ईरान-इज़राइल संघर्ष : फायदा उठाने की ताक में पाक
पाकिस्तानी हुक्मरान तुर्किए के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन की चालों का अनुसरण कर…
पाकिस्तानी हुक्मरान तुर्किए के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन की चालों का अनुसरण कर रहे हैं। जहां एक ओर वे अपने मुल्क की आवाम का गुस्सा शांत करने के लिए ‘इस्लामिक एकजुटता’ का नारा बुलंद कर रहे हैं, वहीं साथ ही साथ उन ताकतों से सौदेबाज़ी भी कर रहे हैं जो मौजूदा और भविष्य के उद्देश्यों के लिए उनके देश का इस्तेमाल कर रही हैं।
पाकिस्तानी नेता भी ईरान और व्यापक मुस्लिम जगत के साथ मुस्लिम एकजुटता के संकेत दे रहे हैं, ठीक वैसे ही जैसे एर्दोगन बीते वर्षों में करते आ रहे हैं लेकिन एर्दोगन और उसकी मंडली की ही तरह पाकिस्तान के असल हुक्मरान (सेना के जनरल) ऐसे सौदे करने में व्यस्त हैं जो उनके हितों के अनुकूल हों तथा राजनेताओं और वर्दीधारियों दोनों के खजाने को भरने वाले हों।
इस लेख को लिखते समय यह एक ऐसा क्षण है जब अमेरिका, ईरानी परमाणु सुविधाओं को अशक्तॉ करने और शासन परिवर्तन करने के लिए इजराइल के साथ युद्ध में उतरने को है। क्या व्हाइट हाउस में ट्रम्प के साथ मुनीर की मौजूदगी, तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन के साथ अफगान मुजाहिदीन नेताओं (बाद में तालिबान) के समान हो सकती है। अमेरिका ने मुजाहिदीनों का इस्तेमाल अफगानिस्तान में सोवियत संघ को मात देने के लिए किया था, पाकिस्तानी जनरलों का इस्तेमाल ईरान में अयातुल्लाओं को बाहर करने में किया जा सकता है।
अमेरिकी सेंट्रल कमांड के प्रमुख जनरल माइकल कुरिल्ला ने अफगानिस्तान सीमा पर लड़ाई में पाकिस्तान को एक “अभूतपूर्व साथी” करार दिया और बताया कि अमेरिकी और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियां दोनों सहयोग कर रही हैं। सेंटकॉम प्रमुख की यह टिप्पणी अमेरिका में बढ़ रही इस स्वीकृति को दर्शाती है कि पाकिस्तान उसके क्षेत्रीय मंसूबों के लिए महत्वपूर्ण बना हुआ है।
अपने पुराने आका -अमेरिका की खिदमत करना एक ऐसा कार्य है जिसे पाकिस्तानी जनरलों ने एक शिल्प के रूप में विकसित किया है। इस बीच, उन्होंने अपने आचरण को जनता की नज़रों से छिपाने के लिए छल का जाल बुनना शुरू कर दिया है। यहां असैन्य नेतृत्व उसके काम आया है। ईरान पर इजराइली हमले शुरू होते ही पाकिस्तानी राजनेताओं ने ईरान के समर्थन में आवाज़ उठानी शुरू कर दी। उनके उत्साह से प्रेरित होकर और यह मानते हुए कि पाकिस्तान उनके पीछे मजबूती से खड़ा है, ईरानी अधिकारियों ने यहां तक कहना शुरू कर दिया कि अगर इजराइल ने ईरानियों के खिलाफ अपने सामूहिक विनाश के हथियारों का इस्तेमाल करने की हिम्मत की तो पाकिस्तान उस पर परमाणु हमला कर देगा। अमेरिका से प्रतिशोध और फटकार के डर से पाकिस्तानियों ने तुरंत इस दावे का खंडन किया।
जैसे-जैसे संघर्ष बढ़ता गया और ईरानी पक्ष को पड़ोसियों से तत्काल सहायता की आवश्यकता महसूस हुई तो पाकिस्तान की ओर से प्रेस में आडंबरपूर्ण बयानबाजी के अलावा और कुछ नहीं हुआ। यहां तक कि पाकिस्तान ने कोई वादा नहीं किया तथा रूस और चीन से ज़मीन के रास्ते ईरान के लिए सैन्य सहायता प्राप्त करने का प्रयास भी नहीं किया। इस बीच, कई पाकिस्तानी पॉडकास्टर और मीडियाकर्मी जिनमें से अधिकांश पाकिस्तानी सेना से जुड़े हुए हैं, ने हाल के दिनों में पाकिस्तानी हितों के खिलाफ़ काम करने के लिए ईरान की खुलेआम आलोचना की।
