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झारखंड : मंडी शुल्क के खिलाफ अनाज व्यापारियों का आंदोलन, दुकानें और प्रतिष्ठान बंद रखने का निर्णय

झारखंड में मंडी शुल्क के लिए नए कानून बनाने के ख़िलाफ़ कारोबारियों ने राज्य भर में आंदोलन करना शुरू कर दिया है।
झारखंड : मंडी शुल्क के खिलाफ अनाज व्यापारियों का आंदोलन, दुकानें और प्रतिष्ठान बंद रखने का निर्णय
झारखंड में मंडी शुल्क के लिए नए कानून बनाने के ख़िलाफ़ कारोबारियों ने राज्य भर में आंदोलन करना शुरू कर दिया है। विरोध में सभी खाद्यान्न व्यापारियों और कृषि मंडियों के दुकानदारों ने अपने प्रतिष्ठानों में काला झंडा और काला बिल्ला लगाना शुरू कर दिया है। जानकारी के अनुसार, 8 फरवरी को राज्य में खाद्यान्न दुकानदारों और राइस-फ्लोर मिलर्स ने अपनी दुकानें और प्रतिष्ठान बंद रखने का निर्णय लिया है। राज्य में व्यापारियों और उद्यमियों की सबसे बड़ी संस्था फेडरेशन ऑफ झारखंड चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज (एफजेसीसीआई) इस आंदोलन की अगुवाई कर रही है। इस मुद्दे पर 8 फरवरी को रांची में राज्य भर के खाद्यान्न व्यापारियों और राइस-फ्लोर मिलर्स की बैठक बुलाई गई है।
सरकार की ओर से पारित विधेयक किसी के हित में नहीं : महासचिव


एफजेसीसीआई के महासचिव डॉ अभिषेक रामाधीन ने कहा कि सरकार की ओर से पारित किया गया झारखंड राज्य कृषि उपज एवं पशुधन विपणन विधेयक 2022 न तो राज्य के किसानों के हित में है न व्यापारियों और आम लोगों के। जब उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के साथ ही महंगाई पर नियंत्रण के लिए मंडी शुल्क समाप्त कर दिया है, तब झारखंड में इस शुल्क को प्रभावी किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इस शुल्क से राज्य भर के खाद्यान्न व्यापारियों में आक्रोश है। अगर सरकार यह फैसला वापस नहीं लेती है तो व्यापारी राज्य के बाहर से अनाज का आवक पूरी तरह बंद कर देंगे।
जीएसटी के अतिरिक्त डबल टैक्सेशन होगा : प्रवीण जैन


फेडरेशन के पूर्व अध्यक्ष प्रवीण जैन छाबड़ा ने कहा कि शुल्क प्रभावी होने के बाद यहां का व्यापार पड़ोसी राज्यों में शिफ्ट होने लगेगा, जिससे सरकार को जीएसटी के रूप में भारी नुकसान होगा। झारखंड में बिक्री हेतु तैयार ज्यादातर माल दूसरे राज्यों से आयात किये जाते हैं। ऐसी वस्तुओं पर कृषि शुल्क लागू होने से यह किसी विपणन व्यवस्था की फीस न होकर सीधे एक टैक्स के रूप में प्रभावी होगा, जो जीएसटी के अतिरिक्त डबल टैक्सेशन होगा। अन्य राज्य से आयातित वस्तु पर अधिकतम स्लैब में कृषि शुल्क लगाए जाने से सीधे तौर पर आम उपभोक्ताओं को महंगाई झेलनी पड़ेगी। पूर्व में जब यह शुल्क प्रभावी था, तब यह भ्रष्टाचार का जरिया बन गया था।
 सरकार ने इस शुल्क को शून्य कर दिया था
कृषि बाजार बोर्ड में व्याप्त अनियमितताओं को देखते हुए ही तत्कालीन सरकार ने इस शुल्क को शून्य कर दिया था। पुन: इस शुल्क को प्रभावी करने की दिशा में सरकार द्वारा लिये जा रहे किसी भी निर्णय को व्यापारी मानने को तैयार नहीं हैं। इसके विरोध में वृहद् आंदोलन किया जायेगा। रांची चैंबर के अध्यक्ष संजय माहुरी ने कहा कि यह विधेयक किसानों एवं आम जनता का शोषण एवं दोहन करने वाला है। चैंबर उपाध्यक्ष अमित शर्मा और सह सचिव रोहित पोद्दार ने संयुक्त रूप से कहा कि यह शुल्क कुछ गिने-चुने अधिकारियों के हित के लिए लाया जा रहा है जिससे राज्य में उपभोक्ता वस्तुएं महंगी होंगी।
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