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It’s My Life (6)

लेकिन जो मेरी किस्मत में लिखा था उसका मुझे आभास भी नहीं था। जनू माह में मुम्बई में हमारा कैम्प वानखेड़े स्टेडियम में चल रहा था।

05:11 AM Jul 13, 2019 IST | Ashwini Chopra

लेकिन जो मेरी किस्मत में लिखा था उसका मुझे आभास भी नहीं था। जनू माह में मुम्बई में हमारा कैम्प वानखेड़े स्टेडियम में चल रहा था।

लेकिन जो मेरी किस्मत में लिखा था उसका मुझे आभास भी नहीं था। जनू माह में मुम्बई में हमारा कैम्प वानखेड़े स्टेडियम में चल रहा था। मैं सुबह स्टेडियम की क्लब में चाय पीने जाता था, साथ ही अखबार भी पढ़ता था। मेरे साथ एक पारसी बुजुर्ग भी चाय और अखबार पढ़ा करते था। पत्रकारिता और राजनीति तो मेरे खून में विद्यमान थी। हर सुबह मैं और वो पारसी बुजुर्ग अखबार के साथ चाय की चुस्कियां लेते हुए देश की राजनीति पर भी चर्चा और विश्लेषण करते ​थे।
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लेकिन उस दिन जब मैं चाय पीने और अखबार पढ़ने उस पारसी बुजुर्ग के पास पहुंचा तो वो अंग्रेजी में बोला “Finally, this lady has done it” मैंने पूछा क्या, वो बोला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश पर आपातकाल घोषित करते हुए एमरजैंसी लगा दी है। मुझे न तो आपातकाल और न ही एमरजैंसी की बातें समझ आईं। मैंने झट से अखबार उठाया जिसके प्रथम पृष्ठ पर “बैनर” हैडलाईन थीः-
“Indira has proclaimed Emergeny in the Country.”
मैं फिर भी कुछ नहीं समझा। दो घंटे बाद मुझे जालन्धर से मेरे घर से फोन आया कि देश में एमरजैंसी लगी है। लाला जी को सरकार ने गिरफ्तार कर लिया है, हमारी प्रैस की बिजली काट दी गई। खबरों पर सैंसरशिप लगा दी गई है और परिवार की महिलाओं और बच्चों तक पर बिजली चोरी के झूठे कोर्ट केस बना दिए गए हैं। तुम जल्द से जल्द जालन्धर वापिस पहुंचो। मैं बहुत पशोपेश में पड़ गाया। उधर घर और प्रैस पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा था। इधर मैं भारत के लिए टैस्ट टीम खेलने जा रहा था। सचमुच मेरी जिन्दगी ‘दोराहे’ पर आकर खड़ी हो गई। 
शाम तक सोच विचार कर अन्दर ही अन्दर मन्थन होने लगा कि मैं किधर जाऊं?
आखिर दादा जी लाला जगतनारायण और पिता रमेश चन्द्र जी का खून जो मेरे में था अन्ततः खौलने लगा। मैंने अपने क्रिकेट कैरियर को न्याय और पत्रकारिता की इस लड़ाई के समक्ष न्यौछावर कर दिया और उसी रात को अपना मुम्बई से बोरा-बिस्तर बांध दिल्ली की फ्लाईट और वहां से फ्लाईंग मेल और अगले दिन परिवार के लोगों के पास जालन्धर आ पहुंचा। मेरे जीवन की एक सुन्दर गाथा का अन्त हुआ और दुखों से भरी जिंदगी की शुरूआत हुई।
एमरजैंसी के दिनों में पंजाब के मुख्यमंत्री ज्ञानी जैल सिंह थे। जो कहा करते थे कि मैं (बीबी) यानि इंदिरा गांधी के लिए झाड़ू भी लगा सकता हूं। ऐसी मानसिकता वाले मुख्यमंत्री से और अपेक्षा भी क्या की जा सकती थी? हालांकि ज्ञानी जी ने एमरजैंसी के दौर में विपक्ष के नेताओं के साथ बहुत ज्यादती की वहां वे लाला जी से बहुत डरते थे। खैर, 1975 की एमरजैंसी के समय के बाद 1982 से 1984 तक राष्ट्रपति के तौर पर हमारे से दोस्ताना सम्बंध ही रखे।
जालन्धर का माहौल देखा तो दंग रह गया। पूज्य दादा जी लाला जगत नारायण जी फिरोजपुर जेल में पंजाब और देश के सभी प्रमुख विपक्षी नेताओं के साथ बन्द थे। हमारी प्रैस की बिजली काट दी गई थी। जनरेटर चलाने की हमें इजाजत नहीं थी। एक किसान के ट्रेक्टर से मशीन चला किसी भी तरह अखबार प्रकाशित कर रहे थे। सरकारी अफसरों के अमले ने हमारे दफ्तर को घेर रखा था। घर में तीन ही बड़े बचे थे। एक पिता जी, चाचा जी फिर मैं, बाकी सभी तो छोटे बच्चे थे। हमारे चाचा जी प्रैस का काम करते थे। मेरा उनके साथ बहुत स्नेह था। 
हमारे घर में कुछ भी तेरा-मेरा नहीं था। पिताजी के साथ चाचा जी और मैने प्रेस और परिवार पर आई मुसीबतों काे झेलने के लिए हमने कमर कस ली थी।  घर की सभी महिलाएं और बच्चे डरे हुए थे। ऐसे माहौल में पिता जी की सैंसर अधिकारियों से छोटी बड़ी खबर पर झड़प हो जाती थी। एक दुर्घटना में चार लोग मरे, सैंसर अधिकारियों ने इस खबर को भी प्रकाशित करने से इन्कार कर दिया। पिता जी द्वारा लिखित सम्पादकीय भी प्रकाशित नहीं करने दिए गए। 
पिता जी और मेरी हालत यह थी कि सुबह हम दोनों बाप-बेटा जालन्धर से खुद कार चला कर चंडीगढ़ जाते। वहां वकीलों से सलाह मशविरे, फिर रोजाना कोर्ट में पेशी। पेशी के बाद पूज्य दादा जी से मुलाकात के लिए फिरोजपुर जेल। मैं रोजाना एक फ्रूट की टोकरी दादा जी के लिए ले जाता था। नीचे अखबारें छुपाई होती थीं। दो घंटे फिरोजपुर जेल में बिता कर फिर रात को लेट वापिस जालन्धर और अगले दिन ​फिर चंडीगढ हाईकोर्ट और फिरोजपुर जेल। वकीलों के चक्कर व कोर्ट कचहरी-जेल के चक्कर ही चक्कर! मानों यह हमारी जिन्दगी का अंग बन गया था। प्रेस में तनाव, घर में भयभीत घर वाले। मैंने सोचा, मैंने क्रिकेट छोड़ने का सही फैसला लिया। 
कम से कम अपने अकेले पिता के कंधे का सहारा तो बना। लेकिन हमारी कठिनाइयां अभी खत्म नहीं हुई थी। फिरोजपुर जेल में अचानक पूज्य लाला जी को छाती में दर्द हुआ। आनन-फानन में उस समय के ज्ञानी जैल सिंह मुख्यमंत्री पंजाब ने आर्डर किया। लाला जी को पटियाला के राजिन्द्रा अस्पताल में दाखिल करवा दिया गया और उस समय के नामी-गिरामी डा. सारौवाल की देखरेख में रख दिया गया। ज्ञानी जी डरते थे कि सरकारी हिरासत में अगर लाला जी को कुछ हो गया तो पंजाब में जनता बगावत पर उतर आएगी।
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