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जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी नेता अब्दुल गनी भट का 90 साल की आयु में निधन

06:48 AM Sep 18, 2025 IST | Rahul Kumar Rawat
जम्मू कश्मीर के अलगाववादी नेता अब्दुल गनी भट का 90 साल की आयु में निधन
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जम्मू-कश्मीर : हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के पूर्व अध्यक्ष और अलगाववादी नेता प्रोफेसर अब्दुल गनी भट का बुधवार को सोपोर के बोटिंगू गांव स्थित उनके घर पर निधन हो गया। पारिवारिक सूत्रों ने पुष्टि की है कि बारामूला जिले के सोपोर क्षेत्र के बोटिंगू गांव के निवासी प्रोफेसर भट ने शाम अंतिम सांस ली। वह कुछ दिनो से बीमार चल रहे थे। वह 90 वर्ष के थे। अब्दुल गनी भट जम्मू-कश्मीर की अलगाववादी राजनीति में सक्रिय रहे। परिवार के अनुसार, उनके जनाजे की नमाज के बारे सूचना बाद में दी जाएगी। 1935 में उत्तरी कश्मीर के सोपोर के पास बोटिंगू गांव में जन्मे भट एक ऐसे परिवार में पले-बढ़े, जहां शिक्षा को महत्व दिया जाता था। उन्होंने श्रीनगर के ऐतिहासिक एसपी कॉलेज से पढ़ाई की, उसके बाद फारसी में स्नातकोत्तर की पढ़ाई की और बाद में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री हासिल की।

सरकारी कॉलेज में पढ़ाते थे फारसी

अपने गृह राज्य लौटकर, उन्होंने पुंछ के सरकारी डिग्री कॉलेज में फारसी पढ़ाना शुरू किया। यह एक ऐसा करियर था जिसमें वे दो दशकों से भी अधिक समय तक सक्रिय रहे। इसके बाद वह राजनीति में आए। 1986 में उन्होंने मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट की सह-स्थापना की। बाद में 1993 में गठित अलगाववादी समूहों के गठबंधन, ऑल पार्टीज हुर्रियत कॉन्फ्रेंस (एपीएचसी) के अध्यक्ष रहे और भारत सरकार द्वारा प्रतिबंधित राजनीतिक गुट, मुस्लिम कॉन्फ्रेंस, जम्मू और कश्मीर के अध्यक्ष भी रहे। जब तत्कालीन राज्यपाल जगमोहन ने राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों के लिए उनकी सेवाएँ समाप्त कर दीं, तब वे सोपोर के एक सरकारी कॉलेज में शिक्षक थे।

राजनीति में अहम भूमिका

प्रोफेसर भट ने बाद में अलगाववादी राजनीति में सक्रिय रूप से भाग लिया और मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट के अग्रणी नेता रहे। यह विभिन्न अलगाववादी दलों का एक समूह था, जिसने1987 के चुनाव में फारूक अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली नेशनल कॉन्फ्रेंस के खिलाफ चुनाव लड़ा था। माना जाता है कि 1987 के चुनावों में मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट के नेताओं को राज्य विधानसभा से बाहर रखने के लिए बड़े पैमाने पर धांधली की गई थी। आमतौर पर यह माना जाता है कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया से असंतुष्ट होकर, 1987 के चुनावों में युवा चुनाव एजेंट और अलगाववादी नेताओं के समर्थक सबसे पहले सीमा पार कर गए और हथियारों के साथ वापस लौटे, ताकि 1989 में कश्मीर में सशस्त्र विद्रोह शुरू कर सकें। जनवरी 2011 को उन्होंने श्रीनगर में एक सेमीनार को संबोधित करते हुए कहा था कि हमारे अपने ही कुछ लोगों को,हमारे अपनों ने ही कत्ल किया और कत्ल कराया है। उनके इस बयान के बाद पूरे कश्मीर में खलबली मचल गई थी।

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