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मोदी सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 खत्म किए जाने का अधिकांश राजनीतिक पार्टियां खुलकर समर्थन कर रही हैं।

04:17 AM Sep 07, 2019 IST | Ashwini Chopra

मोदी सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 खत्म किए जाने का अधिकांश राजनीतिक पार्टियां खुलकर समर्थन कर रही हैं।

मोदी सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 खत्म किए जाने का अधिकांश राजनीतिक पार्टियां खुलकर समर्थन कर रही हैं। कांग्रेस समेत कुछ अन्य राजनीतिक पार्टियां अपने राजनीतिक हितों के लिए मोदी सरकार के खिलाफ झंडा बुलंद किए हुए हैं। गृहमंत्री अमित शाह ने लोकसभा और राज्यसभा में इन विधेयकों पर बयान देते हुए कहा कि अनुच्छेद-370 की आड़ में 2-3 परिवार ही अपना दबदबा बनाए हुए थे और ये परिवार चाहते थे कि जम्मू-कश्मीर पर केवल उनकी संतानें ही राज करें।
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मोदी और शाह ने 72 वर्ष पुरानी जम्मू-कश्मीर समस्या अनुच्छेद 370 को हटाने को जो साहसिक कदम उठाया है उसे कोई भी भारतीय भूल नहीं सकेगा। यह साहसिक कार्य मोदी और शाह ही कर सकते थे। अब पाकिस्तान भारत को जो मर्जी में आए गीदड़ भभकियां दे लेकिन मुझे तो आज इस बात की खुशी हो रही है कि आज अगर लालाजी और रमेशजी जिंदा होते तो इस कदर खुश होते कि कहीं यह दोनों शहीद बाप-बेटा मोदी और शाह का माथा चूम लेते। मोदी और शाह ने अनुच्छेद 370 को हटा कर जो कमाल किया है इन दोनों का नाम भारत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा। धन्यवाद मोदी जी! धन्यवाद शाह जी!
शेख अब्दुल्ला मुख्यमंत्री रहते हुए एक तानाशाह के रूप में काम करते रहे। कांग्रेस का उनको समर्थन था। अपनी और अपनी सरकार की आलोचना उन्हें बर्दाश्त नहीं थी। हिंद समाचार ग्रुप के संस्थापक लाला जगत नारायण अपनी लेखनी में जहां शेख अब्दुल्ला की तानाशाही नीतियों की समय-समय पर आलोचना करते रहे, वहीं अनुच्छेद-370 को खत्म करने के लिए लेख भी लिखे और राज्यसभा सदस्य होते हुए सदन में भी इसे उठाया। 
शेख अब्दुल्ला लालाजी की लेखनी से इतने भयभीत थे कि उन्होंने स्वतंत्रता पूर्व के कस्टम एक्ट के तहत 1977 में ‘हिंद समाचार’ और ‘पंजाब केसरी’ के अपने प्रदेश में प्रवेश पर पाबंदी लगा दी ताकि प्रदेश की आम जनता लालाजी के लिखे आलेखों को पढ़ न सके। फिर शेख अब्दुल्ला के विरुद्ध पंजाब केसरी ग्रुप की कानूनी लड़ाई शुरू हुई। मुझे याद है मैं अपने पिताजी के साथ हफ्ते में तीन दिन दिल्ली जाता था और हमने उस समय के सुप्रसिद्ध वकील श्री पालकीवाला को अपने समर्थन और शेख सरकार के विरुद्ध खड़ा किया। 
हमारा मुद्दा था कि शेख साहिब ने एक तानाशाही आदेश से जो हिंद समाचार और पंजाब केसरी के प्रवेश पर जम्मू-कश्मीर में पाबंदी लगाई है यह मसला प्रैस की स्वतंत्रता का है। यानि जम्मू-कश्मीर में तानाशाह शेख press Freedum का गला दबा रहा है। फिर दो महीने की एक लम्बी जद्दोजहद के पश्चात उच्चतम न्यायालय के माननीय न्यायाधीश ने यह फैसला दिया कि या तो शेख सरकार हिंद समाचार और पंजाब केसरी पर जम्मू-कश्मीर में प्रवेश पर लगी पाबंदी 24 घण्टे के अन्दर हटा ले वरना अगले दिन खुद मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला उच्चतम न्यायालय में पेश हों।
सत्यमेव जयते!
इस फैसले के फौरन पश्चात शेख सरकार ने हिंद समाचार और पंजाब केसरी पर लगी पाबंदी हटा ली। लालाजी और रमेश जी ने एक और नया इतिहास प्रैस स्वतन्त्रता पर रचा और उनकी जीत हुई। उसके बाद जम्मू-कश्मीर में हिंद समाचार और पंजाब केसरी पहले की तरह मिलने लगे। फर्क यही था कि शेख सरकार से कानूनी लड़ाई जीतने के पश्चात दोनों अखबारों की प्रसार संख्या बढ़ गई। इसके बाद भी लालाजी और रमेश जी ने अपनी लेखनी से समझौता नहीं किया और शेख की तानाशाही और अनुच्छेद 370 को हटाने के पीछे लगे रहे। यही नहीं जब राष्ट्रपति नीलम संजीवा रेड्डी ने शेख अब्दुल्ला की प्रशंसा के पुल बांधे तो लालाजी ने अपनी लेखनी से जम्मू-कश्मीर की वास्तविक स्थिति से अवगत करवाया।
1981 में पिताजी, माताजी, मैं और किरण अमरनाथ यात्रा पर बाबा शिव की गुफा में बर्फ से बनने वाले शिवलिंग के दर्शन करने छड़ी यात्रा पर जम्मू-कश्मीर आए। 27 अगस्त 1981 को हम बाबा की गुफा में शिवलिंग के दर्शनों के उपरान्त वापिस श्रीनगर आए तो मुझे पिताजी के साथ पहली बार शेख अब्दुल्ला के घर पर उनके दर्शन करने का मौका मिला। हम सभी को शेख साहिब ने अपने मुख्यमंत्री आवास पर नाश्ते पर आमंत्रित किया था। शेख साहिब के बेटे फारूक भी वहां मौजूद थे। बाद में अभी तक मैं उनसे मिलता रहा हूं। 
पिताजी और शेख साहिब में बहुत सी व्यक्तिगत और राजनीतिक बातें हुईं। अंत में जब विदाई का समय आया तो शेख साहिब पिताजी से बोले ‘‘शेरे पंजाब को शेरे कश्मीर का सलाम देना।’’ हम सब वापिस आ गए। यह भी किस्मत की बात है कि 9 सितम्बर 1981 को लालाजी की हत्या कर दी गई और 10 सितम्बर 1981 के दिन शेख साहिब की मृत्यु हो गई। शेरे कश्मीर और शेरे पंजाब दो ही दिनों में इकट्ठे इस दुनिया से चले गए।
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