ईरान ने अफगान नागरिकों पर कसा शिकंजा, तालिबान से बढ़ा तनाव
काबुल: ईरान और इजराइल के बीच हालिया युद्ध के समाप्त होने के बाद अब ईरान ने अपने पड़ोसी देश अफगानिस्तान, विशेष रूप से तालिबान शासन के प्रति कड़ा रुख अपनाया है। तालिबान द्वारा इस संघर्ष में समर्थन न देने के बाद तेहरान प्रशासन ने अफगानी शरणार्थियों और घुसपैठियों पर व्यापक कार्रवाई शुरू कर दी है। इसमें गिरफ़्तारी, निष्कासन और निगरानी जैसे कदम शामिल हैं।
ईरान की बड़ी कार्रवाई
1. अफगान नागरिकों पर जासूसी का आरोप
बीबीसी पर्सियन की रिपोर्ट के अनुसार, तेहरान में 5 अफगान नागरिकों को गिरफ्तार किया गया है, जिन पर इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद के लिए जासूसी करने का आरोप लगाया गया है। तालिबान सरकार के प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि “हम स्थिति की निगरानी कर रहे हैं और भविष्य की घटनाओं पर नजर बनाए हुए हैं।”
2. चार गुना बढ़ी गिरफ्तारियां
टोलो न्यूज के अनुसार, ईरानी प्रशासन ने अफगान शरणार्थियों की गिरफ्तारी में चार गुना वृद्धि की है। अधिकांश गिरफ्तार किए गए लोग ईरान में अवैध रूप से प्रवेश करने वाले शरणार्थी हैं जिन्हें कानूनी नियमों के उल्लंघन के आरोप में पकड़ा गया है।
3. जबरन वापसी
हेरात प्रांत के एक अधिकारी के अनुसार, हालिया कार्रवाई के कारण एक ही दिन में लगभग 30,000 अफगान नागरिक ईरान छोड़कर वापस अफगानिस्तान लौटने पर मजबूर हुए। रिपोर्टों के अनुसार, तेहरान में इस समय लगभग 2 लाख अफगानी नागरिक मौजूद हैं, जिनमें से कई अनियमित या शरणार्थी हैं।
तालिबान का मौन, ईरान की नाराजगी की जड़
ईरान और अफगानिस्तान की साझा सीमा 921 किलोमीटर लंबी है, जो पाकिस्तान से भी अधिक है। इसके बावजूद तालिबान शासन ने इजराइल युद्ध के दौरान ईरान को किसी प्रकार का समर्थन नहीं दिया। तुलनात्मक रूप से, तुर्कमेनिस्तान जैसे अन्य पड़ोसी देशों ने सहयोग के संकेत दिए, परंतु तालिबान ने न तो सीमा खोली, न मानवीय सहायता भेजी और न ही कूटनीतिक समर्थन दिया। ईरान इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ईरान रिवोल्यूशनरी गार्ड्स (IRGC) के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों ने इजराइली हमलों के दौरान तालिबान से सुरक्षा देने की गुहार लगाई थी, लेकिन न केवल उनकी मदद ठुकरा दी गई, बल्कि इस संवेदनशील बैठक की जानकारी मीडिया में लीक भी कर दी गई, जिससे तेहरान और काबुल के संबंधों में और खटास आ गई।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि तालिबान का मौन रहना केवल रणनीतिक तटस्थता नहीं, बल्कि ईरान के लिए एक कूटनीतिक झटका था, जिसे अब ईरान गैर-राजनयिक तरीकों से निपटाने की कोशिश कर रहा है। ईरान पहले से ही आर्थिक दबाव, आंतरिक असंतोष, और शरणार्थी बोझ से जूझ रहा है, ऐसे में वह अफगान प्रवासियों को निष्कासित कर एक सामाजिक और कूटनीतिक संदेश देना चाहता है।