Top NewsIndiaWorld
Other States | Delhi NCRHaryanaUttar PradeshBiharRajasthanPunjabJammu & KashmirMadhya Pradeshuttarakhand
Business
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

नकली दवाओं के कारोबार पर नकेल जरूरी है

01:32 AM Mar 13, 2024 IST | Shera Rajput

पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में औषधि विभाग, अपराध शाखा और पुलिस के छापे में 1.10 करोड़ रुपए की नकली दवाएं बरामद की गई हैं। नकली दवाएं पकड़ने की खबर ने लोगों को अंदर तक हिला दिया। वैसे ये कोई पहला अवसर नहीं है कि देश में नकली दवाएं पकड़ी गई हों लेकिन पिछले कुछ सालों में ऐसी घटनाओं में जो बढ़ोतरी देखने को मिली है, वो चिंता का बड़ा कारण है। देश में आए दिन नकली दवाइयों का भंडाफोड़ होना शर्मनाक है। उससे भी दुखद है राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में नकली दवा कंपनी का पकड़े जाना। यह न केवल स्वास्थ्य के साथ अनदेखी है बल्कि देश के साथ शत्रुता के समान है।
देश की राजधानी से सटे गाजियाबाद से लेकर यह नापाक और जानलेवा धंधा तेलंगाना, महाराष्ट्र तक फैला है। कोई गंभीर सजा नहीं। कोई गंभीर वार नहीं। कोई प्रशासनिक हस्तक्षेप और खौफ नहीं। आश्चर्य है कि जहां से नकली दवाएं पकड़ी गई हैं, वे मधुमेह, रक्तचाप और गैस सरीखी गंभीर बीमारियों की ब्रांडेड औषधियों की नकली दवाएं थीं। भारत की जनसंख्या अधिक है इसलिए उसी अनुपात में यहां बीमारियां और बीमार लोगों की संख्या भी बहुत है। इसी का फायदा लालची लोग उठाते रहे हैं। बताते हैं कि पैसे की हवस में आम नागरिकों की जिंदगी से खिलवाड़ करने वाले नकली दवाइयों के शातिर शिकारियों की सरपरस्ती में देश की राजधानी दिल्ली और आसपास के क्षेत्र में नामी देसी और विदेशी कंपनियों की ब्रांडेड नकली दवाएं कारखानों में बन रही थी, जिसे ट्रांसपोर्ट कंपनी के जरिए कुरियर किया जा रहा था। गिरोह से जुड़े सप्लायर दुकानों तक इन्हें पहुंचाते थे, जिसे जरूरतमंद जनता दवा समझ कर खरीद रही थी।
भारत में नकली दवाओं का कारोबार आज से ही नहीं बल्कि लम्बे समय से फल-फूल रहा है। साल 2012 में नकली सिरप की सप्लाई और सितम्बर 2013 में फार्मा कम्पनी रेन वैक्सिंग पर नकली दवाओं के उत्पादन के लिए पांच सौ मिलियन अमेरिकी डॉलर की पेनल्टी लगायी गयी थी। इसके साथ 2014 में जर्मनी ने अस्सी भारतीय दवाई निर्माता कंपनियों को निलंबित किया था। यह सब बातें बताती हैं कि ये नकली दवाओं का कारोबार काफी पुराना और फैला हुआ है।
अगर नकली दवाओं के चलन की बात की जाये तो यह इतना बढ़ गया है, कि जेनेरिक दवा जैसे पेन किलर, एंटीबायोटिक, हृदय की दवा, और कैंसर जैसी गम्भीर बीमारियों की भी नकली दवाएं आज बाजार में उपलब्ध हैं। डब्लूएचओ की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के बाजारों में उपलब्ध दस प्रतिशत दवाएं नकली हैं। यानि हर दस में से एक दवा नकली है। वहीं एसोचैम का कहना है कि बाजार में पच्चीस प्रतिशत दवाएं नकली हैं। इन नकली दवाओं के व्यापक प्रभाव के बारे में एक सर्वे बताता है, कि भारत में लाखों-करोड़ों लोग हर रोज ऐसी दवाइयों का सेवन कर रहे हैं, जिनसे या तो उनकी बीमारी जस की तस बनी रहती है या फिर बढ़ जाती है। इनके सेवन से मौत तक हो जाने के कई गम्भीर मामलें भी सामने आते रहे हैं।
