ईरान-इजराइल युद्ध
दुनिया के सात बड़े देशों के संगठन जी-7 पर ईरान-इजराइल युद्ध की छाया के मंडराने…
दुनिया के सात बड़े देशों के संगठन जी-7 पर ईरान-इजराइल युद्ध की छाया के मंडराने की आशंका पहले से ही बनी हुई थी क्योंकि पश्चिम एशिया में यूरोपीय देशों व अमेरिका की दावेदारी द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से ही रही है। ईरान और इजराइल का फौजी संघर्ष जो तीव्र स्वरूप ले रहा है, उसे देखते हुए पूरी दुनिया का चिन्ता करना वाजिब है क्योंकि इस प्रकार के संघर्ष के बीच आर्थिक व सामान्य कारोबार नहीं हो सकता। इसकी वजह यह है कि आर्थिक उदारीकरण के बाद पूरी दुनिया एक बाजार के रूप में देखी जाने लगी है। इस दुनिया को सुरक्षित रखना प्रत्येक देश का कर्त्तव्य बनता है। मगर हम देख रहे हैं कि रूस व यूक्रेन के बीच पिछले तीन साल से लड़ाई जारी है और पश्चिम एशिया में ही पिछले नौ महीने से इजराइल-िफिलस्तीन युद्ध छिड़ा हुआ है। इस युद्ध के बीच ही इजराइल ने ईरान के खिलाफ भी जंग छेड़ दी है। इस जंग के भीषण दूरगामी परिणामों से फिलहाल पूरी दुनिया दहली हुई लगती है। अतः विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय संगठन अपील कर रहे हैं कि इस जंग का खात्मा होना चाहिए मगर विभिन्न देशों की इजराइल व ईरान के पक्ष-विपक्ष में भी गोलबन्दी होती नजर आ रही है जिससे विश्व स्तर पर भी युद्ध के बादल मंडराने का खतरा पैदा होता जा रहा है। जहां तक भारत का सवाल है तो इसके दोनों देशों के साथ ही मधुर सम्बन्ध हैं अतः भारत बीच का रास्ता अपनाने को मजबूर है। प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी आजकल कनाडा की यात्रा पर हैं जहां के कैल गरी शहर में जी-7 सम्मेलन हो रहा है। भारत को इस सम्मेलन में बतौर मेहमान के निमन्त्रित किया गया है। इस वजह से भारत की भूमिका अन्य जी-7 देशों के समान नहीं हो सकती फिर भी श्री मोदी ने कनाडा पहुंचने से पहले ही साफ कर दिया था कि वर्तमान दौर युद्धों का दौर नहीं है बल्कि वार्ताओं द्वारा बड़ी से बड़ी समस्या का हल ढूंढने का दौर है।
श्री मोदी कनाडा से पहले साइप्रस के भी एक दिवसीय दौरे पर गये थे। जहां उन्हें इस देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भी प्रदान किया गया। जहां तक ईरान का सवाल है तो वह अपना परमाणु कार्यक्रम चला रहा है और इसके खिलाफ दुनिया के बहुसंख्य देश हैं। इजराइल ने चार दिन पहले ईरान पर हमला इसी वजह से किया था। इसके जवाब में ईरान ने भी इजराइल पर जबर्दस्त हमला बोला। तब से यह लड़ाई जारी है। इजराइल ईरान के यूरेनियम संवर्धन ठिकानों पर हमले बोल रहा है और कह रहा है कि ईरान ने यदि परमाणु बम बना लिया तो उसका प्रयोग उसके ऊपर हो सकता है। विश्व के सात अग्रणी जी-7 देशों की राय भी यही है कि ईरान को परमाणु बम नहीं बनाना चाहिए क्योंकि इसका इतिहास क्षेत्र के आतंकवादी संगठनों को मदद पहुंचाने का रहा है। ईरान वैसे तो एक मुस्लिम राष्ट्र है परन्तु इसका इतिहास भी एक जमाने में उदार लोकतान्त्रिक देश का रहा है। 1953 तक यहां प्रधानमन्त्री मुसद्दिक की चुनी हुई जनतान्त्रिक सरकार थी। मुसद्दिक ने अपने देश की तेल कम्पनियों का राष्ट्रीयकरण कर दिया था क्योंकि उनके देश में कार्यरत विदेशी यूरोपीय व अमेरिकी कम्पनियां स्थानीय तेल स्रोतों का अत्यधिक शोषण करती थीं।
