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इस कहानी का अंत तभी होगा जब POK वाला कश्मीर वापिस भारत को मिल जाएगा और कश्मीर से धारा 370 हटा दी जाएगी। 1947 में जब देश आजाद हुआ था तो हमारे पास पं. नेहरू प्रधानमंत्री और गृहमंत्री सरदार पटेल थे

02:56 AM Jul 19, 2019 IST | Ashwini Chopra

इस कहानी का अंत तभी होगा जब POK वाला कश्मीर वापिस भारत को मिल जाएगा और कश्मीर से धारा 370 हटा दी जाएगी। 1947 में जब देश आजाद हुआ था तो हमारे पास पं. नेहरू प्रधानमंत्री और गृहमंत्री सरदार पटेल थे

इस कहानी का अंत तभी होगा जब POK वाला कश्मीर वापिस भारत को मिल जाएगा और कश्मीर से धारा 370 हटा दी जाएगी। 1947 में जब देश आजाद हुआ था तो हमारे पास पं. नेहरू प्रधानमंत्री और गृहमंत्री सरदार पटेल थे, जिन्होंने कश्मीर छोड़ सरदार के नेतृत्व में पूरे देश की छोटी-छोटी रियासतों को भारत में शामिल कर भारतीय गणराज्य की नींव रखी। 
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आज 2019 में हमारे पास प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी हैं और गृहमंत्री अमित शाह जी हैं। जब से मोदी-शाह सत्ता में आए हैं पाकिस्तान की नींद हराम हो गई है। कश्मीर में भेजे पाक समर्थक आतंकवादी धड़ाधड़ मारे जा रहे हैं। करतारपुर कारीडोर के मुद्दे पर चावला जैसे आतंकवादी को पाकिस्तान को निकाल कर फैंकना पड़ा।
पूरे विश्व और संयुक्त राष्ट्र में हर बार चीन की मदद से पाकिस्तान आतंकवादी देश घोषित होने से बच रहा है। आगे चलकर जो परिस्थितियां बनने जा रही हैं, मोदी-शाह पाकिस्तान को ‘सूखा’ छोड़ने वाले नहीं हैं। 1946 में यह फोटो तब की है जब अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पं. जवाहर लाल नेहरू जी लाहौर में पधारे, उस समय लालाजी पंजाब कांग्रेस के सबसे शक्तिशाली नेता थे। कांग्रेस के एकमात्र महासचिव भी थे। 
लाला लाजपत राय जी की अंग्रेजों द्वारा हत्या के पश्चात एक तरह से पंजाब में अंग्रेजों के खिलाफ कांग्रेस पार्टी की डोर पूर्ण रूप से पूज्य दादाजी लाला जगत नारायण के हाथों में थी। अंग्रेज लालाजी को उन दिनों जेलों के अन्दर करते रहते थे। लाहौर की मोहन लाल रोड, पाकिस्तान ने जिसको नया नाम ‘उर्दू सड़क’ दे दिया है, यहीं पर हमारे परिवार की ‘विरजानंद प्रैस’ हुआ करती थी। जहां रोज सुबह से शाम तक भगत सिंह, सुखदेव राज, चन्द्र शेखर आजाद और राजगुरु समेत सभी स्वतंत्रता संग्राम के सच्चे सिपाही अंग्रेजों के विरुद्ध इकट्ठे हुआ करते थे। ऊपर हमारा घर था। इस प्रैस की खास बात यह थी कि इसके प्रवेश पर तो एक दरवाजा था, लेकिन बाहर भागने के लिए तीन-तीन दरवाजे पिछवाड़े में थे। 
