Kargil Vijay Diwas: युद्ध में 7 गोलियां खा कर भी दुश्मनों से लड़ते रहे Nawab Wasim, आज उनकी वीरता को करें सलाम
Kargil Vijay Diwas: भारत में हर वर्ष 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस के तौर पर मनाते हैं. साल 1999 में जब पाकिस्तान घुसपैठियों ने कारगिल की चोटियों पर कब्जा जमाने की कोशिश की थी तब इंडियन आर्मी के वीर सपूतों ने अदम्य साहस के साथ जवाब दिया। लगभग 60 दिनों तक चले इस भीषण युद्ध में हमारे सैनिकों ने दुर्गम पहाड़ियों पर दुश्मन को परास्त कर भारत का परचम फिर लहराया। कारगिल युद्ध की जीत भारतीय फौज के अदम्य साहस और हौसले की कहानी को बयां करती है। इसी युद्ध के एक वीर सैनिक की कहानी उत्तराखंड के रामनगर में लोगों को प्रेरित करती है। रामनगर के रहने वाले सूबेदार मेजर (सेवानिवृत्त) नवाब वसीम उर रहमान ने कारगिल युद्ध के दौरान 7 गोलियां खाई थीं। इसके बावजूद वे 20 मिनट तक मोर्चे पर डटे रहे। कारगिल विजय दिवस (Kargil Vijay Diwas) के मौके पर नवाब वसीम (Nawab Wasim) भी उन पलों को याद कर रहे हैं।
युद्धक्षेत्र के दिनों के बारे में क्या कहा?

आईएएनएस से बातचीत में नवाब वसीम उर्फ रहमान खान ने युद्धक्षेत्र के बीते पलों को याद किया। उन्होंने कहा, "मैं 18वीं गढ़वाल राइफल का हिस्सा था। जब कारगिल युद्ध हुआ तो हमारी बटालियन भी उसमें शामिल थी। मुझे खुशी है कि मैं उसका हिस्सा था।"नवाब वसीम (Nawab Wasim) ने बताया कि कारगिल युद्ध (Kargil Vijay Diwas) शुरू होने के दो-तीन दिन बाद ही मुझे 7 गोलियां लग गई थीं। मेरे दोनों पैरों में गोली लगी थी। मुझे कुछ समय तक महसूस नहीं हुआ था कि गोली लगी है। बाद में पोजिशन बदलने के समय में पीछे गिर गया था। उसके बाद मुझे कुछ पता ही नहीं चला।
कितने दिनों तक सेना में दिए सेवा?
सेना से रिटायर्ड नवाब वसीम (Nawab Wasim) उर रहमान उत्तराखंड के रामनगर में बच्चों को फुटबॉल चैंपियन बनाते हैं। करीब 20 साल तक सेना में सेवा देने के बाद नवाब वसीम ने 2019 में सूबेदार मेजर के पद से सेवानिवृत्ति ली थी। इसके बाद उन्होंने अपना जीवन समाज सेवा को समर्पित किया। (Kargil Vijay Diwas) वर्तमान में वह रामनगर में 150 से ज्यादा बच्चों को मुफ्त फुटबॉल प्रशिक्षण दे रहे हैं। उनकी कोचिंग से प्रशिक्षित कुछ खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर पर भी खेल रहे हैं।
नशामुक्ति अभियान को लेकर क्या कहा?

उन्होंने आईएएनएस को बताया, 'मैंने अपने क्षेत्र के बच्चों को नशे की लत में देखा था। तब में दो बच्चों को साथ लेकर आगे चला और नशा छोड़कर खेलने का संदेश दिया। आज इस मुहिम में बहुत सारे बड़े लोग मदद करते हैं। अब हम बच्चों को ट्रेनिंग देने के लिए पूरी तरह तैयार हैं।" नवाब वसीम (Nawab Wasim) की यह कहानी सिर्फ एक युद्ध की दास्तान नहीं, बल्कि हौसले, अनुशासन और राष्ट्रप्रेम की जीवंत मिसाल है। ऐसे सैनिक न सिर्फ जंग के मैदान में, बल्कि शांति के समय में भी देश को दिशा देने का काम करते हैं।
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