आज एक ओर सर्दी-जुकाम, बुखार और दर्द से निजात दिलाने वाली दवाएं सर्वाधिक खराब और बेअसर साबित हो रही हैं जिसके चलते इलाज लम्बा खिच जा रहा है और छोटी-छोटी बीमारियां घातक रूप ले रही हैं। आश्चर्य तब ज्यादा होता है, जब इन फर्जी कंपनियों के प्रतिनिधि डॉक्टरों के पास जाते हैं, उन्हें लुभावनी पेशकश के पैकेज दिए जाते हैं, जाहिर है कि ऐसे डॉक्टर भी नकली दवाएं लिखते होंगे। वे भी अपने पेशे, नैतिक संकल्प और मानवीय जिंदगियों से खिलवाड़ करते हैं।
मीडिया रिपोटर्स के मुताबिक, भारत में नकली दवाओं के उत्पादन और प्रसार का बाजार करीब 35,000 करोड़ रुपए का है। यह कोई सामान्य आंकड़ा नहीं है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि कितने व्यापक स्तर पर नकली दवाएं बनाई जा रही हैं और औसत बीमार आदमी को बेची जा रही हैं। कितनी बीमारियां घनीभूत हो रही हैं और कितनों पर मौत का साया मंडरा रहा है? यह बाजार इतना व्यापक कैसे बना, यह हमारी प्रशासनिक और जांच संस्थाओं पर बड़ा सवाल है।
तेलंगाना सरकार ने ‘मेग लाइफ साइंसेज’ द्वारा निर्मित 33 लाख रुपए से ज्यादा की तीन दवाओं की जांच की थी। उनमें औषधि का कोई भी तत्व नहीं पाया गया। औषधि नियंत्रण प्रशासन ने खुलासा किया था कि उन नकली दवाओं में केवल चॉक पाउडर और स्टार्च मिलाया गया था। तेलंगाना में पकड़ी गई कंपनी ने कागज पर हिमाचल में मुख्यालय होने का दावा किया था, लेकिन वहां भी ऐसी कोई कंपनी नहीं पाई गई। न जाने ऐसी कितनी कंपनियां देश में ‘जहर’ बेच रही हैं? बीते सप्ताह उत्तराखंड में भी ऐसे ही नकली दवाओं के रैकेट का पर्दाफाश किया गया था।
विश्व बैंक के मापदंड के अनुसार, डेढ़ सौ दुकानों तथा पचास दवा निर्माताओं के बीच एक दवा निरीक्षक होना चाहिए। भारत में यह पैमाना दूर-दूर तक लागू नहीं है। दवाइयों की जांच प्रयोगशालाओं में मौजूद उपकरणों और रसायनों की दयनीयता का तो कहना ही क्या। नकली दवाओं से मरीज को ऐसी बीमारी हो सकती है जिसका इलाज शायद ही हमारे पास हो। आज भारत में नकली दवाओं की सप्लाई इतनी बढ़ गयी है कि लाखों-करोड़ों लोगों की जान पर बन गयी है। ऐसी घटनाएँ उस घटिया व्यवस्था की ही देन हो सकती है, जहां चन्द बड़ी कम्पनियों के मुनाफा के अलावा कुछ नहीं देखा जाता हो।
एक ऐसे समय में जब भारत का दवा उद्योग दुनिया की नई फार्मेसी के रूप में रेखांकित हो रहा है, नकली दवाओं का जखीरा भारतीय दवाओं की साख को फिर से कटघरे में खड़ा कर रहा है। पिछले वर्ष भारतीय कंपनियों द्वारा तैयार कुछ दवाओं की गुणवत्ता को लेकर सवाल उठे थे। खासकर जांबिया और उज्बेकिस्तान में बच्चों की मौत को भारत में बनी खांसी की दवा से जोड़ा गया था। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि भारत में बनी खांसी की दवा डाइथेलेन ग्लाइकोल और इथालेन ग्लाइकोल इंसान के लिए जहर की तरह है। यही कारण था कि भारत से अफ्रीकी देशों को होने वाला दवा निर्यात वित्त वर्ष 2022-23 में 5 फीसदी घट गया। नकली दवाओं का हजारों करोड़ का कारोबार देश की प्रसिद्ध दवा कंपनियों के लिए भी खतरा है, क्योंकि उन्हीं के ब्रांड पर नकली दवाएं बेची जा रही हैं। क्या सरकार को यह साजिश, कुकर्म और तिजौरियां भरने के लालच का दुष्चक्र नहीं पता?

- राजेश माहेश्वरी

Advertisement
Advertisement
Next Article