जनरल मुनीर का अमेरिका दौरा और ट्रंप से अचानक मुलाकात शायद पाकिस्तान की ‘सटीक’ भूमिका तय करने से जुड़ी है, क्योंकि अमेरिका-इजराइल इस क्षेत्र को अयातुल्ला के बाद के ईरान के लिए तैयार कर रहे हैं। पाकिस्तान अपनी उपयोगिता का पूरा लाभ उठाने की कोशिश करेगा।
पाकिस्ताान में एक औपचारिक पाकिस्तान क्रिप्टो काउंसिल है जिसका नेतृत्व पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के विशेष सलाहकार बिलाल बिन साकिब करते हैं। उन्हें पाकिस्तान में क्रिप्टो ज़ार के रूप में जाना जाता है। यह कहना बेमानी होगा कि वे जनरल असीम मुनीर के बेहद करीबी हैं, जिन्होंने उन्हें एक बढ़िया पद दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी। लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में शिक्षा पूरी करने के तुरंत बाद ही उन्हें इस पद पर नियुक्त कर लिया गया था। उन्होंने क्रिप्टो माइनर्स, ब्लॉकचेन कंपनियों और एआई फर्मों को आकर्षित करने के लिए अधिशेष ऊर्जा का लाभ उठाने हेतु अनेक कदम उठाए हैं।
दिलचस्प बात यह है कि इन कदमों की घोषणा मई में लास वेगास में ट्रंप के पुत्र एरिक और उपराष्ट्रपति जेडी वेंस की मौजूदगी में की गई थी। घोषित योजनाओं में से एक में बिटकॉइन माइनिंग और एआई संचालन को बढ़ावा देने के लिए केवल 15% क्षमता पर काम कर रहे कम इस्तेमाल किए गए तीन कोयला-संचालित संयंत्रों को फिर से चालू करना शामिल है। साकिब ने इस कदम को पाकिस्तान के ऊर्जा अधिशेष का रणनीतिक उपयोग के रूप में करार दिया जो बुनियादी ढांचे में भारी निवेश और कम औद्योगिक गतिविधि से उपजा है।
यह करदाताओं के पैसे का उपयोग किए बिना क्रिप्टो में पाकिस्तान के नए-नए आत्मविश्वास को दर्शाता है। इसमें जब्त डिजिटल संपत्तियों को ‘संप्रभु रिजर्व’ के रूप में रखने के लिए एक नेशनल बिटकॉइन वॉलेट बनाना भी शामिल है। इस मॉडल का उद्देश्य रिजर्व बनाने के लिए माइनर फीस और वैश्विक दान एकत्र करना है। यह ऊर्जा-समृद्ध अमेरिकी प्रांत टेक्सास में लागू मॉडल का उप-उत्पाद या स्पिन-ऑफ है।
इसे सरल भाषा में समझने के लिए, विशेष रूप से क्षमता से कम पर काम करने वाले संयंत्रों से कम उपयोग की गई विद्युत क्षमता को पुनर्निर्देशित करके पाकिस्तान एक दीर्घकालिक देनदारी को उच्च मूल्य वाली परिसंपत्ति में बदलना चाहता है, डिजिटल सेवाओं के माध्यम से विदेशी करेंसी अर्जित करना चाहता है और यहां तक कि नेशनल वॉलेट में बिटकॉइन का भंडारण भी करना चाहता है। हालांकि यह मॉडल अर्थशास्त्रियों को भी उलझन में डालता है लेकिन क्या यह पाकिस्तान के अत्यधिक अस्थिर राजनीतिक परिदृश्य में जारी रह सकता है? इसका उत्तर देना बहुत कठिन है।
पाकिस्तानी हुक्मरान जो खुद को धार्मिक प्रतीक के रूप में दर्शाते हैं और जनरल मुनीर उनमें से शीर्ष पर हैं, ने ऐसे किसी भी फतवे या राय के संबंध में आंख और कान बंद कर रखे हैं। 40 मिलियन से अधिक क्रिप्टो उपयोगकर्ताओं और बढ़ती डिजिटल साक्षरता के साथ पाकिस्तान का लक्ष्य न केवल डिजिटल बुनियादी ढांचे के लिए गंतव्य के रूप में, बल्कि ब्लॉकचेन नवाचार और डिजिटल करेंसी के उपयोग में संप्रभु नेता के रूप में भी उभरना है।
– डॉ. शुजात अली कादरी
(डॉ. कादरी भारत के मुस्लिम स्टूडेंट ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इंडिया के सामुदायिक नेता और अध्यक्ष हैं)