एस आई आर के लिए निर्देश
देश के जिन 12 राज्यों में मतदाता सूचियों का जो गहन पुनरीक्षण कार्य (बी.एल.ओ.) चल रहा है , उसे लेकर सर्वोच्च न्यायालय में कई याचिकाएं लगी हुई हैं। इन्हीं में से एक याचिका तमिलनाडु की राजनैतिक पार्टी तमिलगा वेत्री कषगम की भी है। यह नई पार्टी तमिल सिने कलाकार श्री विजय की है। इस याचिका में मांग की गई है कि अपना कार्य करते हुए जिन संगणकों (बी.एल.ओ.) ने आत्महत्या की है उनके परिवारों को समुचित मुआवजा दिया जाये। न्यायालय की दो सदस्यीय पीठ एेसे सभी मामले देख रही है। इस पीठ में स्वयं मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति सूर्यकान्त शामिल हैं। उनके अलावा दूसरे न्यायमूर्ति जयमाल्या बागची हैं। सिने कलाकार विजय की पार्टी की याचिका की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति सूर्यकान्त की यह टिप्पणी बहुत महत्वपूर्ण है कि जिन बी एल ओ को पुनरीक्षण का काम दिया गया है वे अपना काम करने से मना नहीं कर सकते ।
अपने काम को अंजाम देना उनका दायित्व है परन्तु राज्य सरकारों का भी कर्तव्य बनता है कि वे देखें कि यदि बी.एल.ओ. पर काम बहुत अधिक है तो उन्हें और कर्मचारी इस काम पर लगाने चाहिए जिससे बी एल ओ का काम हल्का हो सके। मगर कोई भी एेसा कर्मचारी अपने दायित्व से भाग नहीं सकता है। सर्वोच्च न्यायालय का यह आंकलन यथार्थ वादी दृष्टिकोण है क्योंकि चुनाव आयोग राज्य सरकारों के कर्मचारियों को ही चुनाव से सम्बन्धित कामकाज पर लगाता है। गहन पुनरीक्षण का मुद्दा आजकल राष्ट्रीय राजनीति के केन्द्र में है । इसी से सम्बन्धित विषय पर संसद में अगले सप्ताह व्यापक चर्चा भी होगी। तथ्य यह है कि जिन 12 राज्यों में पुनरीक्षण का काम चल रहा है उनमें से छह राज्यों के 26 बी.एल.ओ. आत्महत्या कर चुके हैं। मरने वालों में से कुछ का यह कहना रहा है कि उन पर इतना ज्यादा काम का बोझ रहा है कि उन्हें मृत्यु ही एकमात्र विकल्प सूझा। जाहिर है कि आत्महत्या करने वाले बी.एल.ओ. बहुत अधिक मानसिक दबाव में होंगे जिसकी वजह से उन्होंने इतना क्रूर रास्ता चुना। यह एक मानवीय पक्ष है जिसका संज्ञान भी लिया जाना चाहिए। सर्वोच्च न्यायलय ने जो रास्ता सुझाया है वह व्यावहारिक ज्यादा है क्योंकि कोई भी सरकारी कर्मचारी अपने काम से मुह नहीं मोड़ सकता है। यह चुनाव आयोग व राज्य सरकारों को देखना है कि वे बी.एल.ओ. की ड्यूटी लगाते समय मानवीय पक्ष को किसी भी सूरत में नजरअन्दाज न करें और प्रति बी.एल.ओ. को उतना ही काम दें जितना किसी कर्मचारी द्वारा संभव हो। पुनरीक्षण का मतलब यह नहीं है कि बी.एल.ओ. रात- दिन इसी काम में लगे रहें। आखिरकार उनका भी परिवार होता है और उसकी जिम्मेदारी भी उन्हें उठानी पड़ती है। इसी सप्ताह में सर्वोच्च न्यायालय ने बी.एल.ओ. द्वारा मतदाताओं के फार्म जमा करने की सीमा में एक सप्ताह का इजाफा किया था। मगर इसका मतलब यह नहीं निकलता है कि राज्य के सरकारी कर्मचारी चुनाव आयोग का काम करना ही बन्द कर दें। यह हर प्रबुद्ध भारतवासी जानता है कि चुनाव आयोग प्रति नियुक्ति पर ही राज्य सरकारों से कर्मचारी लेता है जो उसका काम सर्वेक्षण से लेकर चुनाव सम्पन्न कराने तक का काम करते हैं। भारत में मतदाता सूचियों का पुनरीक्षण या जांच का काम लगभग 22 वर्ष बाद हो रहा है। इससे पहले पुनरीक्षण 2003 में हुआ था। मगर तब बी.एल.ओ. को लगभग दो वर्ष का समय दिया गया था जबकि वर्तमान में यह समय केवल दो महीने का दिया जा रहा है। अतः इस बारे में चुनाव आयोग को पहले से ही विचार करना था और राज्य सरकारों से अधिक कर्मचारी प्रति नियुक्ति पर लेने थे लेकिन सितम यह हुआ कि पुनरीक्षण कराने का फैसला आनन- फानन में किया गया जिससे 12 राज्यों में अफरा- तफरी का माहौल बन गया । बेशक भारत कानून या संविधान से चलने वाला देश है अतः न्यायमूर्तियों के आंकलन को बहुत ध्यान से देखा जाना चाहिए। श्री सूर्यकान्त ने याचिका की सुनवाई करते हुए साफ तौर पर कहा कि कर्मचारियों का कर्त्तव्य बनता है कि वे उस काम को पूरी निष्ठा के साथ करें जो उन्हें दिया गया है। वे उससे भाग नहीं सकते।
भारत में चुनाव सम्पन्न कराने के लिए अधिकारी एक राज्य से दूसरे राज्य मे जाते हैं। बेशक कुछ कर्मचारी एेसे हो सकते हैं जिनका स्वास्थ्य ठीक न हो या अन्य किसी मुसीबत में हों। अतः सवाल खड़ा होता है कि एेसे कर्मचारियों को एस.आई.आर. के काम में लगाया ही क्यों गया। इस समस्या का हल राज्य सरकारों को ढूंढना होगा और उन्हें एेसे कर्मचारियों के स्थान पर दूसरे कर्मचारी देने होंगे। सर्वोच्च न्यायलय ने निर्देश जारी करके कहा है कि जहां भी इस तरह की समस्याएं आ रही हों उन राज्यों में सरकारों को अतिरिक्त कर्मचारी चुनाव आयोग को सुलभ कराने चाहिएं। न्यायालय की राय में बी.एल.ओ. के काम करने के घंटे घटाये भी जा सकते हैं। साथ ही यदि राज्य सरकार का कोई कर्मचारी अपनी किसी समस्या के कारण चुनाव आयोग की ड्यूटी पर नहीं जाना चाहता तो उसके मामले में सम्बन्धित वरिष्ठ अधिकारी उचित फैसला लें और उसके स्थान पर किसी दूसरे कर्मचारी की ड्यूटी लगायें और यदि कर्मचारियों की संख्या बढ़ाने की जरूरत है तो एसा भी करें। जाहिर है कि सर्वोच्च न्यायालय ने मानवीय व व्यावहारिक दोनों पक्षों को ध्यान मंे रखा है। तभी तो उसने एेसे निर्देश जारी करने को कहा है।

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