Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

जेएनयू में मसला फीस का!

वास्तव में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में पिछले कुछ वर्षों से ऐसी घटनाएं सामने आई हैं, उससे कई सवाल बहुत पीछे रह गए हैं।

04:14 AM Nov 25, 2019 IST | Ashwini Chopra

वास्तव में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में पिछले कुछ वर्षों से ऐसी घटनाएं सामने आई हैं, उससे कई सवाल बहुत पीछे रह गए हैं।

देश के सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में फीस वृद्धि पर गतिरोध कायम है। जेएनयू छात्रों की अलग-अलग बैठकें इस मसले को सुलझाने के लिए केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्रालय की उच्चस्तरीय समिति से हो चुकी हैं। सम्भव है कि फीस बढ़ौतरी को लेकर कोई समाधान निकाला जाए। आंदोलनकारी छात्रों का कहना है कि उन्हें फीस बढ़ौतरी को पूरी तरह रोल बैक करने के अलावा कुछ भी मंजूर नहीं है। 
Advertisement
वास्तव में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में पिछले कुछ वर्षों से ऐसी घटनाएं सामने आई हैं, उससे कई सवाल बहुत पीछे रह गए हैं। जेएनयू विश्वविद्यालय केवल शहरों, महानगरों के छात्रों के लिए नहीं बल्कि ग्रामीण एवं आर्थिक रूप से पिछड़े छात्रों के लिए है, जिनको भले ही अंग्रेजी में महारत हासिल न हो लेकिन प्रतिभा गजब की होती है। इसमें कोई संदेह नहीं कि जेएनयू की समाज के कमजोर वर्गों तक पहुंच है। इस विश्वविद्यालय में पढ़ने से प्रतिभा सम्पन्न छात्रों की प्रतिभा निखर जाती है। 
जेएनयू सहित सरकार की ओर से संचालित शिक्षण संस्थानों में पढ़ाई से लेकर होस्टलों और अन्य सुविधाओं तक का खर्च इतना न्यूनतम रखा गया है ताकि वहां किसी भी सामाजिक वर्ग से आने वाले छात्रों की पढ़ाई में कोई बाधा उत्पन्न न हो। यह ​विडम्बना ही है कि राजनीति के इस दौर में जेएनयू की छवि को धूमिल करने के प्रयास किए गए। यहां के छात्रों को टुकड़े-टुकड़े गैंग के रूप में प्रचारित किया गया। 
जेएनयू परिसर में ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे…’ जैसे नारे गूंजना भी किसी त्रासदी से कम नहीं लेकिन चंद छात्रों के चलते पूरे विश्वविद्यालय की छवि राष्ट्र विरोधी बनाने का प्रयास किया गया। छात्र जीवन जोश और उमंग से भरा हुआ होता है। छात्रों से निपटने के लिए बहुत ही समझदारी से काम लिया जाना चाहिए। जेएनयू प्रशासन के अडि़यल रुख और दिल्ली पुलिस ने छात्र आंदोलन को जिस बर्बरता से दबाने की कोशिश की, उसे किसी भी तरीके से जायज नहीं ठहराया जा सकता। 
विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर ने जिस तरह बैठक बुलाकर फीस बढ़ौतरी का ऐलान ​कर दिया, वह छात्रों को नागवार गुजरा। पूर्व के वाइस चांसलर कोई भी फैसला लेने से पूर्व छात्र प्रतिनिधियों से बातचीत करते थे, ऐसी परम्परा भी रही है लेकिन इस बार वाइस चांसलर ने एकतरफा ऐलान कर दिया। जब छात्रों ने उनसे मिलने का समय मांगा तो उन्होंने मिलने से इंकार कर दिया। छात्रों ने आक्रोशित होकर संसद की ओर कूच किया तो दिल्ली पुलिस ने उन पर लाठीचार्ज ​किया। 
जेएनयू प्रशासन और दिल्ली पुलिस ने पूर्व के छात्र आंदोलनों से कोई सबक नहीं सीखा। शिक्षा का क्षेत्र पहले ही निजी हाथों में सौंपा जा चुका है। कार्पोरेट सैक्टर को टैक्स में अरबों रुपए की सालाना छूट दी जा रही है। ​निजी स्कूल गरीब आदमी के बजट से बाहर हो चुके हैं। सरकारी स्कूलों से पढ़कर अखिल भारतीय प्रवेश परीक्षा पास कर जब गरीबों के प्रतिभाशाली छात्र विश्वविद्यालय पहुंचते हैं तो प्रशासन को उनकी आर्थिक स्थिति का भी ध्यान रखना होगा। क्या जेएनयू प्रशासन फीस में बढ़ौतरी कर यहां भी प्राइवेट विश्वविद्यालयों जैसा माडल अपनाना चाहता है। 
गरीबों के बच्चे जेएनयू में इसलिए पढ़ना चाहते हैं क्योंकि यहां पढ़ाई सस्ती है। किसी का पिता नहीं है, मां छोटे-मोटे काम कर बच्चों को पढ़ाती है। अनेक छात्रों के परिवार आर्थिक रूप से बहुत कमजोर हैं कि उन्हें दो जून की रोटी के लिए संघर्ष करना पड़ता है। प्राइवेट विश्वविद्यालयों के रास्ते इनके ​लिए बंद हो चुके हैं। कई शहरों में ऐसे निजी विश्वविद्यालय खुल रहे हैं जहां ग्रेजुएशन के लिए किसान के बेटे को भी साल में एक या डेढ़ लाख देने पड़ते हैं। 
हाल ही में इन विश्वविद्यालयों के छात्र भी सड़कों पर आकर आंदोलन कर चुके हैं। अगर सरकार द्वारा संचालित शिक्षण संस्थानों में पढ़ाई लग्जरी बनेगी तो फिर भावी पीढ़ी पढ़ेगी कैसे? कई लोगों को छात्रों का विरोध अनुचित लगा जबकि वास्तविकता यह भी है कि नई नियमावली में होस्टल शुल्क के अलावा भी मेस सिक्योरिटी, बिजली-पानी शुल्क में काफी वृद्धि की गई जो छात्रों के आंदोलन के बाद कम की गई। बहुत से छात्र इस बढ़ौतरी को भी अपनी पहुंच से बाहर मान रहे हैं। 
छात्रावास के समय और भोजन हाल में जाने के लिए जो शर्तें रखी गईं वह भी परिसर में सहज जीवनशैली पर चोट के समान हैं। छात्र जीवन में कोई भी ‘मोरल पुलिसिंग’ को स्वीकार करने को तैयार नहीं। छात्र इसे नैतिक अतिवाद मान रहे हैं। सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन को छात्र प्रतिनिधियों को विश्वास में लेकर ऐसा माडल प्रस्तुत करना चाहिए ताकि ​शिक्षा पर खर्च की पहुंच हर वर्ग तक को हो। यदि शिक्षा को प्राइवेट शिक्षण संस्थानों की तरह महंगा किया गया तो ​फिर वह जेएनयू रहेगा कैसे? इस पर विचार किया जाना चाहिए। शिक्षण संस्थानों को लाभ कमाने वाली कम्पनी की तरह नहीं चलाया जाना चाहिए।
Advertisement
Next Article