Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

It’s My Life (9)

आखिर एक साल नौ महीने बाद 1977 में एमरजैंसी हटी। श्री जयप्रकाश नारायण की विरोध की आंधी के समक्ष इन्दिरा को मुंह की खानी पड़ी।

04:43 AM Jul 17, 2019 IST | Ashwini Chopra

आखिर एक साल नौ महीने बाद 1977 में एमरजैंसी हटी। श्री जयप्रकाश नारायण की विरोध की आंधी के समक्ष इन्दिरा को मुंह की खानी पड़ी।

आखिर एक साल नौ महीने बाद 1977 में एमरजैंसी हटी। श्री जयप्रकाश नारायण की विरोध की आंधी के समक्ष इन्दिरा को मुंह की खानी पड़ी। देश में श्री मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी। उधर जालन्धर (नार्थ) सीट से पिताजी श्री रमेश चन्द्र जी जनता पार्टी की टिकट पर विधायक चुने गए। लालाजी को अकालियों और जनता पार्टी के नेताओं ने घर आकर घेर लिया। 
Advertisement
चंडीगढ़ से संसद का चुनाव लड़ने को कहा लेकिन लालाजी बोले 1952 से 1956 तक प्रदेश का ट्रांसपोर्ट, शिक्षा और स्वास्थ्य मंत्री रहा, अब मैं राजनीति का इच्छुक नहीं। मुझे माफ करें, उम्र का भी तकाजा है। मेरा समर्थन आप सभी के साथ है। असल में पूज्य दादाजी लाला जगत नारायण ऐसी स्थिति में पहुंच चुके थे, जहां उन्हें राजनीति से नफरत हो चुकी थी। पं. नेहरू ने उनके साथ बहुत अन्याय किया था जबकि कांग्रेस के केन्द्र में सरदार पटेल और अबुल कलाम लालाजी के घोर समर्थक थे।
यहां अगर महात्मा गांधी और लालाजी के सम्बन्धों का जिक्र नहीं करूंगा तो यह लेख अधूरा रह जाएगा। महात्मा गांधी ने देश के स्वतंत्रता संग्राम में जो किया वह अभूतपूर्व एवं अविश्वसनीय है लेकिन अपने तीन बच्चों को वह नहीं संभाल सके। उनका एक लड़का शराबी-कबाबी बन चुका था। यहां तक ही बस नहीं, उसने इस्लाम धर्म भी अपना लिया था। कलकत्ते के कुछ मुसलमान मौलाना उसे उठा कर वहां ले गए और जब तक महात्मा गांधी को पता चलता, वह अपना एक लड़का गंवा चुके थे। 
उन दिनाें बापू और बा दिल्ली की ​हरिजन कालोनी वाल्मीकि भवन, जिसे आज बापू निवास कहा जाता है, में एक झोंपड़ी में रहा करते थे। बापू और बा के समक्ष यह एक विकट समस्या थी कि आखिर करें तो क्या करें। उन दिनाें दिल्ली आर्य प्रतिनि​िध सभा यानी आर्य समाज के अध्यक्ष श्री राम गोपाल शालवाले हुआ करते थे। उधर लालाजी पूरे पंजाब के आर्य समाज के अध्यक्ष थे। बापू को लगा कि ये आर्य समाजी ही उनके बेटे को वापिस हिंदू धर्म में ला सकते हैं। चुनांचे आनन-फानन में गांधी जी ने लालाजी और राम गोपाल शालवाले को बुलावा भेजा। दोनों ही नेता कांग्रेसी थे। लालाजी तो पंजाब प्रदेश कांग्रेस पार्टी के बेहद शक्तिशाली सीनियर जनरल सैक्रेटरी थे। 
