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It’s My Life (7)

उधर हमारा काम और भी मुश्किल हो गया। प्रैैस में बिजली नहीं, कोर्ट केेस, सैंसरशिप, ढेर सारे वकीलों पर पैसों का खर्चा और अब लालाजी का स्वास्थ्य? घर की सभी औरतों और मर्दों को लालाजी के पास अस्पताल में बारी-बारी से दिन-​रात साथ रहने की ड्यूटियां लग गईं।

03:09 AM Jul 15, 2019 IST | Ashwini Chopra

उधर हमारा काम और भी मुश्किल हो गया। प्रैैस में बिजली नहीं, कोर्ट केेस, सैंसरशिप, ढेर सारे वकीलों पर पैसों का खर्चा और अब लालाजी का स्वास्थ्य? घर की सभी औरतों और मर्दों को लालाजी के पास अस्पताल में बारी-बारी से दिन-​रात साथ रहने की ड्यूटियां लग गईं।

उधर हमारा काम और भी मुश्किल हो गया। प्रैैस में बिजली नहीं, कोर्ट केेस, सैंसरशिप, ढेर सारे वकीलों पर पैसों का खर्चा और अब लालाजी का स्वास्थ्य? घर की सभी औरतों और मर्दों को लालाजी के पास अस्पताल में बारी-बारी से दिन-​रात साथ रहने की ड्यूटियां लग गईं। लालाजी को राजेन्द्रा अस्पताल के हार्ट विंग के वीआईपी स्यूट में दो माह से ऊपर हो गए। उनका ईलाज चल रहा था। एक रात राजेन्द्रा अस्पताल के लालाजी के ‘स्यूट’ में अजीबो-गरीब सरकारी तंत्र की मजबूरी, डर और मक्कारी देखने को मिली। उस रात लालाजी की सेवा के लिए मेरी ड्यूटी थी। करीब रात के दो बजे अचानक दरवाजा खटखटाने की आवाज आई।
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लालाजी भी सो रहे थे और मुझे भी झपकी आ रही थी। जब दो बार दरवाजा खटखटाया गया तो मैंने सोचा चारों तरफ सिक्योरिटी लगी है, ऐसे में इतनी रात कौन हो सकता है? सोचा, शायद डाक्टर या नर्स देखने आ गए हों। पाठकगण! मैंने दरवाजा खोला तो दो ऊंचे-लम्बे सफेद पगड़ी बांधे ऊपर काला कम्बल ओढ़े व्यक्ति खड़े थे। पहले तो मैं घबराया, लेकिन बाहर से आवाज आई  ‘अश्विनी बेटा मैं हूँ, मुख्यमंत्री ज्ञानी जैल ​सिंह।’ मैंने दरवाजा खोला और मुख्यमंत्री और  उनके साथी को अंदर आने दिया। मुख्यमंत्री आधी रात को काला कम्बल ​ओढ़े छुप-छुप कर लालाजी से मिलने आए थे। मैं तो थोड़ी देर के लिए हतप्रभ रह गया। फिर क्या था ज्ञानी जी लालाजी जी के बैड के साथ लगी कुर्सी पर बैठ गए। 
मैंने लालाजी को जगाया “बाऊजी-बाऊजी देखो आप से मिलने कौन आया है।” लालाजी ने आंखें खोली और ज्ञानी जी की तरफ देखा और मुस्करा दिए “आओ मुख्यमंत्री जनाबेवाला”। यह लालाजी का “जनाबेवाला” कहना, उनका तकिया कलाम था। ज्ञानी जी ने प्यार से लालाजी का हाथ पकड़ लिया और उनका हालचाल पूछने लगे। फिर लालाजी बोले “ज्ञानी जी एमरजैंसी तो लगी हुई है, आपको क्या नई एमरजैंसी के तहत आधी रात को कम्बल ओढ़ कर चोरी-चोरी मुझसे मिलने की क्या जरूरत पड़ गई।” पहले तो ज्ञानी झेंपे फिर बोले “लालाजी आप से एक जरूरी बात करने आया हूँ।” 
लालाजी ने कहा “फरमाईए!” ज्ञानी जी ने बोलना शुरू किया- “आपकी तबियत ठीक नहीं, खुदा न खास्ता आपको कुछ हो गया तो?” लालाजी बोले- “तो”? ज्ञानी जी बाेले- कुछ नहीं, मैं चाहता था कि “आप एक छोटे से कागज पर लिख दीजिए कि एमरजैंसी देशहित में लगाई गई है, साथ में आप के हस्ताक्षर हो जाएं, तो मैं बीबी (इन्दिरा) से बात करके आपको रिहा कर दूंगा। आपके परिवार पर बने सभी कोर्ट केस वापिस हो जाएंगे और  आपके प्रैस की बिजली भी बहाल कर दी जाएगी।” मेरे लिए यह ऐतिहासिक क्षण था। मैं सोचने लगा “पंजाब का शेर” आखिर दहाड़ेगा या…? लालाजी लेटे थे कि अचानक पता नहीं उनमें कहां से ऊर्जा आई और उठकर बैठ गए। 
चेहरा तमतमाने लगा, आंखें लाल, होंठ फड़फड़ाने लगे और पूरा शरीर झटके मारने लगा। मैं घबरा गया, फटाफट मैंने लालाजी को पीछे से पकड़ा और अपने आगोश में जकड़ लिया। कुुछ क्षण चुप रहने के पश्चात लालाजी को मैंने पानी पिलाया। पाठकगण, जब मैं लेख के इस मोड़ पर यह बातें लिख रहा हूँ तो अतीत की यादों से मेरी आंखों से बार-बार आंसुओं की धाराएं निकल रही हैं। मुझे उस दिन अहसास हुआ कि एक महान स्वतंत्रता सेनानी और पत्रकारिता और लोकतंत्र के प्रखर प्रहरी एक महान श​यत का पोता हूँ। धन्य हैं लालाजी। 
फिर लालाजी ने बोलना शुरू किया, “सुन ज्ञानी, तू मुझे जानता नहीं। तुझे अपनी गद़्दी और बीबी की चमचागिरी के अलावा दुनिया की समझ नहीं। तू क्या सोचता है कि मैं मर गया तो तेरा क्या होगा। मैंने 16 वर्ष अंग्रेजों की जेलों में स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई लड़ी। मुझे काले पानी के बाद सबसे कड़ी लाहौर के किले की जेल में दो वर्ष छोटे से कमरे में सड़ने केलिए छोड़ा गया। रोशनी तक नहीं थी वहां। रोज सुुबह-शाम दिसम्बर-जनवरी के महीने में बर्फ की सिल्लियों पर दो-दो घंटे सीधा-उल्टा लिटाते थे। (क्रमशः)
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