Karwa Chauth and Ahoi Ashtami व्रत में आखिर क्या है अंतर, जानें दोनों से जुड़ी मान्यताएं, महत्व और पूजा विधि
Karwa Chauth and Ahoi Ashtami: हिंदू धर्म में सालभर कई व्रत-त्योहार मनाए जाते हैं, जिनमें से कुछ खासतौर पर महिलाओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण माने जाते हैं। ऐसे ही दो प्रमुख व्रत हैं- करवा चौथ और अहोई अष्टमी। ये दोनों व्रत महिलाओं की आस्था, समर्पण और परिवार के प्रति उनके प्रेम के प्रतीक माने जाते हैं।
हालांकि इन दोनों में समानता यह है कि दोनों ही व्रत महिलाएं करती हैं, लेकिन इनके उद्देश्य, नियम और पूजा की विधि में बड़ा अंतर होता है। आइए जानते हैं कि आखिर करवा चौथ और अहोई अष्टमी के व्रत में क्या फर्क है, दोनों की मान्यताएं क्या हैं और अहोई अष्टमी के दिन क्या किया जाता है।
Karwa Chauth and Ahoi Ashtami: जानें दोनों व्रतों में क्या अंतर है
हालांकि दोनों व्रत महिलाओं द्वारा रखे जाते हैं और परिवार की भलाई के लिए होते हैं, लेकिन दोनों के उद्देश्य अलग हैं।
1. करवा चौथ पति की लंबी उम्र और दांपत्य सुख के लिए रखा जाता है और अहोई अष्टमी संतान की दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए।
2. करवा चौथ में करवा माता, गणेश जी और चंद्रमा की पूजा की जाती है। जबकि अहोई अष्टमी में अहोई माता और सप्तपुत्रियों का पूजन किया जाता है।
3. करवा चौथ में महिलाएं निर्जला उपवास रखती हैं और चांद निकलने के बाद व्रत खोलती हैं। वहीं अहोई अष्टमी में माताएं सूर्योदय से पहले या ब्रह्ममुहूर्त में भोजन करती हैं और शाम को तारों को देखकर व्रत खोलती हैं।
4. करवा चौथ पति-पत्नी के रिश्ते को और मजबूत करने का प्रतीक है। लेकिन अहोई अष्टमी माता-पिता के अपने बच्चों के प्रति स्नेह और सुरक्षा की भावना को दर्शाती है।
Karwa Chauth vs Ahoi Ashtami Significance: जानें दोनों व्रतों का क्या है महत्व
1. करवा चौथ व्रत का महत्व और मान्यता (Karwa Chauth and Ahoi Ashtami)
करवा चौथ का व्रत हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और दांपत्य सुख की कामना करती हैं। यह व्रत सूर्योदय से पहले सरगी खाकर शुरू होता है और चंद्र दर्शन के बाद जल अर्पण करके पूरा किया जाता है। करवा चौथ की परंपरा बहुत प्राचीन मानी जाती है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार, एक समय एक महिला वीरवती ने यह व्रत अपने पति की दीर्घायु के लिए किया था। लेकिन उसके भाइयों ने छलपूर्वक चांद निकलने का भ्रम पैदा कर दिया, जिससे वीरवती ने अधूरा व्रत तोड़ दिया और उसके पति की मृत्यु हो गई। बाद में देवी पार्वती की कृपा से जब उसने पुनः विधि-विधान से व्रत किया, तो उसका पति जीवित हो गया। तभी से यह व्रत पति की दीर्घायु के लिए रखा जाने लगा।
2. अहोई अष्टमी व्रत का महत्व और मान्यता (Karwa Chauth and Ahoi Ashtami)
अहोई अष्टमी का व्रत करवा चौथ के चार दिन बाद, यानी कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। इस दिन महिलाएं अपने संतानों की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं। इस व्रत को "अहोई माता" के नाम से प्रसिद्ध देवी की पूजा के रूप में भी जाना जाता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय की बात है एक साहूकार था, जिसके सात बेटे और सात बहुएं थी। इस साहूकार की एक बेटी भी थी।
