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महिला सशक्तिकरण का मजाक....मैनपुरी में 71 वर्षों से नहीं मिला अवसर, क्या डिंपल तोड़ेंगी रिकॉर्ड? पढ़े रिपोर्ट

उत्तर प्रदेश की मैनपुरी सीट पर होने वाले उपचुनाव की चर्चा देश के हर कोने में होने जा रहे चुनाव से अधिक है।

04:15 PM Nov 23, 2022 IST | Desk Team

उत्तर प्रदेश की मैनपुरी सीट पर होने वाले उपचुनाव की चर्चा देश के हर कोने में होने जा रहे चुनाव से अधिक है।

उत्तर प्रदेश की मैनपुरी सीट पर होने वाले उपचुनाव की चर्चा देश के हर कोने में होने जा रहे चुनाव से अधिक है।समाजवादी पार्टी के संस्थापक एवं देश के पूर्व रक्षा मंत्री मुलायम सिंह यादव के निधन से खाली हुई यह सीट भाजपा और सपा के लिए नया सियासी अखाड़ा बन चुकी है। मैनपुरी को सपा का गढ़ माना जाता है। जिसे भेदना भगवा पार्टी के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। वहीं बात करे प्रत्याशियों की तो अभी तक कोई भी महिला उम्मीदवार मैनपुरी में जीत हासिल नहीं कर सकी है। 
सपा ने इस क्षेत्र में अपने 33 वर्षों के लंबे शासन के उपरांत पहली बार किसी महिला उम्मीदवार को मैदान में उतारा है। आपको बता दे कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव पार्टी की ओर से चुनावी रण में है। डिंपल यादव के लिए विरासत को बचाए रखने के साथ-साथ इस मिथक को तोड़ना भी चुनौती है। कन्नौज की पूर्व सांसद डिंपल यादव का मुकाबला भाजपा के रघुराज सिंह शाक्य से है।  
चुनौतियों से घिरी डिंपल; सपा ने झोंकी ताकत 
बता दे कि मैनपुरी में भारतीय जनता पार्टी ने 2009 के लोकसभा चुनाव में तृप्ति शाक्य को उम्मीदवार बनाया था। लेकिन वह जीत हासिल करने में विफल रही। कांग्रेस ने सुमन चौहान को 2004 में टिकट दिया पर वह भी नाकाम रही। मैनपुरी जनपद में महिला वोटरों की संख्या 8 लाख से अधिक होने के बावजूद राजनीतिक पार्टियां उन्हें मौका देने से परहेज करती आई है। एकतरफ तमाम सियासी दल महिला सशक्तिकरण जैसे मुद्दों को उठाकर अपनी राजनीति चमकाने का प्रयास करते है। वहीं दूसरी ओर उन्हें नेतृत्व करने का अवसर नहीं देते। इस लोकसभा क्षेत्र में आज तक किसी महिला के न जीतने का मिथक डिंपल तोड़ पाएंगी या नही। ये तो आने वाले दिनों में पता चल जाएगा। आपको बता दे कि मैनपुरी में 5 दिसंबर को मतदान होंगे और नतीजे 8 दिसंबर को घोषित किये जाएंगे। 
  
 
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