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‘जय श्री बांके बिहारी’

04:16 AM Aug 06, 2025 IST | Aditya Chopra
पंजाब केसरी के डायरेक्टर आदित्य नारायण चोपड़ा

भारत की जनता धर्म प्राण है इसमंे कोई दो राय नहीं हो सकती मगर इसके साथ यह भी वास्तविकता है कि भारत दुनिया का एकमात्र एेसा देश है जिसके कण-कण में यह धर्म प्राण जनता अपने-अपने इष्ट देवों के प्रतिरूपों को खोजती रहती है। इसका कारण यह है कि भारत की धर्म प्राण जनता की अटूट आस्था भरत भूमि पर है। निश्चित रूप से यह आस्था साकार ब्रह्म के हिन्दू उपासकों के मन में अविरल बहती रहती है। यही सनातन है जो हजारों वर्षों से भारत की पहचान बना हुआ है। इसमें अंधविश्वास का पुट तब आता है जब सनातन के वैज्ञानिक स्वरूप को कुछ स्वार्थी तत्व अपने निजी हित में प्रयोग करने लगते हैं। भारत में भगवान कृष्ण के विभिन्न स्वरूपों की पूजा-
अर्चना भी हजारों साल से चलती आ रही है जिसमें बांके बिहारी भी एक स्वरूप है। इस स्वरूप की सुन्दरता की व्याख्या किसी महाकवि द्वारा भी शब्दों में वर्णित करना असंभव है क्योंकि भारत के हिन्दू उपासक इसे पारलौकिक मानते हैं।
पिछले कुछ वर्षों से ब्रज क्षेत्र के वृन्दावन में स्थित भगवान बांके बिहारी मन्दिर को लेकर खासा विवाद उत्पन्न इसलिए हो रहा है क्योंकि उत्तर प्रदेश की योगी सरकार अन्य प्रसिद्ध तीर्थ स्थानों की भांति यहां भी बांके बिहारी कारीडोर बनाना चाहती है जिसका विरोध स्थानीय पंडे या पुजारियों से लेकर क्षेत्र के दुकानदार व निवासी तक कर रहे हैं। यह विरोध उनके निर्वासित होने के डर की वजह से है। मगर इस बारे में राज्य की योगी सरकार लगातार आश्वासन दे रही है कि हर उजड़े हुए व्यक्ति का समुचित पुनर्वास किया जायेगा। श्री बांके बिहारी मन्दिर में पूरे भारत के हिन्दुओं की अटूट आस्था व श्रद्धा है और वे भारी संख्या में हर मौसम में यहां दर्शन करने के लिए आते हैं जिसकी वजह से मन्दिर में भारी भीड़ रहती है। विभिन्न अवसरों पर मन्दिर में भगदड़ के समाचार भी मिलते रहते हैं जिसमें बहुत से लोगों की जान तक चली जाती है। हालांकि राज्य सरकार की ओर से व्यवस्था बनाये रखने के लिए पुलिस आदि बल भी तैनात रहता है मगर मन्दिर के आसपास संकरी गलियों और बाजार को देखते हुए प्रबन्धन भली प्रकार नहीं हो पाता और अक्सर अप्रिय हादसे होते रहते हैं। इसके साथ ही मन्दिर का प्रबन्धन कुछ पुजारियों के परिवारों के हाथ में है। स्पष्ट है कि मन्दिर को हर साल करोड़ों रुपये का दान या भेंट श्रद्धालुओं द्वारा दिया जाता है। इस धन सम्पत्ति का व्यय ब्यौरा सरकार की पहुंच से बाहर रहता है जबकि दूसरी ओर भक्तों की भीड़ में हर वर्ष बढ़ाैतरी होती रहती है। इसे देखते हुए ही योगी सरकार ने मन्दिर कारीडोर बनाने की घोषणा की थी।
