पंजाब में किसानों का अपमान
लगभग एक साल से बंद पड़े शम्भू-अम्बाला मार्ग से कंक्रीट के अवरोधक हटा दिए…
लगभग एक साल से बंद पड़े शम्भू-अम्बाला मार्ग से कंक्रीट के अवरोधक हटा दिए गए हैं। पंजाब पुलिस द्वारा बुधवार की रात अनशनकारी जगजीत सिंह डल्लेवाला, सरवन सिंह पंधेर समेत शीर्ष किसान नेताओं को हिरासत में लेकर शम्भू-खनौरी बॉर्डर को खाली करा लिया गया था। दोनों बॉर्डर पर आंदोलनकारी किसानों द्वारा बनाए गए स्थाई और अस्थाई ढांचों तथा आंदोलन के मंच को पुलिस ने बुलडोजर से हटा दिया। इसके बाद हरियाणा पुलिस भी एक्शन में आई और मार्ग को पूरी तरह से बाधा रहित बनाने का काम शुरू किया गया। पंजाब की भगवंत मान सरकार ने बुलडोजर एक्शन आंदोलनकारी किसानों और केन्द्रीय कृषि मंत्री शिवराज चौहान, उपभोक्ता मामलों के मंत्री प्रहलाद जोशी और वाणिज्य एवं उद्योगमंत्री पीयूष गोयल के साथ सातवें दौर की बातचीत विफल होने के बाद किया गया। जब दोनों पक्षों में बातचीत का सिलसिला जारी है तो पुलिसिया कार्रवाई किसानों का अपमान है।
भारत में हर किसी को लोकतांत्रिक ढंग से आंदोलन का अधिकार है। शांतिपूर्ण आंदोलन आैर सत्याग्रह का रास्ता भी हमें बापू महात्मा गांधी ने ही दिखाया है लेकिन आंदोलन के चलते सड़कों को अनिश्चिकाल के लिए अवरुद्ध नहीं किया जा सकता। आंदोलन के नाम पर शहरों के लोगों को बंधक नहीं बनाया जा सकता। किसान आंदोलन के परिप्रेक्ष्य में देश की सर्वोच्च अदालत कई बार टिप्पणियां कर चुकी हैं कि किसान समस्याओं का समाधान बातचीत या संसदीय बहस के माध्यम से हो सकता है लेकिन राजमार्गों को हमेशा के लिए अवरुद्ध नहीं किया जा सकता। 2020-21 में दिल्ली की सीमाओं पर हुए लम्बे किसान आंदोलन के दौरान हिंसक घटनाओं और लालकिले प्रकरण को सबने देखा और झेला है।
आंदोलन के चलते दिल्ली और आसपास के शहरों के लोगों को बहुत मुसीबतें झेलनी पड़ीं। व्यापार को बहुत नुक्सान हुआ। शम्भू बॉर्डर पर भी किसानों के जमावड़े के चलते बहुत नुक्सान हो रहा था। ऐसी स्थिति में आंदोलनकारी किसानों को संवेदनशील व्यवहार दिखाना चाहिए था। किसान पिछले वर्ष 13 फरवरी से शम्भू और खनौरी बॉर्डर धरने पर बैठे थे और तभी से ही अमृतसर-दिल्ली हाइवे पूरी तरह से ठप्प था। अब सवाल यह है कि पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान जो आंदोलनकारी किसानों और केन्द्र सरकार के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभा रहे थे, उनके रुख में अचानक 36 डिग्री का बदलाव कैसे आ गया। मान सरकार ने एकाएक बुलडोजर एक्शन का यू टर्न ले लिया। आखिर ऐसा क्यों हुआ? दिल्ली की सीमाओं पर किसान आंदोलन के दौरान तत्कालीन आप सरकार के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने तटस्थ रुख अपनाया था। आप सरकार ने किसानों को पानी, बिजली आैर वाईफाई मुहैया कराया था। पंजाब की भगवंत मान सरकार भी किसानों की मांगों को जायज ठहराती आ रही है। चुनावों के दौरान भी आप पार्टी ने किसान मुद्दों को काफी उछाला था। मान सरकार किसानों और केन्द्र के बीच समझौता कराने के लिए प्रयासरत थी लेकिन अचानक किसानों को हिरासत में ले लिया गया और उनके तम्बुओं को तोड़ दिया गया। विपक्षी दल इसे किसानों से विश्वासघात करार देकर मान सरकार को निशाना बना रहा है।
पिछले कुछ दिनों से पंजाब में आम आदमी पार्टी नेताओं द्वारा दिए गए प्रत्येक बयान में अब इस बात पर जोर दिया जा रहा है कि राजमार्गों के बंद होने से व्यापार को भारी नुक्सान हो रहा है। यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि आप सरकार राज्य की बिजनेस कम्युनिटी के हितों को ध्यान में रख रही है। मान सरकार का तर्क है कि उसने राज्य के व्यापारियों और अर्थव्यवस्था के हित में शंभू और खनौरी बॉर्डर को प्रदर्शनकारी किसानों से खाली कराने का फैसला लिया है। आने वाले समय में लुधियाना पश्चिम सीट पर उपचुनाव होने वाला है। आम अादमी पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल और मुख्यमंत्री भगवंत मान ने हाल ही में लुधियाना का दौरा किया था। यहां की इंडस्ट्री और बिजनेस कम्युनिटी ने दोनों को स्पष्ट रूप से बताया था कि किस तरह से किसान आंदोलन और राजमार्गों की नाकेबंदी व्यापार और अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रही है।
लुधियाना के व्यापारियों ने यह सीधा संकेत दे दिया था कि सड़कें बंद रहीं तो आप पार्टी को वोट नहीं मिलेगा। पंजाब के किसान मान सरकार के बुलडोजर एक्शन से आक्रोश में हैं। वे अब भी कोई समझौता करने के लिए तैयार नहीं हैं। देखा जाए तो मान सरकार ने अपनी सुविधा की ही राजनीति की है। किसान आंदोलन को लेकर जन मानस में यह संदेश नहीं जाना चाहिए कि आंदोलन के मूल में राजनीतिक निहितार्थ है। दूसरी तरफ किसान नेताओं को भी केन्द्र से बातचीत के जरिये ही मांगों को हल करने के प्रयास करने चाहिए। कोई भी राजनीतिक दल किसानों को हथियार बनाकर इस्तेमाल न कर सके, इसके लिए भी किसानों को सतर्कता से काम लेना होगा।