एक बार दीपावली से पहले साहूकार की पत्नी घर की लिपाई-पुताई के लिए खेत में मिट्टी लाने गई थी। खेत में पहुंचकर उसने कुदाल से मिट्टी खोदनी शुरू की मिट्टी इसी बीच उसकी कुदाल से अनजाने में एक साही (झांऊमूसा) के बच्चे की मौत हो गई। क्रोध में आकर साही की माता ने उस स्त्री को श्राप दिया कि एक-एक करके तुम्हारे भी सभी बच्चों की मृत्यु हो जाएगी। श्राप के चलते एक-एक करके साहूकार के सातों बेटों की मृत्यु हो गई और साहूकार के घर पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। इतने बड़े दुख से घिरी साहूकार की पत्नी एक सिद्ध महात्मा के पास जा पहुंची, जिन्हें उसने पूरी घटना बताई।
महात्मा ने साहूकार की पत्नी से कहा कि ''हे देवी तुम अष्टमी के दिन भगवती माता का ध्यान करते हुए साही और उसके बच्चों का चित्र बनाओ। इसके बाद उनकी आराधना करते हुए अपनी गलती के लिए क्षमा मांगो। मां भगवती की कृपा से तुम्हे इस बड़े अपराध से मुक्ति मिल जाएगी। साधु की कही गई बात के अनुसार, साहूकार की पत्नी ने कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को उपवास रखा और विधिवत अहोई माता की पूजा की। व्रत के प्रभाव से उसके सातों पुत्र पुनः जीवित हो गए और तभी संतान के लिए अहोई माता की पूजा और व्रत करने की परंपरा चली आ रही है।
Ahoi Ashtami Rituals: जानें अहोई अष्टमी व्रत की सरल पूजा विधि
1. अहोई अष्टमी के दिन महिलाएं प्रातः काल स्नान करके व्रत का संकल्प लें कि आप पूरे दिन निर्जला उपवास करेंगी और शाम को अहोई माता की पूजा करेंगी।
2. इसके बाद दीवार पर चावल या गेरू से अहोई माता का चित्र बनाएं। इसमें सात पुत्रों, साही (झांऊमूसा) और सितारे का चित्र अवश्य बनाया जाता है।
3. पूजा स्थल पर कलश स्थापित करें और उसके ऊपर नारियल रखकर पूजा आरंभ करें
4. अहोई माता की पूजा के लिए दूध, चावल, सिंदूर, रोली, हलवा, पूड़ी, गेहूं के दाने, फल और मीठे पकवान रखे जाते हैं।
5. शाम के समय अहोई माता की कथा सुनी जाती है। कथा के बाद अहोई माता से अपनी संतान की सुरक्षा और दीर्घायु की प्रार्थना की जाती है।
6. रात्रि में तारा दर्शन करने के बाद ही महिलाएं जल और अन्न ग्रहण करती हैं। इस समय वे अपने बच्चों को देखती हैं और मन ही मन उनकी दीर्घायु की कामना करती हैं।
Ahoi Ashtami Vrat 2025: जानें क्या है अहोई अष्टमी का महत्व
अहोई अष्टमी व्रत का संबंध विशेष रूप से मातृत्व से है। धार्मिक दृष्टि से यह व्रत संतान की रक्षा और मातृत्व के आशीर्वाद से जुड़ा हुआ है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन अहोई माता (जो मां पार्वती का ही एक रूप हैं) की पूजा करने से संतान को दीर्घायु, सुख-समृद्धि और जीवन में प्रगति प्राप्त होती है। माना जाता है कि इस दिन जो माता अहोई माता की पूजा करती है, उनके बच्चों को किसी भी प्रकार का अकाल मृत्यु या बड़ी बीमारी का सामना नहीं करना पड़ता।
साथ ही घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है। इस दिन माताएं घर की साफ-सफाई पर विशेष ध्यान देती हैं और पूजा स्थल को फूलों और दीपों से सजाती हैं। कई घरों में रातभर दीप जलाने की परंपरा भी होती है, जिसे अहोई दीपदान कहा जाता है। यह व्रत मातृत्व के स्नेह, त्याग और श्रद्धा का प्रतीक है। जो भी महिलाएं इस व्रत को पूरे नियम और भक्ति भाव से करती हैं, उन्हें अहोई माता का आशीर्वाद प्राप्त होता है और उनके बच्चों का जीवन खुशियों से भर जाता है।