सबसे पहले यह समझ लिया जाना चाहिए कि मन्दिर किसी की निजी सम्पत्ति नहीं हो सकता। इतिहास बताता है कि किसी भी मन्दिर की स्थापना के समय किसी पुजारी को भी नियुक्त किया जाता था जो मन्दिर के प्रबन्धन के लिए जिम्मेदार होता था। अतः मन्दिर सार्वजनिक सम्पत्ति ही होता है क्योंकि उसका रखरखाव परोक्ष रूप से श्रद्धालु ही करते हैं। मगर बांके बिहारी मन्दिर को स्वामी हरिदास के वंशज गोस्वामी परिवार के लोग अपनी निजी सम्पत्ति बताते हैं। वास्तव में मुगलकाल के दौरान भक्त शिरोमणि तथा संगीत के महान मर्मज्ञ स्वामी हरिदास ने ही बांके बिहारी मन्दिर की स्थापना की थी। एेसी किंवदन्ति है कि उन्हें बांके बिहारी जी की प्रतिमा मिली थी जिसकी उन्होंने स्थापना की। स्वामी हरिदास पंजाब के ‘मुल्तान’ इलाके से वृन्दावन आये थे। तब से यह प्रतिमा स्थापित है। मगर वर्तमान में 21वीं सदी चल रही है और आजादी के समय की 34 करोड़ की आबादी बढ़कर 140 करोड़ हो चुकी है अतः मन्दिर परिसर का क्षेत्रफल भारी संख्या में पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ को सहने में असमर्थ होता जा रहा है जिसे देखते हुए योगी सरकार ने पहले पूरे वृन्दावन नगर का कायाकल्प किया और अब वह मन्दिर का कारीडोर बनाना चाहती है। इसे लेकर पहले इसके खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई जिसे न्यायालय ने खारिज करते हुए नवम्बर 2023 में राज्य सरकार को कारीडर बनाने की अनुमति प्रदान कर दी परन्तु यह पाबन्दी लगा दी कि कारीडोर निर्माण में श्री बांके बिहारी के नाम के बैंक खाते से धन न लिया जाये। इसके बाद यह मामला सर्वोच्च न्यायालय पहुंच गया और देश की सर्वोच्च अदालत विगत 15 मई, 2025 को याचिका की सुनवाई करते हुए राज्य सरकार द्वारा दायर बहुपक्षीय प्रार्थना ( इंटर लोक्यूटरी) को स्वीकार कर लिया। यह याचिका पूरे ब्रज क्षेत्र के मन्दिरों के प्रबन्धन व श्रद्धालुओं को अधिकतम सेवा प्रदान करने सम्बन्धी थी।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने तब राज्य सरकार को यह इजाजत दे दी कि वह बांके बिहारी मन्दिर के आसपास की पांच एकड़ जमीन खरीदने के लिए मन्दिर के खाते से धन भी निकाल सकती है। मगर जमीन श्री बांके बिहारी के नाम पर ही होनी चाहिए। इसके तुरन्त बाद 25 मई, 2025 को राज्य सरकार ने एक अध्यादेश जारी कर श्री बांके बिहारी जी मन्दिर न्यास का गठन कर दिया। यह न्यास मन्दिर का प्रबन्धन आदि का कामकाज देखेगा। सर्वोच्च न्यायालय की दो सदस्यीय पीठ इस मामले को देख रही है जिसमें न्यायमूर्ति सूर्यकान्त व जयमाल्या बागची हैं। विगत दिन को सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति सूर्यकान्त ने राज्य सरकार के वकील से पूछा कि उसने अध्यादेश लाने में इतनी जल्दबाजी क्यों दिखाई ? न्यायालय मन्दिर के प्रबन्धन का कार्य किसी अवकाश प्राप्त न्यायाधीश के नेतृत्व में गठित कमेटी को भी सौंप सकता है। दरअसल राज्य सरकार के अध्यादेश को ही सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है। योगी सरकार के वकील ने दलील दी कि जिन लोगों ने अध्यादेश को चुनौती दी है वे मन्दिर के प्रबन्धन का हक नहीं रखते हैं क्योंकि एेसा करने का दावा बहुत से लोग करते हैं। इस मामले का निष्कर्ष यह निकाला जा सकता है कि सर्वोच्च न्यायालय मन्दिर के प्रबन्धन के लिए किसी उच्च न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश को मुखिया बनाकर कारीडोर निर्माण की इजाजत दे सकता है।

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