कर्नाटक में कुर्सी को लेकर सियासी खींचातानी! डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार के पोस्ट पर ये क्या बोल गए CM सिद्दारमैया?
Karnataka CM Controversy: कर्नाटक में कांग्रेस पार्टी के भीतर मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर चल रही राजनीतिक खींचतान अब साफ तौर पर सामने आने लगी है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार के बीच बयानबाज़ी के कारण पार्टी की अंदरूनी कलह खुलकर दिखाई देने लगी है।
Karnataka CM Controversy: सोशल मीडिया पोस्ट से बढ़ा विवाद
उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट किया, "शब्द की ताकत ही दुनिया की ताकत है"। उनके इस बयान का जवाब खुद मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने दिया और लिखा, "शब्द तभी ताकत बनते हैं जब वे लोगों की जिंदगी को बेहतर बनाने में मदद करें।"इस जवाब के बाद यह साफ हो गया कि दोनों नेताओं के बीच तनाव लगातार बढ़ रहा है।

karnataka News: सिद्दारमैया का सफाई भरा बयान
हालांकि विवाद बढ़ता देखकर सिद्धारमैया ने बाद में बात को संभालने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि, "कर्नाटक के लोगों ने हमें जो जनादेश दिया है, वह एक पल का फैसला नहीं, बल्कि पाँच साल की जिम्मेदारी है।" उन्होंने आगे यह भी कहा कि कांग्रेस पार्टी जनता की भलाई के लिए लगातार मजबूती से काम कर रही है और कर्नाटक के लिए हमारे वचन सिर्फ एक नारा नहीं, बल्कि हमारे लिए बहुत मायने रखते हैं। इस बयान का उद्देश्य पार्टी के भीतर चल रहे विवाद को शांत करना था, लेकिन स्थिति अभी भी पूरी तरह सामान्य नहीं लगी।

रोटेशनल मुख्यमंत्री पद का असली विवाद क्या है?
सारा विवाद दरअसल उस कथित रोटेशनल मुख्यमंत्री समझौते से जुड़ा है, जिसकी चर्चा कर्नाटक सरकार बनने के समय हुई थी। शिवकुमार गुट का दावा है कि पार्टी हाईकमान ने वादा किया था कि आधे कार्यकाल के बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी उन्हें दी जाएगी। लेकिन सिद्धारमैया ने यह स्पष्ट कहा था कि ऐसा कोई लिखित या आधिकारिक समझौता नहीं हुआ था। कांग्रेस के केंद्रीय नेता भी इस विषय पर चुप हैं, जिससे भीतर की खींचतान और बढ़ गई है।

पार्टी के लिए परेशानी का कारण बनी दरार
कर्नाटक में कांग्रेस सरकार को बने डेढ़ साल से ज्यादा समय हो चुका है, लेकिन मुख्यमंत्री पद को लेकर खींचतान लगातार बनी हुई है। दोनों नेताओं के समर्थकों के बीच भी बयानबाज़ी हो चुकी है, जो कि पार्टी की एकता पर सवाल खड़े करती है। यह विवाद न सिर्फ सरकार की छवि को प्रभावित कर रहा है, बल्कि आने वाले चुनावों में भी कांग्रेस के लिए चुनौती बन सकता है। राज्य में बड़ी जीत के बाद पार्टी से उम्मीद थी कि वह स्थिर और मजबूत सरकार देगी, लेकिन आंतरिक मतभेद बार-बार उभर रहे हैं।
अब आगे क्या?
कांग्रेस हाईकमान पर दबाव है कि वह दोनों नेताओं के बीच मध्यस्थता करे और साफ करे कि मुख्यमंत्री पद को लेकर पार्टी का अंतिम फैसला क्या है। अगर स्थिति जल्द नियंत्रित नहीं हुई, तो इसका असर कर्नाटक सरकार और पार्टी की साख पर पड़ सकता है।
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