जब कभी भी क्रांतिकारी लोग पूज्य ​दादाजी और पूज्य पिताजी के साथ देश को स्वतंत्र करवाने की ‘स्कीमें’ बनाने के लिए इकट्ठे होते थे तो अंग्रेज अचानक हमारी प्रैस पर पुलिस का धावा बोल देते थे लेकिन सभी क्रांतिकारी पिछवाड़े के दरवाजों से सुरक्षित निकल जाते थे। कई बार इन्हीं वजहों से पूज्य दादाजी और पूज्य पिताजी को कैद कर लिया जाता था और हमारी प्रैस की जमानत जब्त कर उसे ब्रिटिश सरकार बन्द कर देती थी। बाद में दो-चार दिन जेल में रखकर अंग्रेज सरकार इन्हें छोड़ देती थी। पिताजी उन दिनों ‘प्री मैडिकल’ की परीक्षा में भी उतरने की तैयारी कर रहे थे। वे एक उच्च श्रेणी के डाक्टर बनना चाहते थे। साथ ही पूज्य दादाजी को जब-जब अंग्रेज सरकार कैद कर लेती थी तो पूज्य पिताजी अपनी सख्त पढ़ाई के साथ-साथ प्रेस भी चलाते थे। 
पिताजी की दो बड़ी बहनों की तो शादी हो चुकी थी लेकिन बाकी बची छह बहनें अभी बहुत छोटी थीं, छोटा एक भाई भी था। हमारी दादीजी स्व. श्रीमती शांति देवी पूरे घर को सम्भालती थीं। कुल मिलाकर जहां दादाजी और पिताजी समेत हमारी दादीजी भी अंग्रेजों की जेल में समय काट चुकी थी। वहां घर चलाने के लिए पूरे परिवार को बड़ी मेहनत-मशक्कत करनी पड़ती थी। जहां तक भारत-पाक बंटवारे का सम्बन्ध है, अगर लालाजी समय रहते यह फैसला न करते तो बंटवारे में पंजाब में 10 नहीं 30 लाख हिन्दू और सिख मारे जाते। इसमें मास्टर तारा सिंह का साथ और गुरु गाेलवलकर जी एवं वीर सावरकर की मदद, साथ और इमदाद से लालाजी ने 20 लाख हिन्दुओं और सिखों की जान बचा ली। 
पं. नेहरू, महात्मा गांधी और सरदार पटेल को लालाजी,  मास्टर तारा सिंह, गुरु गाेलवलकर जी और वीर सावरकर की गुप्त मीटिंग की खबर भी मिल चुकी थी, पंडित जी ने इस बार भी रहस्यमयी चुप्पी साध ली। फिर मौका आया स्वतंत्र भारत के चुनाव का और पंजाब के जनरल सैक्रेटरी के रूप में पंजाब में टिकटों की बांट और चुनाव लड़ने के सभी बन्दोबस्त लालाजी के हाथ में थे। 1952 में भारत के लोकतंत्र के चुनावी इतिहास में प्रथम बार पं. नेहरू देश के प्रधानमंत्री निर्वाचित हुए और उधर लालाजी के नेतृत्व में पंजाब में कांग्रेस पार्टी को अभूतपूर्व सफलता प्राप्त हुई। अब फैसला होना था पंजाब का प्रथम मुख्यमंत्री कौन बने? पं. नेहरू की कैबिनेट के सबसे प्रभावशाली डिप्टी प्राईम मिनिस्टर और होम मिनिस्टर सरदार पटेल ने जोर-शोर से लालाजी के नाम का समर्थन किया। 
अबुल कलाम ने भी लालाजी के नाम पर सहमति दी। पंडित जी के दिमाग में पहले ही महात्मा गांधी के लड़के को मुसलमान से हिन्दू बनाने और लालाजी, मास्टर तारा सिंह, गुरु गोलवलकर और वीर सावरकर की मीटिंग अभी ताजा थी। जब सरदार पटेल और अबुल कलाम ने लालाजी को मुख्यमंत्री बनाने की पुरजोर मांग की तो पंडित नेहरू बोले “लाला जगत नारायण तो साम्प्रदायिक व्यक्ति है, उसे कैसे मुख्यमंत्री बना दूं।”  सरदार पटेल ने लालाजी को दिल्ली बुलाकर इन परिस्थितियों से अवगत करवाया तो लालाजी का दिल टूट गया। (क्रमशः)
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