महासागर तक फैली है। हमारे बेड़े की ताकत 293 है जबकि पाकिस्तान की क्षमता 121 ही है। हमें नौ सेना की दृष्टि से भी वैश्विक स्तर पर ‘ब्लू वाटर-नौ सेना’ का दर्जा प्राप्त है जबकि पाकिस्तान की क्षमता भी सीमित है और उसे विश्व के स्तर पर ‘ग्रीन वाटर नौ सेना’ का दर्जा ही प्राप्त है जहां तक परमाणु-क्षमता का प्रश्न है भारत के पास 180 परमाणु-अस्त्र हैं जबकि पाकिस्तान के पास भी 170 का आंकड़ा है। हम सभी क्षेत्रों में सैन्य दृष्टि से पाकिस्तान से काफी आगे हैं। हमारी मारक क्षमता भी कहीं अधिक है मगर विचारणीय पहलू यह है कि कमज़ोर होने के बावजूद पाकिस्तान हमसे डरता नहीं है। आंतरिक स्थिति क्या है, इस बारे में सार्वजनिक रूप में अभी कुछ भी कहना तर्कसंगत नहीं है मगर फिलहाल पाकिस्तान की मुख्य चिंता सिंधु-जल को लेकर है। पिछले दिनों पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष ने एक भड़काऊ बयान ने कश्मीर को पाकिस्तान की ‘शाह-रग’ बताया था मगर अब पूरे पाकिस्तान को एहसास हो जाएगा कि कश्मीर से कहीं अधिक बड़ी ‘शाह-रग’ सिंधु जल-समझौता है। चलिए थोड़ा इसे विस्तार से समझ लें।

सिंधु जल समझौते के तहत भारत इसके 33 मिलियन एकड़ फीट (एमएएफ) पानी का ही उपयोग कर सकता है और शेष पानी पाकिस्तान को देता रहा है। यह तस्वीर 2016 में बदली, जब उरी हमले के बाद नरेंद्र मोदी सरकार ने इसका प्रवाह भारतीय परियोजनाओं के जरिए जम्मू-कश्मीर और पंजाब में उपयोग के लिए मोड़ने का फैसला किया। दरअसल, सिंधु नदी जल समझौते के तहत कुल छह नदियों को लेकर आपसी सहमति बनाई गई थी। इनमें से तीन-सिंधु, झेलम और चिनाब को पश्चिमी नदियां बताया गया और इनके पानी के इस्तेमाल का अधिकार मूलत: पाकिस्तान को दिया गया। जबकि शेष तीन- ब्यास, रावी और सतलुज को पूर्व नदियां बताते हुए इस पर भारत का अधिकार तय किया गया। हालांकि, समझौते के जो प्रावधान थे, उनके मुताबिक सिंधु नदी का 80 फीसदी पानी पाकिस्तान जाता रहा, जबकि 20 फीसदी पानी हमारे इस्तेमाल के लिए बचा। वह भी उस सूरत में जब कुछ अपवादों को छोड़कर पूर्वी नदियों का पानी हम बेरोकटोक इस्तेमाल कर सकते थे और पश्चिमी नदियों के पानी का भी सीमित अधिकार (पनबिजली परियोजनाओं या कृषि आदि के लिए) हमारे पास था।

जाहिर है यह एक ऐसा समझौता था जो पाकिस्तान को एकतरफा तमाम अधिकार दे रहा था। इसे भारत महसूस तो कर रहा था लेकिन उस पर अमल करना उसकी मजबूरी बनी रही। वास्तव में इस समझौते को खत्म न कर सकने वाले प्रावधान ने भारत के हाथ बांध रखे थे। यानी, भारत हो या पाकिस्तान, कोई भी इस समझौते से बाहर नहीं निकल सकता। यह एक स्थायी समझौता है। यही कारण है कि भारत ने फिलहाल इसे स्थगित करने की बात कही है। अब यहां सवाल है कि इस फैसले का पाकिस्तान पर असर क्या पड़ेगा? पाकिस्तानी पंजाब अपनी कृषि के लिए पूरी तरह से इसके पानी पर निर्भर है। इसके बाद बहुत कम मात्रा में इसका पानी सिंध में ही इस्तेमाल किया जाता है। पाकिस्तान की 80 फीसदी खेती योग्य जमीनें इन्हीं नदियों पर निर्भर है, इसलिए भारत द्वारा समझौते को स्थगित करने से पाकिस्तान की खेती-किसानी को बड़ा नुकसान पहुंच सकता है। पाकिस्तान के लिए इन नदियों का महत्व इससे भी समझा जा सकता है कि इनके किनारे ही यहां की तकरीबन 60 फीसदी आबादी बसती है। तरबेला और मंगला जैसी पनबिजली परियोजनाएं भी इन्हीं नदियों पर हैं। यानी, पाकिस्तान की उपज को प्रभावित करने के साथ-साथ भारत का यह कूटनीतिक कदम उसकी कई अन्य परियोजनाओं को भी प्रभावित करने वाला साबित होगा। ऐसे में, पाकिस्तान इस फैसले के खिलाफ क्या कर सकता है? इस्लामाबाद की ओर से कहा गया है कि यदि भारत ने पानी रोका तो इसे युद्ध माना जाएगा।

वहां भी राष्ट्रीय सुरक्षा समिति की बैठक में कई फैसले लिए गए हैं। मगर यहां यह समझना होगा कि सिंधु नदी समझौता भले ही विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुआ था लेकिन उसकी भूमिका सिर्फ दोनों पक्षों को एक साथ लाने की थी। उसे ऐसा कोई अधिकार नहीं दिया गया है कि वह समझौते को लेकर कोई सवाल-जवाब संबंधित देश से कर सके। फिर जितना संधि के तहत यह समझौता किया गया था, जिसमें आपसी भरोसे को तवज्जो दी गई थी। ऐसे में, यदि पाकिस्तान पानी और खून की नीति साथ-साथ चलाए रखेगा तो भारत ही नहीं, कोई भी अन्य देश समझौते को स्थापित करने का विकल्प ही चुनेगा। मगर अब भारत को भी अपनी जल-संग्रह क्षमता अर्थात् जल-भण्डारण क्षमता युद्ध स्तर पर बढ़ानी होगी। पाकिस्तान को जाने वाला पानी हमारे काम आ सके, यह भी सुनिश्चित करना होगा।

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