For the best experience, open
https://m.punjabkesari.com
on your mobile browser.
Advertisement

ईरान-इजराइल युद्ध खत्म हो

ईरान-इजराइल युद्ध को चलते पूरे नौ दिन बीत चुके हैं मगर दोनों देश एक-दूसरे पर…

04:45 AM Jun 22, 2025 IST | Aditya Chopra

ईरान-इजराइल युद्ध को चलते पूरे नौ दिन बीत चुके हैं मगर दोनों देश एक-दूसरे पर…

ईरान इजराइल युद्ध खत्म हो

ईरान-इजराइल युद्ध को चलते पूरे नौ दिन बीत चुके हैं मगर दोनों देश एक-दूसरे पर घातक आक्रमण करने से बाज नहीं आ रहे हैं जिसके चलते दोनों देशों में भारी तबाही हो रही है और करोड़ों डालर रोज का नुक्सान हो रहा है। इस युद्ध का असली कारण भी नजर नहीं आ रहा है हालांकि इजराइल यह कह रहा है कि ईरान परमाणु हथियार बनाने की तरफ तेजी से बढ़ रहा था जिसकी वजह से उसने आक्रमण की शुरूआत की। दूसरी तरफ ईरान का कहना है कि उसका परमाणु कार्यक्रम पूरी तरह शान्तिपूर्ण है और उसे एेसा करने से कोई नहीं रोक सकता क्योंकि वह एक संप्रभु राष्ट्र है और अपने फैसले करने का उसे पूरा अधिकार है। सबसे दुखद यह पहलू है कि इसमें उस अमेरिका के भी कूदने के कयास लगाये जा रहे हैं जिसके राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प अपने शान्ति प्रयासों के लिए खुद ही नोबेल शान्ति पुरस्कार की मांग कर रहे हैं। खुदा जाने उन्होंने कितने शान्ति प्रयास किये हैं मगर ईरान के मामले में वह कह रहे हैं कि वह इजराइल व ईरान को 14 दिन का समय देना चाहते हैं जिसके दौरान वे किसी समझौते पर आ जायें। ट्रम्प ने तो भारत व पाकिस्तान के बीच पहलगाम घटना के बाद छिड़े युद्ध को भी रुकवाने का दावा ठोका था जो पूरी तरह निराधार निकला क्योंकि प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी की तरफ से साफ कर दिया गया कि भारत ने संघर्ष विराम पाकिस्तान की प्रार्थना पर स्वीकार किया था।

घटनाओं से साफ है कि अमेरिका का ईरान-इजराइल के युद्ध के बारे में नजरिया बहुत ही गफलत भरा है। कभी ट्रम्प ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह खेमनेई को चेतावनी देते हैं कि उन्हें दुनिया से ही अल​िवदा करने की ताकत अमेरिका व इजराइल में है और कभी कहने लगते हैं कि वह दोनों देशों के बीच निर्णायक फैसला चाहते हैं। मगर सवाल यह है कि शान्ति दूत बनने की चाह रखने वाले ट्रम्प पश्चिम एशिया में शान्ति की वकालत क्यों नहीं कर रहे? युद्ध केवल विनाश ही लाता है। किसी भी समस्या का हल कभी भी युद्ध से न निकलकर सिर्फ बातचीत से ही निकलता है। यदि ईरान परमाणु हथियार बनाने की तरफ तेजी से बढ़ रहा था तो अन्तर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी को चिन्ता होनी चाहिए थी क्योंकि ईरान ने परमाणु अप्रसार सन्धि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर किये हुए हैं। मगर एजेंसी के महानिदेशक कह रहे हैं कि उनके पास एेसा कोई प्रमाण नहीं है जिसे देखकर यह कहा जा सके कि ईरान परमाणु बम बनाना चाहता है। मगर रूस के राष्ट्रपति श्री पुतिन ने इस सिरे को पकड़ लिया है और उन्होंने घोषणा कर दी है कि ईरान को शान्तिपूर्ण नागरिक उद्देश्यों के लिए परमाणु ऊर्जा विकसित करने का पूरा अधिकार है। परमाणु ऊर्जा एजेंसी के पास यह अधिकार है कि यदि वह किसी एेसे देश को विध्वंसक परमाणु ऊर्जा की तरफ बढ़ते देखे जिसने एनपीटी पर हस्ताक्षर किये हैं तो वह उसके परमाणु कार्यक्रम को बीच में ही रोक सकती है परन्तु ईरान के मामले में पूरी दुनिया पूरी तरह बटी हुई लगती है और इसके समानान्तर दोनों देश एक-दूसरे की तबाही पर आमादा लगते हैं।

