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Jitiya Vrat 2025 Date: 14 या 15 सितंबर, कब रखा जाएगा जितिया व्रत? जानें शुभ मुहूर्त और व्रत कथा

03:18 PM Aug 29, 2025 IST | Bhawana Rawat
jitiya vrat 2025 date  14 या 15 सितंबर  कब रखा जाएगा जितिया व्रत  जानें शुभ मुहूर्त और व्रत कथा

Jitiya Vrat 2025 Date: जितिया व्रत हर साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है, इसे जीवित्पुत्रिका व्रत के नाम से भी जानते हैं। यह व्रत संतान की लंबी उम्र, सफल जीवन और सुख-समृद्धि के लिए रखा जाता है। इस दिन माताएं अपनी संतान के लिए निर्जला व्रत रखती हैं, इसे कठिन व्रतों में से एक माना गया है।

धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस व्रत को रखने से संतान के ऊपर आने वाले संकट दूर होते हैं और घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखकर भगवान श्री कृष्ण की पूजा करती हैं और जीमूतवाहन की कथा का पाठ करती हैं। ऐसे में चलिए जानते हैं कि कब पड़ रहा है जितिया? जितिया व्रत की कथा क्या है? और जितिया व्रत की पूजा विधि।

जितिया व्रत कब शुरू है? (Jitiya Vrat 2025 Date)

Jitiya Vrat 2025 Date

हिंदू पंचाग के अनुसार, अश्विन कृष्ण अष्टमी तिथि 14 सितंबर 2025 को सुबह 5 बजकर 4 मिनट पर शुरू होगी और 15 सितंबर 2025 को रात्रि 03 बजकर 06 मिनट पर समाप्त होगी। लेकिन उदया तिथि के अनुसार जितिया व्रत 14 सितंबर 2025 को रखा जाएगा।

जितिया व्रत शुभ मुहूर्त (Jitiya Vrat Shubh Muhurat)

Jitiya Vrat 2025 Date

ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 04:33 से 05:19 बजे
विजय मुहूर्त: दोपहर 02:20 से 03:09 बजे
गोधूलि मुहूर्त: शाम 06:27 से 06:51 बजे
निशिता मुहूर्त: रात 11:53 से 12:40 बजे

जितिया व्रत पूजा विधि (Jitiya Vrat Puja Vidhi)

Jitiya Vrat 2025 Date

  1. जितिया व्रत के सुबह मुहूर्त में जीमूतवाहन की मूर्ति को जल से भरे मिट्टी के पात्र में स्थापित करें।
  2. इसके बाद दीप,धूप, फूल, माला, अक्षत, खल्ली और बांस के पत्तों से पूजा करें।
  3. मिट्टी और गोबर से मादा चील और सियार की प्रतिमा बनाएं। इसके बाद उन्हें दही, चूड़ा, खीरा आदि चढ़ाएं और माथे पर सिंदूर का टीका लगाएं।
  4. पूजा के बाद व्रती महिलाएं जितिया व्रत कथा जरूर सुनें, इस कथा के बिना व्रत अधूरा माना जाता है।
  5. इसके बाद अपनी संतान के लिए मंगलकामना और सुख-समृद्धि की प्रार्थना करें।

जितिया व्रत कथा (Jitiya Vrat Katha)

Jitiya Vrat 2025 Date

पौराणिक कथा के अनुसार, गंधर्वों के राजकुमार जीमूतवाहन थे, जो अपने परोपकार और पराक्रम के लिए जाने जाते थे। एक बार जीमूतवाहन के पिता उन्हें राजसिंहासन पर बिठाकर, खुद तपस्या करने वन में चले गए। लेकिन जीमूतवाहन का मन राज-पाट में नहीं लगा, उन्होंने अपने भाइयों को राज्य की जिम्मेदारी सौंपी और खुद भी पिता की सेवा के लिए वन में चले गए।

वन में उनकी मुलाकात एक राजकन्या मलयवती से हुई, दोनों को प्रेम हुआ और उन्होंने विवाह कर लिया। एक दिन वन में भ्रमण करते हुए उन्हें एक स्त्री विलाप करती हुई दिखी। जीमूतवाहन ने उनका हाल पूछा, तो स्त्री ने बताया- "मैं नागवंश से हूं, मेरा एक ही पुत्र है शंखचूड़। नागों ने पक्षीराज गरुड़ को यह वचन दिया है कि प्रत्येक दिन एक नाग को उनके आहार के रूप में देंगे। स्त्री ने रोते हुए बताया कि आज उसके बेटे को आहार के रूप में गरुड़ के पास जाना है। आज में थोड़ी देर बाद पुत्रविहीन हो जाउंगी।"

जीमूतवाहन को स्त्री की व्यथा सुनकर बहुत दुःख हुआ। उन्होंने स्त्री को आश्वासन दिया कि वह गरुड़ से उनके पुत्र कि रक्षा करेंगे। जीमूतवाहन ने शंकचूड के हाथ से लाल कपड़ा लिया और उसे लपेटकर बलि देने वाली चुनी हुई जगह वध्य-शिला पर लेट गए। नियमित समय पर गरुड़ आया और लाल कपड़े में लिपटे जीमूतवाहन को पंजों में दबोचकर साथ ले गया। आगे जाकर गरुड़ एक शिखर पर बैठा और जीमूतवाहन पर चोंच से प्रहार करके मांस का एक टुकड़ा खा गया। जिसकी वजह से जीमूतवाहन दर्द से करहाने लगे। गरुड़ ने जब करहाने कि आवाज सुनी, तो वह चौंक गए क्योंकि ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था।

उन्होंने जीमूतवाहन से उनका परिचय पूछा, तो उन्होंने जवाब दिया कि एक स्त्री के पुत्र की रक्षा के लिए वह अपने प्राण देने आए हैं। गरुड़ ने जीमूतवाहन की बहादुरी और दूसरों के प्राणों की रक्षा के लिए अपने बलिदान देने की हिम्मत को देखकर प्रसन्न हुए। गरुड़ को अपने किए का पछतावा हुए और उन्होंने आश्वासन दिया कि वे अब किसी नाग को अपना आहार नहीं बनाएंगे। तभी से संतान की सुरक्षा और उन्नति के लिए जीमूतवाहन की पूजा का विधान शुरू हुआ, जिसे जितिया व्रत के नाम से जाना जाने लगा। कहा जाता है कि इस कथा के बिना जितिया व्रत अधूरा होता है, इसलिए इसका पाठ जरूर करें।

Disclaimer: इस लेख में बताए गए तरीके और सुझाव सामान्य जानकारी और मान्यताओं पर आधारित है, Punjabkesari.com इसकी पुष्टि नहीं करता है.

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