अंतरराष्ट्रीय व्यापार दबाव में नहीं, स्वेच्छा से होना चाहिए : मोहन भागवत
नई दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के व्याख्यानमाला कार्यक्रम ‘100 वर्ष की संघ यात्रा: नए क्षितिज’ में आरएसएस के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने इशारों-इशारों में ही डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ पर सख्त संदेश दिया। उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार दबाव में नहीं, स्वेच्छा से होना चाहिए। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने बुधवार को इस कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि हर चीज की कुंजी सिर्फ आत्मनिर्भरता है और विकास भी करना है। हमारा राष्ट्र आत्मनिर्भर होना चाहिए, और यह प्रयास घर से शुरू होना चाहिए। जब स्वदेशी की बात करते हैं तो ऐसा लगता है कि विदेशों से संबंध नहीं रहेंगे, ऐसी बात नहीं है। आत्मनिर्भर होने का मतलब आयात बंद करना नहीं है। उन्होंने कहा कि दुनिया परस्पर निर्भरता पर चलती है। वसुधैव कुटुम्बकम् भी परस्पर निर्भरता पर चलता है। अंतरराष्ट्रीय व्यापार चलेगा और उसमें लेनदेन भी होगी। बस, अंतरराष्ट्रीय व्यापार दबाव में नहीं, बल्कि स्वेच्छा से होना चाहिए।
भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ लागू
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारतीय वस्तुओं पर 50 प्रतिशत का भारी शुल्क लगाने के बाद उनकी यह टिप्पणी आई। उन्होंने जोर देकर कहा कि 'सच्चा स्वदेशी' स्वैच्छिक वैश्विक जुड़ाव है, न कि मजबूरी। आरएसएस प्रमुख ने संयम और समावेशिता के भारत के मूल्यों पर भी विचार किया। उन्होंने कहा, भारत ने हमेशा संयम बरता है और अपने नुकसानों को नजरअंदाज किया है। नुकसान होने पर भी, उसने मदद की पेशकश की है, यहां तक कि नुकसान पहुंचाने वालों को भी। व्यक्तिगत अहंकार दुश्मनी पैदा करता है, लेकिन उस अहंकार से परे हिंदुस्तान है।
जाति को लेकर भागवत का बयान
भागवत ने इस बात पर जोर दिया कि विविधता और अलग-अलग विचारधाराएं विभाजन का कारण नहीं बननी चाहिए। उन्होंने कहा, किसी को देखने के बाद, अगर उसकी जाति हमारे दिमाग में आती है, तो यह समस्या है, और इसे खत्म करना होगा। जल, श्मशान और मंदिर सबके लिए हैं। उनके बीच कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। वसुधैव कुटुम्बकम (विश्व एक परिवार है) पर आधारित हिंदू विचारधारा पर जोर देते हुए भागवत ने कहा कि संघ अपने कार्यों का श्रेय नहीं चाहता, बल्कि चाहता है कि भारतीय समाज देश को उस स्तर तक ले जाए जो वैश्विक परिवर्तन को प्रभावित कर सके। उन्होंने अनुशासन, पारिवारिक मूल्यों और सामुदायिक सेवा के माध्यम से हिंदुओं की तीन पीढ़ियों को आकार देने में विदेशों में आरएसएस शाखाओं की भूमिका की भी सराहना की।