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29 या 30 अक्टूबर, कब है गोपाष्टमी? जानें इसकी पौराणिक कथा और महत्व

12:36 PM Oct 28, 2025 IST | Bhawana Rawat

Kab Hai Gopashtami 2025:  हिंदू धर्म में गोपाष्टमी का खास महत्व है। यह पर्व श्री कृष्ण, गौमाता और बछड़ों को समर्पित है। मान्यतानुसार, इस दिन भगवान कृष्ण ने ब्रजवासियों को इंद्र देव के प्रकोप से बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठा लिया था। सात दिनों तक लगातार भारी वर्षा के बाद जब इंद्र देव ने हार स्वीकार की, उसी दिन को गोपाष्टमी के रूप में मनाते हैं। यह पर्व केवल पूजा का नहीं, बल्कि सेवा, कृतज्ञता और प्राकृतिक संरक्षण का संदेश भी देता है। आइए जानते हैं कि कब है गोपाष्टमी, इसकी पौराणिक कथा और महत्व।

Gopashtami 2025 Date: कब है गोपाष्टमी?

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कब है गोपाष्टमी? (Image- Ai Generated)

पंचांग के अनुसार, गोपाष्टमी पर्व कार्तिक शुक्ल अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस साल इस तिथि की शुरुआत 29 अक्टूबर 2025 को सुबह 9:23 बजे से होगी और इसका समापन 30 अक्टूबर को सुबह 10:06 बजे होगा। इसलिए उदयातिथि के हिसाब से यह पर्व गुरुवार यानि 30 अक्टूबर को मनाया जाएगा। इस पर्व की विशेष धूम मथुरा, वृंदावन, नंदगांव और बरसाना में देखने को मिलती है।

Gopashtami 2025 Significance: गोपाष्टमी पर्व का महत्व

गोपाष्टमी पर्व का महत्व (Image- Ai Generated)

हिंदू धर्म में गाय को माता का दर्जा दिया गया है, कहा जाता है कि जहां भी गौ माता निवास करती हैं वहां सदैव सकारात्मक ऊर्जा और पवित्रता रहती है। गोपाष्टमी पर्व पर गाय और बछड़ों की पूजा की जाती है। यह पर्व हमें दया-भाव और पशुओं के संरक्षण का संदेश भी देता है। इस दिन गौ सेवा और दान करने से घर में शांति और समृद्धि आती है।

Story of Gopashtami: गोपाष्टमी पर्व की पौराणिक कथा

गोपाष्टमी पर्व की पौराणिक कथा (Image- Ai Generated)

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार श्री कृष्ण ने देखा कि बृजवासी इंद्र देव की पूजा कर रहे हैं, तो उन्होंने ब्रजवासियों से कहा कि वर्षा का कारण इंद्र देव नहीं बल्कि गोवर्धन पर्वत है जो बादलों को आकर्षित कर वर्षा करवाता है। इसलिए हमें इंद्र देव की नहीं, बल्कि गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए। भगवान कृष्ण की बात मानकर ब्रजवासियों ने इंद्र देव के बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा की। इसकी खबर जब इंद्र देव को हुई, तो वह क्रोधित हो गए।

क्रोध में आकर उन्होंने ब्रजभूमि पर भारी वर्षा शुरू कर दी। भयंकर बारिश और तूफान से पूरा क्षेत्र जलमग्न होने लगा। तब श्री कृष्ण ने ब्रजवासियों और पशुओं की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाया और यही उन्हें शरण दी। सात दिनों तक लगातार बारिश के बाद जब इंद्र देव का अहंकार टूटा, तो उन्होंने श्री कृष्ण से माफी मांगी। उसी दिन से गोपाष्टमी पर्व मनाना शुरू हुआ।

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