जब ये दोनों महात्मा की कुटिया में पहुंचे तो गांधीजी और बा ने उनके समक्ष फूट-फूट रोना शुरू कर दिया। उन्हें अपने बेटे की पूरी दास्तां सुनाई और प्रार्थना करने लगे कि हमारे बेटे को किसी भी तरह से मुसलमानों के चंगुल से छुड़ाओ और हिंदू धर्म में वापिस लाओ। लालाजी और शालवाले अपने करीब 50 समर्थकों के साथ कलकत्ता रवाना हो गए। वहां उन्हाेंने उस जगह का पता लगाया जहां महात्मा गांधी के बेटे को कैद कर रखा गया था। बस लालाजी आैर राम गोपाल शालवाले के नेतृत्व में आर्य सेना मुसलमानों पर पिल पड़ी, काफी मारधाड़ हुई, लेकिन आर्यों ने महात्मा के बेटे को सकुशल बरामद कर लिया और उसे अपने साथ कलकत्ता से दिल्ली ले आए।
दिल्ली के ऐतिहासिक मंदिर मार्ग ​के आर्य समाज मंदिर में पहले उसकी मुस्लिम दाढ़ी काटी गई, फिर उसे गंगा जल से नहलाया गया। यज्ञ करके उसे यज्ञोपवीत पहनाया गया। उसके माथे पर चन्दन का तिलक लगाया गया और उसकी मुस्लिम सलवार-कमीज उतार कर खादी का सफेद कुर्ता-पायजामा पहनाया गया। फिर उससे 10 बार गायत्री मंत्र का उच्चारण करवाया गया। बाद में लालाजी आैर शालवाले उसको लेकर गांधी जी की हरिजन कालोनी वाली कुटिया में आए। पूज्य लालाजी बताते थे, फिर उन्होंने गुमसुम पड़े गांधीजी और बा के समक्ष उनके बेटे को झटके से फेंका और बोले गांधी जी आज के बाद हिन्दू-मुसलमान भाईचारे की बातें छोड़ दो, हम आपके बेटे को इस्लामी फंडामैंटल्स के चंगुल से वापिस ले आए हैं। 
लालाजी यहां भी नहीं रुके। महात्मा गांधी को बोले ‘ये जो आप हिन्दू और मुस्लिम मेरे दाहिने और बाएं ​हाथ हैं यह बातें करनी छोड़ दें। अगर हिन्दू और मुस्लिम आपके दो बच्चे हैं तो फिर अगर आपके बेटे ने इस्लाम धर्म अपना लिया था तो आप इतना रो क्यों रहे हो? और अब आप को शान्ति मिल गई! जो आपका मुसलमान बना बेटा वापिस हिन्दू धर्म में आ गया। महात्मा जी, आज के बाद हिन्दू-मुस्लिम प्रेम की बातों से परहेज करो।’ अब सम्भालिए अपने बेटे को। ऐसा कहकर लालाजी और शालवाले बाहर निकल गए। यह सारी बातें कांग्रेस अध्यक्ष पं. नेहरू तक भी पहुंचीं पर उन्होंने चुप्पी साध ली। बात वर्ष 1947 की है। जब लार्ड माऊंट बैटन, पं. नेहरू और मुहम्मद अली जिन्ना के बीच भारत के बंटवारे का फैसला हुआ। बंटवारा पंजाब और बंगाल का होना था। 
लालाजी उस समय पंजाब प्रदेश कांग्रेस के सबसे शक्तिशाली कांग्रेसी नेता थे। जैसे-जैसे 15 अगस्त 1947 का दिन नजदीक आने लगा, लालाजी की टैंशन बढ़ने लगी। उन्हें खबर मिली कि मुस्लिम लीग के नेताओं ने अपनी रक्षा और हिन्दुओं की मारकाट के लिए हथियारों के जखीरे इकट्ठे करने शुरू कर दिए हैं जबकि लाहौर, पेशावर, रावलपिंडी के अलावा पूरे पंजाब में सिख और हिन्दू निहत्थे थे। लालाजी को घबराहट होने लगी। उन्होंने मास्टर तारा सिंह से भेंट की, उधर मास्टर तारा सिंह भी इन परिस्थितियों से बेहद आहत थे। उन्हें कांग्रेस हाई कमान से निहत्थे सिखों की सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं मिल रही थी।
Advertisement
Next Article