W3Schools
For the best experience, open
https://m.punjabkesari.com
on your mobile browser.
Advertisement

कश्मीर पर बातचीत के मुद्दे?

कश्मीर की समस्या मूलतः भारत की स्वतन्त्रता के समय ही पैदा हुई जिसकी जड़ में इस रियासत के तत्कालीन शासक स्व. राजा हरिसिंह थे।

05:20 AM Jun 26, 2019 IST | Ashwini Chopra

कश्मीर की समस्या मूलतः भारत की स्वतन्त्रता के समय ही पैदा हुई जिसकी जड़ में इस रियासत के तत्कालीन शासक स्व. राजा हरिसिंह थे।

कश्मीर पर बातचीत के मुद्दे
Advertisement
कश्मीर की समस्या मूलतः भारत की स्वतन्त्रता के समय ही पैदा हुई जिसकी जड़ में इस रियासत के तत्कालीन शासक स्व. राजा हरिसिंह थे। 15 अगस्त,1947 तक अपनी रियासत का भारतीय संघ में विलय न करके उन्होंने इसे एक आजाद सत्ता के रूप में कायम रखने का सपना पाला और भारत को बांटकर बनाये गये देश पाकिस्तान के साथ भी ताल्लुकात रखने चाहे, जिसे अक्टूबर महीने के आते-आते तक नवनिर्मित पाकिस्तान के हुक्मरानों ने चकनाचूर इस तरह किया कि इस रियासत की दो-तिहाई कश्मीर घाटी को अपने कब्जे में कर लिया और तब जाकर 26 अक्तूबर, 1947 को महाराजा हरिसिंह ने भारतीय संघ में अपनी पूरी रियासत का विलय करने पर दस्तखत किये और ऐसा करते हुए कुछ खास शर्तें भी रखीं जिन्हें भारत के संविधान में अनुच्छेद 370 बनाकर जोड़ा गया और इसे बाजाब्ता तौर पर बरकरार रखने के लिए अनुच्छेद 35(ए) को वजूद में लाया गया।
Advertisement
35(ए) जम्मू-कश्मीर के नागरिकों की नागरिकता शर्तें तय करता है और 370 भारतीय संविधान के तहत इस राज्य की विशेष स्थिति को लागू करता है। केन्द्र की सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा सैद्धांतिक रूप से अनुच्छेद 370 व 35(ए) के खिलाफ है। हाल ही में सम्पन्न हुए लोकसभा चुनावों में भी कश्मीर एक मुद्दा था। इस राज्य की विशेष स्थिति के विरुद्ध इस पार्टी के संस्थापक डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने व्यापक अभियान 1952 से ही चलाया था जिसे ‘एक विधान, एक निशान, एक संविधान’ के नाम से जाना जाता है। इसके चलते ही 1953 में उनकी मृत्यु भी जम्मू-कश्मीर में ही हुई। जिसके राजनीतिक परिणामस्वरूप राज्य की तत्कालीन शेख अब्दुल्ला सरकार भी बर्खास्त हुई, परन्तु पिछले सत्तर सालों में जम्मू-कश्मीर समस्या का रंग पूरी तरह बदल चुका है और पड़ोसी देश पाकिस्तान ने इसे आतंकवाद के साये में भी लिपटा दिया है जिससे यह मसला और पेचीदा हो गया है।
Advertisement
अतः अब हकीकत यह है कि राज्य में जिस तरह के राजनीतिक हालात हैं उन्हें सामान्य बनाते हुए पहले घरेलू मोर्चे पर जम्मू-कश्मीर में सामान्य हालात कायम किये जायें और उसके बाद पाकिस्तान के साथ बैठकर उसके द्वारा हड़पे गये कश्मीर पर बातचीत हो। यह तथ्य शीशे की तरह साफ है कि वह पूरा जम्मू-कश्मीर भारतीय संघ का अभिन्न हिस्सा है जो महाराजा हरिसिंह की रियासत का भाग था। पाकिस्तान की स्थिति इस मामले में एक आक्रान्ता के अलावा और कुछ नहीं हो सकती। अतः राज्य में जो हुर्रियत कान्फ्रैंस नाम की विभिन्न तंजीमों की जो संस्था है उससे इसी बात पर बातचीत शुरू होनी चाहिए कि भारतीय संविधान के दायरे में उनकी नजर में कश्मीर समस्या का क्या हल हो सकता है और पाकिस्तान की शह पर जो भी आतंकवादी गतिविधियां घाटी में चलाई जाती हैं उनसे किस तरह निपटा जा सकता है।
जाहिर तौर पर यह राजनीतिक समस्या है जिसका हल भी इसी दायरे में ही निकाला जायेगा मगर भारत की अखंडता से किसी भी प्रकार का समझौता किये बिना ही यह काम हो सकता है। इस राज्य की विशेष स्थिति से आम भारतीयों को कोई बैर नहीं है और वे इसकी नैसर्गिक सुन्दरता बचाये रखने के पक्षधर भी हैं परन्तु यह काम किसी भी तौर पर पाकिस्तान के बहकावे में आकर राज्य के लोगों की देशभक्ति को दाव पर रखकर नहीं किया जा सकता क्योंकि प्रत्येक कश्मीरी दिल से खुद को भारत का हिस्सा मानता है। इसका प्रमाण 1947 में इस राज्य के लोगों द्वारा पाकिस्तान के निर्माण का पुरजोर विरोध करना है।
यह पूरा राज्य हिन्दोस्तानी संस्कृति की ही मुंह बोलती तस्वीर है जिसमें हिन्दू-मुसलमान सदियों से साथ-साथ रहते आये हैं मगर पाकिस्तान के बरगलाने पर कुछ अलगाववादी ताकतों ने इस राज्य में खून-खराबे को भी बढ़ावा दिया है जिसका मुकाबला करने के लिए भारतीय सेनाओं ने हमेशा कुर्बानियां देने में कोताही नहीं बरती है। हुर्रियत की कई तंजीमों का असली चेहरा भी अब सामने आ चुका है कि किस तरह वे पाकिस्तान से वित्तीय मदद लेकर कश्मीर घाटी में अलगाववाद को पनपाये रखने में अपनी खैरियत समझती थीं। अतः बहुत साफ है कि हुर्रियत कान्फ्रैंस से बातचीत होती है तो वह भारत के संविधान के दायरे में ही इस राज्य की सियासत को तय करने वाली होगी जिससे पाकिस्तान का कोई लेना-देना नहीं है।
बहुत स्पष्ट बात यह है कि हुर्रियत कान्फ्रैंस को अपने ही राज्य की जमीनी हकीकत को समझना होगा और कबूल करना होगा कि उनका दायरा दिल्ली की सरकार तक का ही है।  पाकिस्तान के साथ किस तरह निपटना है इसका फैसला भारत के लोगों द्वारा चुनी गई सरकार करेगी। गृहमंत्री श्री अमित शाह श्रीनगर जाने वाले हैं और वह वहां राज्यपाल सत्यपाल मलिक समेत अन्य नेताओं से भी बातचीत करेंगे और जायजा लेंगे कि किस तरह आगे का रास्ता निकाला जाये। उम्मीद करनी चाहिए कि बेहतर परिणाम आयेंगे।
Advertisement
Author Image

Ashwini Chopra

View all posts

Advertisement
Advertisement
×