ईरान के मामले में मुस्लिम देश भी बंटे हुए हैं। कुछ अमेरिकी खेमे में हैं तो कुछ रूस व चीन के खेमे में। चीन भी परोक्ष रूप से ईरान का पक्षधर है। वह युद्ध विराम कराने की कई बार अपील कर चुका है मगर अपने हितों को साधने के लिए वह किसी भी हद तक जा सकता है जिससे युद्ध के और भड़कने की संभावनाओं को टाला नहीं जा सकता क्योंकि अमेरिका प्रत्यक्ष रूप से इजराइल के साथ है। जहां तक रूस का सवाल है तो वह अपने ही घर में हालांकि यूक्रेन युद्ध में फंसा हुआ है मगर वह ईरान का साथ नहीं छोड़ सकता क्योंकि इसके परमाणु कार्यक्रम में वह सहयोग कर रहा है और उसके दो सौ से अधिक वैज्ञानिक ईरान में इस काम में उसका हाथ बटा रहे हैं जिसे देखते हुए कहा जा सकता है कि ईरान-इजराइल युद्ध के खिंचने के भयंकर दुष्परिणाम हो सकते हैं। अतः बहुत जरूरी है कि यह युद्ध जल्दी से जल्दी रोका जाये। कहने को तो इजराइल भी परमाणु शक्ति सम्पन्न देश है और इसने एनपीटी पर हस्ताक्षर भी नहीं किये हुए हैं। इसकी परमाणु क्षमता पर दुनिया के किसी देश ने अंगुली नहीं उठाई जबकि पिछले 40 साल से ईरान व इजराइल के सम्बन्ध अच्छे नहीं चल रहे हैं।

सवाल इजराइल के इरादों पर इसलिए भी खड़े किये जा रहे हैं क्योंकि इसके प्रधानमन्त्री बैंजामिन नेतन्याहू कह रहे हैं कि उनकी मंशा ईरान में निजाम बदलने की भी है। बेशक ईरान एक मुस्लिम गणतान्त्रिक देश है और अपने दकियानूस विचारों की वजह से इस देश में महिलाओं के साथ बहुत क्रूरतम व्यवहार तक किया जाता है मगर किस देश में किस प्रकार का निजाम रहेगा इसका फैसला उसी देश के लोगों पर निर्भर करता है। कम से कम भारत की तो यह घोषित नीति है। भारत वैचारिक दर्शन के निर्यात के कारोबार में कभी नहीं रहा। भारत की इच्छा है कि यह युद्ध जल्दी से जल्दी रुके क्योंकि इसके दोनों देशों के साथ ही अच्छे सम्बन्ध हैं। ईरान के साथ तो भारत के सदियों पुराने सांस्कृतिक व एेतिहासिक सम्बन्ध हैं। 1979 तक यहां राजशाही थी। जिसके शहंशाह की पदवी ‘आर्य मिहिर’ होती थी। इसका मतलब होता है आर्यों का सूर्य। कभी इस देश में भी आर्य व बौद्ध संस्कृति का बोलबाला हुआ करता था। भारत के सम्राट अशोक का शासन पाटिलीपुत्र से लेकर तेहरान तक था। अतः ईरान व भारत के सम्बन्ध सांस्कृतिक रूप से बहुत गहरे रहे हैं परन्तु हम भूतकाल में नहीं जी सकते, आज यह एक मुस्लिम राष्ट्र है और इजराइल एक यहूदी देश है। इन दो देशों की आपसी दुश्मनी का मतलब धार्मिक दर्शन के आधार पर भी नहीं होना चाहिए क्योंकि यह 21वीं वैज्ञानिक सदी चल रही है। इसलिए युद्ध जितनी जल्दी समाप्त होगा दुनिया को उतना जल्दी ही सुकून मिलेगा।

Advertisement
Advertisement
Author Image

Aditya Chopra

View all posts

Aditya Chopra is well known for his phenomenal viral articles.

Advertisement
×