खुद है IPS फिर भी पति से चाहिए अलमानि, Supreme Court ने पति को लेकर सुनाया बड़ा फैसला, सुनकर चौंक जाएंगे
सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में उस पीड़ित पति को न्याय दिलाया है जिसे उसकी IPS पत्नी—एक वरिष्ठ महिला आईपीएस अधिकारी—ने झूठे आरोपों में फंसाकर जेल भेज दिया था। इस फैसले ने न केवल झूठी शिकायतों के खिलाफ एक मजबूत संदेश दिया है, बल्कि यह भी साबित कर दिया कि सच्चाई चाहे जितनी भी देर से सामने आए, जीत उसी की होती है।
जब IPS महिला का जब प्यार बना साज़िश
यह मामला एक शादीशुदा जोड़े का था जो 2018 से अलग रह रहे थे। महिला एक प्रभावशाली IPS अधिकारी थी, जबकि उसका पति और ससुर आम नागरिक। वैवाहिक विवाद के चलते IPS महिला ने अपने पति और ससुर के खिलाफ आपराधिक मुकदमे दर्ज करवाए, जिससे दोनों को जेल जाना पड़ा।
पति को 109 दिन, और उसके पिता को 103 दिन जेल में बिताने पड़े — एक ऐसी सज़ा जो किसी अपराधी को भी शायद ही मिलती।
Supreme Court का हस्तक्षेप
भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति एजी मसीह की खंडपीठ ने इस मामले में हस्तक्षेप किया और साफ शब्दों में कहा कि इन झूठे मुकदमों ने आरोपी पति और उसके परिवार को मानसिक और शारीरिक रूप से पीड़ित किया है।
कोर्ट ने सभी लंबित मामलों को रद्द कर दिया और पति-IPS पत्नी के बीच हुए विवाह को भी आधिकारिक रूप से भंग कर दिया। इसके साथ ही यह स्पष्ट कर दिया गया कि दंपति की बेटी मां के साथ रहेगी, लेकिन पिता और दादा-दादी को उससे मिलने का अधिकार रहेगा।
सरेआम मांफी मांगेगी IPS महिला
इस फैसले का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा यह रहा कि कोर्ट ने IPS महिला अधिकारी और उसके माता-पिता को पीड़ित पति और उसके परिवार से बिना शर्त सार्वजनिक माफी मांगने का आदेश दिया।
यह माफीनामा IPS महिला द्वारा एक प्रतिष्ठित अंग्रेजी और एक हिंदी अखबार में राष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित किया जाएगा। फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर तीन दिनों के भीतर पोस्ट किया जाएगा। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह माफी किसी भी कानूनी अधिकार या दायित्व को समाप्त नहीं करती, लेकिन यह एक नैतिक जिम्मेदारी है जो महिला पर बनती है।
सवाल न्याय का नहीं
यह फैसला उन हजारों पुरुषों के लिए उम्मीद की किरण है जो False Case के तहत कानून के दुरुपयोग का शिकार होते हैं। इस मामले ने यह सिद्ध किया है कि महिला सशक्तिकरण का अर्थ यह नहीं कि कानून का गलत इस्तेमाल कर किसी को मानसिक यातना दी जाए।
जब न्यायपालिका ने इस केस की सच्चाई को पहचाना, तो सच्चे पीड़ित की पुकार सुनी गई और झूठ का पर्दा हटाया गया।
कानून से बड़ा कोई नहीं
यह घटना न केवल न्याय प्रणाली की मजबूती को दर्शाती है, बल्कि यह भी बताती है कि चाहे कोई कितना भी ताकतवर क्यों न हो, कानून के सामने सभी बराबर हैं।झूठे आरोपों के खिलाफ खड़े इस पति को आखिरकार न्याय मिला। और यह फैसला आने वाले समय में False Case से पीड़ित हजारों लोगों के लिए एक मिसाल बनेगा।
"सच्चाई को दबाया जा सकता है, मिटाया नहीं जा सकता। और जब वह सामने आती है, तो उसका सामना करने के लिए ताकतवर से ताकतवर को भी झुकना पड़ता है।" अगर चाहें, तो मैं इस स्टोरी पर सोशल मीडिया पोस्ट, स्क्रिप्ट या ग्राफिक्स के आइडिया भी दे सकता हूँ।
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कर्नाटक के रायचूर जिले में विषाक्त खाना खाने से एक परिवार के छह सदस्यों में से तीन लोगों की मौत हो गई है, जबकि तीन का इलाज चल रहा है। मौत की सही वजह फोरेंसिक जांच और मृतक के पोस्टमॉर्टम परीक्षण के बाद ही पता चलेगा। जानकारी के मुताबिक, जिले के सिरवारा तालुका के के. थिम्मापुरा गांव के एक परिवार में पति रमेश, उनकी पत्नी पद्मा, नागम्मा, दीपा, कृष्णा और एक बेटी रहती थी। परिवार ने रात के समय खाना खाया और सो गए। सुबह जब सभी जगे तो सबकी तबीयत खराब हो गई, उन सबके पेट में दर्द शुरू हुआ।