इजराइल-ईरान युद्ध और भारत
रूस-यूक्रेन युद्ध, इजराइल-हमास संघर्ष के जारी रहते हुए इजराइल ने ईरान पर हमला…
रूस-यूक्रेन युद्ध, इजराइल-हमास संघर्ष के जारी रहते हुए इजराइल ने ईरान पर हमला करके पश्चिम एशिया को एक बार फिर गर्त में धकेल दिया है। इजराइल और इराक अब एक-दूसरे पर हमले कर रहे हैं। पहले इजराइल ने ईरान के परमाणु ठिकानों और शीर्ष सैन्य कमांडरों पर जबरदस्त हमले किए, जिसमें ईरान के कई वैज्ञानिक और सैन्य कमांडर मारे गए। इजराइली एयर फोर्स के जबरदस्त हमलों से ईरानी वायु क्षमता कमजोर दिखाई दी। इजराइली खुफिया एजैंसी मोसाद ने हमलों के लिए खुफिया तैयारी की थी। इजराइल ने ईरान के भीतर विस्फोटक ड्रोन लगा दिए थे और इन ड्रोनों ने ईरान के सैन्य ठिकानों को ध्वस्त कर दिया। ईरान के नतांज परमाणु केन्द्र पर भी धमाके हुए। इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू हमास की तरह ईरान को तबाह कर देना चाहते हैं तो दूसरी ओर ईरान के सर्वोच्च धािर्मक नेता आयातुल्लाह खमैनी इजराइल को गम्भीर परिणामों की चेतावनी दे रहे हैं। यदपि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने पहले इजराइली हमले से पल्ला झाड़ा लेकिन अब वह पलटी मारकर इजराइल के साथ खड़े हो गए हैं। ट्रम्प को इजराइली हमले की जानकारी न हो,यह संभव ही नहीं। अब ट्रम्प ईरान को चेतावनियां देने लगे हैं। अपने परमाणु कार्यक्रम को लेकर अमेरिका से चल रही बातचीत भी ईरान ने रोक दी है। वैसे भी इस वार्ता का कोई नतीजा निकलने वाला नहीं था। इसमें कोई संदेह नहीं कि ईरान इजराइल को तबाह करने के िलए हमास, लेबेनान में हिज्बुल्लाह और मध्य पूर्व से बाहर भी आतंकी संगठनों को फंड आैर हथियार देता है। अगर ईरान परमाणु बम बना लेता है तो इससे समूचा क्षेत्रीय संतुलन ही बिगड़ जाएगा। इजराइल को खुफिया जानकारी मिली थी कि ईरान कुछ दिनों में परमाणु बम बनाने वाला है जिससे इजराइल को अपने अस्तित्व के लिए खतरा महसूस होने लगा तो उसने ईरान के परमाणु ठिकानों को निशाना बना दिया।
ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर चिंताएं जायज हैं। उसने यूरेनियम को 60 फीसदी की शुद्धता तक संवर्धित किया है, जोकि नागरिक उद्देश्यों के लिए निर्धारित मानक से कहीं ज़्यादा है। इजराइल का कहना है कि ईरान गुप्त रूप से बम बनाने की कोशिश कर रहा है। जबकि आईएईए का कहना है कि ईरान के पास बम बनाने के लिए पर्याप्त उच्च संवर्धित यूरेनियम है लेकिन इस बात के कोई निर्णायक सबूत नहीं हैं कि ईरान इस दिशा में आगे बढ़ा है। तेहरान ने एक बार 2015 में बहुपक्षीय समझौते के हिस्से के रूप में प्रतिबंधों को हटाने के बदले में अपने परमाणु कार्यक्रम को खत्म करने पर सहमति व्यक्त की थी लेकिन यह ट्रम्प ही थे जिन्होंने इस समझौते को विफल कर दिया था और जब ट्रम्प ने अपने दूसरे कार्यकाल में बातचीत की पेशकश की तो ईरानियों ने इसे लपक लिया लेकिन इसके एवज में ईरान को अपने परमाणु