मोदी सरकार में गिरती महंगाई
देश में महंगाई के स्तर को लेकर पिछले कुछ वर्षों से विपक्षी दल जिस प्रकार का…
देश में महंगाई के स्तर को लेकर पिछले कुछ वर्षों से विपक्षी दल जिस प्रकार का सरकार विरोधी विमर्श खड़ा करते रहे हैं उसे महंगाई के ताजा आंकड़ों ने निर्मूल साबित कर दिया है। इसका मतलब यह निकलता है कि देश की अर्थव्यवस्था सही पटरी पर चल रही है और बाजार में आवश्यक वस्तुओं की मांग यथा पूर्व रहने के बावजूद महंगाई नहीं बढ़ रही है। खुदरा वस्तुओं के महंगाई स्तर का विगत मई महीने में 2.82 प्रतिशत रहने का अर्थ यह है कि गरीब आदमी की पहुंच से खाद्य वस्तुएं दूर नहीं हुई हैं और वह अपना जीवन-यापन अपेक्षाकृत सुविधाजनक तरीके से कर रहा है। बाजार में खाद्य वस्तुओं के दाम गिर रहे हैं जो यह बताता है कि मांग व आपूर्ति में संयम भी बना हुआ है। बाजार मूलक अर्थव्यवस्था में महंगाई के स्तर के घटने के बहुआयामी अर्थ होते हैं। इससे बैंक की ब्याज दरों पर भी असर पड़ता है और बहुमूल्य धातु सोने के दामों पर भी असर पड़ता है। भारत में बैंक की ब्याज दरों में पिछले दिनों रिजर्व बैंक ने कमी की है जो कि इसी अपेक्षा पर आधारित थी कि महंगाई की दरों में कमी आयेगी। रिजर्व बैंक पिछले एक साल में एक प्रतिशत के लगभग ब्याज दरें घटा चुका है जिसका असर व्यापक तौर पर पड़ता है खासकर बैंकों से लिये गये ऋण पर कम ब्याज देना पड़ता है। मई महीने में मुद्रा स्फीति की दर 2.82 प्रतिशत रही है। यह दर पिछले छह वर्षों में सर्वाधिक कम है। यह दर आर्थिक विशेषज्ञों की अपेक्षा से भी कम रही है क्योंकि विशेषज्ञ उम्मीद कर रहे थे कि महंगाई की दर तीन प्रतिशत के आसपास रहेगी।
आमतौर पर विकसित देशों में महंगाई की दर दो से तीन प्रतिशत के बीच रहती है परन्तु भारत जैसे विकसित होती अर्थव्यवस्था वाले देश में यह दर रहना बताता है कि अर्थव्यवस्था के मानक वर्तमान विश्व आर्थिक परिदृष्य में अपने उच्चतम स्तर पर चल रहे हैं। भारत में विकास वृद्धि की दर छह प्रतिशत से ऊंची आंकी जा रही है जो सकल विश्व के विकसित व विकासशील देशों के मुकाबले उच्च स्तर पर है। मगर इससे यह भी पता चलता है कि पिछले कुछ वर्षों से विरोधी राजनैतिक दल जिस तरह सरकार के विरुद्ध महंगाई के बढ़ते स्तर को लेकर मुहीम चला रहे थे वह हकीकत से दूर थी। पिछले छह वर्षों में 2019 से लेकर अब तक मई महीने में सबसे कम 2.82 प्रतिशत महंगाई रहने का मतलब है कि राजनैतिक दलों की मुहीम तथ्यों के मुकाबले राजनीति से ज्यादा प्रेरित थी। खास कर चुनावों के मौके पर बढ़ती महंगाई को एक मुद्दा बनाया जाता था। जबकि सभी जानते हैं कि चुनावों के अवसर पर बाजार में रोकड़ा धन की आवक अधिक होने से उसका असर खाद्य वस्तुओं के दामों पर पड़े बिना नहीं रह सकता।
2024 में हुए लोकसभा चुनाव के अवसर पर यह महंगाई दर चार प्रतिशत के आसपास थी। मगर इसके बाद सरकार ने इस तरफ कड़े कदम उठाये जिनका परिणाम सकारात्मक रहा। फरवरी 2019 में महंगाई की दर मौजूदा 2.82% के करीब रही थी। इसके बाद इसमें इजाफा होता रहा और बीच में यह 5 प्रतिशत से भी ऊपर निकल गई मगर इस मोर्चे पर सरकार सदैव सतर्क रही और उसने बाजार में माल की सप्लाई में कमी नहीं होने दी। हालांकि कई मौकों पर सरकार के सामने माल की आवक कम होने के अवसर भी आये। इसके बावजूद सरकार ने सप्लाई के संरक्षणात्मक ढांचे को सक्रिय करके यह कमी पूरी करने के प्रयास किये। विगत अप्रैल महीने में थोक उपभोक्ता मूल्य सूचकांक 3.2% के करीब था। बाजार में माल की प्रचुर मात्रा होने की वजह से खुदरा बाजार में वस्तुओं के दाम नहीं बढ़ सके। अब अर्थ शास्त्री यह कयास लगा रहे हैं कि आगे आने वाले समय में महंगाई और भी ज्यादा कम होगी। खास तौर पर अक्तूबर महीने तक इसमें नीचे गिरने का क्रम बना रहेगा। इसी महीने में बिहार विधानसभा के चुनाव भी होने हैं। अतः बिहार जैसे गरीब राज्य में सत्ताधारी दलों भाजपा व जनता दल (यू) को इस मोर्चे पर राहत मिल सकती है और विपक्ष महंगाई के मोर्चे पर राज्य सरकार को नहीं घेर सकेगा।
बेशक भारत खाद्य तेलों का भारी मिकदार में आयात करता है मगर इस मद में अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों में भी भावों में नरमी का माहौल बना है और उसका असर घरेलू बाजार पर भी सीधा पड़ा है। खाद्य तेलों के भावों में पिछले कुछ अर्से से नरमी देखी जा रही है। यही हालत दालों व अन्य साग-सब्जियों के भावों को लेकर भी बनी हुई है। अब वर्षा ऋतु का प्रारम्भ होने वाला है और देखना होगा कि मानसून किस प्रकार का रहता है क्योंकि खरीफ की फसल की बुवाई का समय भी निकट है। यदि मानसून बेहतर रहता है तो बाजार पर इसका सकारात्मक असर रहेगा और महंगाई दबी रहेगी। मोदी सरकार के लिए वर्तमान वर्ष 2025 शुभ कहा जायेगा क्योंकि इस वर्ष में इसे न केवल चुनावी सफलता मिली है बल्कि महंगाई के मोर्चे पर भी इसका हाथ ऊपर रहा है।