आज जहां देश में करवा चौथ की धूम, तो इस गांव में व्रत नहीं रखती महिलाएं, वजह है सदियों पुराना मिला श्राप
Karwa Chauth 2025: आज पूरे देश में करवा चौथ का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। इस दिन विवाहित महिलाएं सज-धजकर निर्जला व्रत रखती हैं और अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में एक गांव ऐसा भी है जहां यह पर्व नहीं मनाया जाता। इस गांव की महिलाएं न तो व्रत रखती हैं और न ही सोलह श्रृंगार करती हैं। इस परंपरा के पीछे एक सदियों पुरानी दुखद घटना छुपी हुई है।
Karwa Chauth 2025: रामनगला गांव की दर्दनाक कहानी
रामनगला गांव, मथुरा जिले के नौहझील क्षेत्र में स्थित है। कहा जाता है कि कई सौ साल पहले, इस गांव का एक ब्राह्मण युवक अपनी नवविवाहित पत्नी को लेकर यमुना पार उसके मायके से लौट रहा था। रास्ते में सुरीर नामक स्थान पर कुछ लोगों ने उसकी बुग्गी में जुते भैंसे को लेकर विवाद कर लिया। झगड़ा इतना बढ़ गया कि उन लोगों ने युवक की हत्या कर दी।
Mathura Village Karwa Chauth Tradition: पत्नी का श्राप बना परंपरा
इस हृदयविदारक घटना को देखकर उस नवविवाहिता स्त्री का दिल टूट गया। उसने अपने पति के शव के साथ सती होने का निर्णय लिया। सती होते समय उसने वहां मौजूद लोगों और पूरे क्षेत्र को श्राप दिया कि अब यहां कोई भी महिला श्रृंगार नहीं कर पाएगी और न ही अपने पति के लिए व्रत रख पाएगी।
Sati Curse story Mathura: लोगों में फैला डर
कहा जाता है कि इस श्राप के बाद से क्षेत्र में लगातार जवान पुरुषों की असामयिक मृत्यु होने लगी। कई महिलाएं विधवा हो गईं। इससे डरकर गांव के बुजुर्गों ने उस सती स्त्री की पूजा शुरू कर दी और एक मंदिर भी बनवाया। धीरे-धीरे यहां की महिलाओं ने करवा चौथ और श्रृंगार करना पूरी तरह से छोड़ दिया।
करवा चौथ की जगह सन्नाटा
रामनगला गांव की महिलाएं आज भी करवा चौथ नहीं मनातीं। न व्रत रखा जाता है, न श्रृंगार किया जाता है और न ही उपहारों का आदान-प्रदान होता है। गांव की बुजुर्ग महिलाएं बताती हैं कि जो भी महिला यहां व्रत रखती है, उसके पति की अकाल मृत्यु हो जाती है। इसलिए कोई भी इस परंपरा को तोड़ने की हिम्मत नहीं करता।
नई पीढ़ी भी निभा रही है परंपरा
इस परंपरा को अब गांव की नई पीढ़ी भी पूरी श्रद्धा के साथ निभा रही है। कुछ घरों में अब अहोई अष्टमी का व्रत शुरू हुआ है, लेकिन करवा चौथ अभी भी नहीं मनाया जाता। स्थानीय लोगों का मानना है कि जब सती माता की इच्छा होगी, तभी यहां फिर से यह पर्व मनाया जाएगा।
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