संयंत्रों पर हमला मिला। इजराइल ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि उसे पता था कि वह अमेरिका के सैन्य, राजनीतिक और कूटनीतिक समर्थन की बदौलत किसी भी किस्म की चढ़ाई से बच सकता है। गाजा में उसके द्वारा किए गए विनाश, जिसमें 54,000 से ज्यादा फिलिस्तीनी मारे गए हैं, के बाद उस पर नरसंहार करने के आरोप लग रहे हैं। हिज्बुल्लाह के साथ युद्धविराम के बावजूद वह नियमित रूप से लेबनान पर बमबारी करता रहता है। असद के शासन के पतन के बाद उसने सीरिया में और ज्यादा इलाकों पर कब्ज़ा कर लिया है और अब, ईरान पर हमला करके, तेल अवीव ने पश्चिम एशिया को सुरक्षा के और भी गहरे गर्त में धकेल दिया है। इजराइल के बेलगाम सैन्यवाद की वजह से उथल-पुथल वाले इस क्षेत्र में कूटनीति की जगह सिकुड़ती जा रही है। इस युद्ध ने भारत को बड़ी चिंता में डाल दिया है। भारत के दोनों देशों से ही अच्छे संबंध हैं। पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तान के विरुद्ध भारत के ऑपरेशन सिंदूर के दौरान इजराइल ही एक ऐसा देश है जो भारत के साथ खुलकर खड़ा रहा। इजराइल भारत का सबसे प्रमुख रक्षा साझेदार भी है। कारगिल युद्ध के दौरान भी इजराइल ने ही भारत को सैन्य सामग्री दी थी। कुछ माह पहले 12 हजार के लगभग भारतीय इजराइल में काम करने गए थे। वहां पहले ही 18 हजार भारतीय रहते हैं। जहां तक ईरान का संबंध है, ईरान के चाबहार बंदरगाह का निर्माण भारत की कूटनीतिक जरूरतों के हिसाब से काफी महत्वपूर्ण है। भारत इस बंदरगाह के जरिये अफगानिस्तान को जोड़ने की योजना बना रहा है। ईरान में भी 10 हजार से ज्यादा भारतीय कामगार हैं। उनकी सुरक्षा भी बड़ी चुनौती है। अगर युद्ध लम्बा चलता है तो खाड़ी देशों में काम करने वाले एक करोड़ भारतीय नागरिकों की चिंता पैदा हो सकती है। इन कामगारों द्वारा भारत भेजे जाने वाले धन की देश की अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका है। खाड़ी के हालात बिगड़े तो कच्चे तेल की कीमतें बढ़ जाएंगी। भारत अपनी जरूरत का 60 फीसदी कच्चा तेल खाड़ी देशों से आयात करता है।
भारत ने दोनों देशों से तनाव कम कर कूटनीतिक वार्ता करने की अपील की है। भारत इजराइल के खिलाफ भी नहीं जाएगा। इसलिए उसने एससीओ की तरफ से जारी इजराइली हमले की निंदा के प्रस्ताव से खुद को अलग कर लिया है। भारत, ईरान, पाकिस्तान, रूस, चीन और मध्य एशिया के कुल 10 देेश एससीओ के सदस्य हैं। इससे पहले गुरुवार को संयुक्त राष्ट्र आम सभा में गाजा में इजराइल के हमले की निंदा करते हुए वहां शांति स्थापित करने के लिए प्रस्ताव पर हुई वोटिंग के दौरान भारत अनुपस्थित रहा। भारत के लिए स्थिति काफी जटिल है। भारत को बुद्ध की धरती कहा जाता है। भारत ने हमेशा शांति स्थापना पर ही बल दिया है। भारत के दोनों देशों से अच्छे रिश्ते हैं। इसलिए भारत ने खुद को तटस्थ बनाए रखा है। देखना होगा कि आने वाले दिनों में भारत क्या भूमिका निभाता है।