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महंगाई और ईंधन

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07:56 AM Sep 10, 2018 IST | Desk Team

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पैट्रोल और डीजल के दाम रोजाना सूर्य की किरणों के उगते ही बढ़ जाते हैं। दिल्ली में रविवार को पैट्रोल की कीमत 80.50 रुपए और डीजल 72.61 रुपए प्रति लीटर हो गया। मुम्बई में पैट्रोल की कीमत 90 रुपए को छू रही है। आने वाले दिनों में यह कीमत शतक पूरा कर ले तो भी कोई हैैरानी नहीं। कांग्रेस ने तेल की बढ़ती कीमतों के खिलाफ आज भारत बन्द का आह्वान किया है। कांग्रेस द्वारा आहूत भारत बन्द को कुल 18 छोटी-बड़ी पार्टियों का समर्थन है। लोकतंत्र में विपक्ष को आंदोलन आैर बन्द करने का अधिकार है। यद्यपि बाजार के विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले समय में भारतीय बाजारों में पैट्रोल-डीजल की कीमतों में इजाफा हो सकता है। इसके पीछे रुपया एक बड़ा कारण है। रुपए में आ रही लगातार गिरावट के चलते ही तेल कम्पनियां लगातार कीमतों में बदलाव कर रही हैं। दरअसल कम्पनियां डॉलर में तेल का भुगतान करती हैं, जिसकी वजह से उन्हें अपना मार्जिन पूरा करने के लिए तेल की कीमतों को बढ़ाना पड़ रहा है। दूसरी तरफ सच यह भी है कि पैट्रोल अब आम आदमी के पेट को ही रोल रहा है। पैट्रोल की कीमतें बढ़ने से हर चीज महंगी हो रही है, क्योंकि उत्पादों का प​िरवहन महंगा हो गया है। खुली अर्थव्यवस्था में पैट्रोल-डीजल के दामों को कच्चे तेल के अंतर्राष्ट्रीय भावों से जोड़ने का अर्थ यह नहीं है कि भारत में उपभोक्ता काे हमेशा ही पैट्रोल की कीमतों को लेकर सिर के बल खड़ा किया जाए।

डीजल की कीमतों का असर सीधे किसानों पर पड़ रहा है। इससे कृषि क्षेत्र प्रभावित हो रहा है। कृषि क्षेत्र में डीजल की बचत करने का सवाल ही पैदा नहीं होता। सरकार पैट्रोल-डीजल पर उत्पाद शुल्क या कोई और कटौती करने के मूड में नहीं है। यह भी सही है कि एक मजबूत अर्थव्यवस्था वाले भारत को पैट्रोल-डीजल में भारी उछाल पर बिना गहराई से सोचे झटके में निर्णय नहीं लेना चाहिए। राज्य सरकारें भी कोई भी शुल्क कटौती के लिए तैयार नहीं। कीमतों का सीधा असर परिवहन पर पड़ रहा है। इससे कृषि लागत तथा औद्योगिक लागत बढ़ रही है। अब पानी नाक के ऊपर बहने लगा है। मुम्बई, दिल्ली, कोलकाता आैर अन्य बड़े शहरों में आम नौकरी-पेशा आदमी की स्थिति देखिये। यदि उसे नौकरी करने के लिए 50-60 किलोमीटर आना-जाना पड़ेगा तो उसका रोजाना का खर्च 180 रुपए हुआ। आप इसी के हिसाब से महीने का खर्च जोड़िये। यानी आम आदमी की बचत का सारा पैसा तेल पर खर्च हो रहा है। कीमतों को बढ़ाने का नायाब तरीका डेढ़ वर्ष पहले शुरू किया गया था। पैट्रो पदार्थों के दाम रोजाना लागू करने से सरकार को तो खूब फायदा हो रहा है मगर डायनामिक प्राइसिंग सिस्टम योजना की आड़ में उपभोक्ताओं की जेब कटनी शुरू हो गई।

हैरानी की बात तो यह है कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में जब तेल की कीमतें गिरीं तो इसका फायदा भी उपभोक्ताओं को नहीं दिया गया। अर्थशा​स्त्रियों के अनुसार पैट्रोल और डीजल को सस्ता करने के लिए सरकार के पास मुख्यतः दो विकल्प हैं या तो इन उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाया जाए। इसमें केन्द्र और राज्यों की कोई भी सरकार इन पर मनमाना टैक्स नहीं लगा सकेगी आैर देशभर में दाम एक हो जाएंगे लेकिन ऐसा होने की सम्भावना कम है। केन्द्र आैर राज्य सरकारें मिलकर पैट्रोल पर 90 फीसदी से ज्यादा और डीजल पर 60 फीसदी तक टैक्स वसूल रही हैं। दूसरी ओर जीएसटी के तहत कर का उच्चतम स्लैब 28 फीसदी है जो सरचार्ज मिलाकर 30 फीसदी तक हो जाता है। जीएसटी के दायरे में आने पर पैट्रोल और डीजल से प्राप्त होने वाला कर राजस्व करीब आधा रह जाएगा। जब सभी सरकारें अपना कर राजस्व बढ़ाने का भरसक प्रयास कर रही हैं तब ऐसी उम्मीद करना अर्थहीन है। समस्या यह भी है कि उत्पाद शुल्क घटाने पर केन्द्र का वित्तीय घाटा 3.3 फीसदी के तय लक्ष्य को पार करते हुए 3.6 फीसदी तक पहुंच जाएगा। अगर उत्पाद शुल्क में कटौती के बाद भी केन्द्र वित्तीय घाटे को तय सीमा में रखता है तो उसे अपने खर्च में 40 हजार करोड़ तक की कटौती करनी होगी।

जनता जब ऐसी खबरें पढ़ती है कि देश में पैट्रोल 80 के पार हो गया है लेकिन सरकार विदेशों में 30-35 रुपए प्रति लीटर तेल बेचती है तो खुद को ठगा सा महसूस करती है। अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर जनता को राहत देने के लिए कोई न कोई फार्मूला तो ढूंढना ही होगा। सरकार काे ऐसा उपाय खोजना होगा कि जनता को तेल मूल्य में होने वाली रोजाना घट-बढ़ से हमेशा के लिए मुक्ति मिल जाए। सरकार भी चिन्तित है ​क्योंकि महंगाई का बढ़ना काफी जोखिमपूर्ण होगा। चुनावी वर्ष में सरकार के लिए बड़ी चुनौतियां पहले से ही मौजूद हैं। देश के 20 राज्यों और 64 फीसदी आबादी पर एनडीए का शासन है। केन्द्र राज्यों को वैट घटाने को कह सकता है या फिर उसे सिंगापुर और कुछ अन्य देशों का मॉडल अपनाना ही होगा जिसके तहत तेल की अधिकतम कीमत तय कर दी जाए। यदि अंतर्राष्ट्रीय तेल की कीमतें गिरें तो सरकार अपना शुल्क बढ़ा दे, जब तेल की कीमतें बढ़ें तो अपना शुल्क कम कर दे। सरकार तेल कम्पनियों का मुनाफा मार्जिन कम कर सकती है। सरकार को चाहिए जितनी जल्दी हो सके कोई ठोस फार्मूला तैयार करे।

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