इस वर्ष यहां ईरान के शाह को बुलाकर मुसद्दिक सरकार का तख्ता पलट करा दिया गया और ईरान राजशाही के तहत जीने लगा। राजशाही 1979 तक रही । इस वर्ष ईरान के शाह का भी तख्ता पलट कथित इस्लामी क्रान्ति करके किया गया जिसकी बागडोर फ्रांस से आकर स्व. आयतुल्ला खुमैनी ने संभाली थी। तब से ईरान कट्टरपंथियों के हाथों में ही खेल रहा है। हालांकि यहां चुनाव भी होते हैं मगर वे सब इस्लामी तौर-तरीके अपनाने की गरज से ही कराये जाते हैं। अतः ईरान यदि परमाणु शक्ति बन जाता है तो यूरोप व अमेरिका की नजर में वह बहुत खतरनाक होगा। हालांकि इसी श्रेणी में पाकिस्तान को भी रखा जा सकता है क्योंकि यह देश तो आतंकवाद की पनाहगाह बना हुआ है। मगर यूरोपीय देशों के पाकिस्तान में अपने वे हित हैं जिनकी वजह से 1947 में पाकिस्तान का जन्म मजहब की बुनियाद पर हुआ था।
इजराइल का कहना है कि उसका लक्ष्य ईरान के परमाणु कार्यक्रम को तबाह करना है। मगर दुनिया के देश सोच रहे हैं कि इस युद्ध पर विराम लगना चाहिए। भारत की भी एेसी ही सोच है। हालांकि रूस व चीन ईरान के साथ बताये जाते हैं मगर अभी तक खुलकर वे सामने नहीं आये हैं और उन्होंने युद्ध विराम का ही समर्थन किया है। चीन की सरपरस्ती वाले शंघाई सहयोग संगठन ने भी दो दिन पहले एक वक्तव्य जारी करके कहा था कि युद्ध को समाप्त करने के तरीके के बारे में सोचा जाना चाहिए। भारत भी इस संगठन का सदस्य है मगर उसने इस वक्तव्य पर हस्ताक्षर नहीं किये थे। इसी प्रकार जी-7 देशों की तरफ से भी कल एक संयुक्त वक्तव्य जारी किया गया जिसमें ईरान से परमाणु कार्यक्रम समाप्त करने को कहा गया था और युद्ध को समाप्त करने की अपील की गई थी। मगर इस पर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने हस्ताक्षर नहीं किये। इसके साथ ही श्री ट्रम्प जी-7 सम्मेलन को बीच में ही छोड़कर स्वदेश वाशिंगटन भी रवाना हो गये। इससे यह समझा जा रहा है कि इजराइल- ईरान मोर्चे पर कोई बड़ी घटना होने वाली है। अमेरिका ने दक्षिणी चीन सागर से अपने युद्ध पोत हटाकर पश्चिम एशिया की तरफ भी भेजने शुरू कर दिये हैं। ट्रम्प भी साफ कह चुके हैं कि ईरान को अपना परमाणु कार्यक्रम रद्द कर देना चाहिए जबकि ईरान का कहना है कि एक संप्रभु राष्ट्र होने की वजह से उसे आत्मरक्षार्थ में यह कदम उठाने का अधिकार है। दूसरी तरफ जी-7 देश कह रहे हैं कि इजराइल को भी आत्मरक्षा का अधिकार है। इससे यह उम्मीद है कि युद्ध विराम का विकल्प ढूंढा जाये तो यह असंभव भी नहीं लगता।